बिहारः बेटी का अंतिम संस्कार करता या बेटे का इलाज?
कहते हैं कि जनाज़ा जितना छोटा होता है उतना ही भारी होता है. बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के धर्मपुर के लोगों को यह भार अपने कंधों पर उठाना पड़ा.
वो भी एक नहीं, उन्हें एक साथ नौ-नौ बच्चों की अर्थियों को कंधा देना पड़ा.
मुज़फ़्फ़रपुर शहर से करीब दस किलोमीटर दूर स्थित धर्मपुर गांव के नौ बच्चे शनिवार को एक कार की चपेट में आने से मारे गए थे.
कहते हैं कि जनाज़ा जितना छोटा होता है उतना ही भारी होता है. बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के धर्मपुर के लोगों को यह भार अपने कंधों पर उठाना पड़ा.
वो भी एक नहीं, उन्हें एक साथ नौ-नौ बच्चों की अर्थियों को कंधा देना पड़ा.
मुज़फ़्फ़रपुर शहर से करीब दस किलोमीटर दूर स्थित धर्मपुर गांव के नौ बच्चे शनिवार को एक कार की चपेट में आने से मारे गए थे.
इनमें से एक इंद्रदेव सहनी को तो अपनी बच्ची की अर्थी को कंधा देने का भी मौका नहीं मिला.
राज मिस्त्री का काम करने वाले इंद्रदेव के दो बच्चे शनिवार को धर्मपुर के सरकारी स्कूल में पढ़ने गए थे. उनमें से एक नीता अब कभी घर लौट कर नहीं आएगी.
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बेटी का अंतिम संस्कार
शनिवार को मारे गए बच्चों में चौथी में पढ़ने वाली नीता कुमारी भी एक हैं.
इंद्रदेव के लिए ग़म और परेशानी इस कारण ज़्यादा है क्योंकि इस हादसे में उनका तीसरी में पढ़ने वाला बेटा चमन कुमार घायल भी हुआ है.
हादसे के बाद उनके सामने दो अलग-अलग ज़िम्मेदारियां थीं. उन्हें अपनी बेटी का अंतिम संस्कार करना था तो घायल बेटे का इलाज भी करवाना था.
इंद्रदेव को जब हादसे की ख़बर मिली तब वह धर्मपुर से क़रीब दस किलोमीटर दूर अहियापुर में काम कर रहे थे.
अभी अपने बेटे के इलाज के लिए मुज़फ़्फ़रपुर के सरकारी अस्पताल एसकेएमसीएच (श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल) में मौजूद इंद्रदेव कहते हैं, "घर में अभी कुछो नहीं संभाल रहे हैं. माल-जाल सब वैसे ही हैं. बेटी के अंतिम संस्कार में नहीं जा पाए. पिताजी, भाई और समाज के लोगों ने मिलकर बेटी का अंतिम संस्कार किया. बेटी को ये सोच कर पढ़ा रहे थे कि पढ़ेगी, लिखेगी तो होशियार बनेगी. जो काम करेगी ढंग से करेगी."
अनियंत्रित गाड़ी
यह गांव नेशनल हाइवे संख्या 77 के दोनों ओर बसा है. हाइवे के पूरब में स्कूल है तो पश्चिम में वे परिवार रहते हैं जिनके बच्चे इस हादसे में मारे गए हैं.
यह हादसा शनिवार दोपहर तब हुआ जब बच्चे वहां के एक सरकारी स्कूल से पढ़ने के बाद घर लौट रहे थे.
हाइवे के किनारे-किनारे घर लौटते बच्चों पर एक अनियंत्रित गाड़ी चढ़ गई. इस हादसे में नौ बच्चों की मौत हो गई जबकि दस बच्चे घायल भी हुए हैं.
घायलों में से एक ही हालत बिगड़ने के बाद उन्हें रविवार को पटना के आईजीआईएमएस रेफ़र किया गया है.
अनवारुल हक़ के चार बच्चे इस स्कूल में पढ़ते हैं. उनके बच्चों में नुसरत और दिलसार ही शनिवार को स्कूल गए थे.
इनमें से नुसरत की हादसे में मौत हो गई जबकि दिलसार गाड़ी की चपेट में आने से बच गए क्योंकि तब वह सड़क के दूसरी तरफ़ थे.
वापसी का टिकट
अनवारुल ने शनिवार के हादसे की जगह का मंज़र इन लफ़्ज़ों में बयान किया, "ख़बर मिली कि बच्चों को ठोकर लग गई है तो हमलोग दौड़ कर वहां पहुंचे. वहां पहुंचे तो देखा कि बच्चे बिखरे पड़े थे. ठोकर इतनी जोर से मारी गई थी कि कुछेक बच्चे तो पेड़ पर भी लटके हुए थे."
अनवारुल लुधियाना में एक गारमेंट फ़ैक्ट्री में काम करते हैं. उनका दो मार्च का वापसी का टिकट था, लेकिन उन्होंने काम पर वापस लौटना टाल दिया है.
वे कहते हैं, "लड़की गुज़र गई. घर बिखर गया. अब पहले घर संभालूं कि परदेस जाऊं."
धर्मपुर के हरिदा टोले के गगनदेव सहनी के बारह साल के बेटे बिरजू कुमार भी हादसे का शिकार होने वालों में से हैं.
उनके एक और लड़के उसी स्कूल में पढ़ते हैं मगर वह शनिवार को स्कूल नहीं गए थे. गगनदेव पढ़े-लिखे नहीं हैं.
कभी स्कूल नहीं भेजता...
गगनदेव ने बेटे बिरजू की बातों को याद करते हुए कहा, "कहत रहे कि पप्पा हो पढ़ लेम तो आगे के जीवन में बढ़ जाम. हम भी ओकरा समझावत रहिए कि बेटा पढ़ लेबे तो विद्या हमेशा तोर साथे रहतो."
गगनदेव बिरजू को कम-से-कम मैट्रिक तक पढ़ाना चाहते थे. उनके यहां अब तक किसी ने आठवीं से आगे पढ़ाई नहीं की है.
लेकिन अब हादसे के बाद वे रोते हुए कहते हैं कि 'ये पता होता कि ऐसा हो जाएगा तो उसे मूर्ख ही रखता. कभी स्कूल नहीं भेजता.'
ज़ुलेख़ा ख़ातून की दो बच्चियों शाहजहां और शाज़िया की भी मौत इस हादसे में हुई है. ज़ुलेख़ा के पति वहीद अंसारी हादसे के वक्त लुधियाना में थे.
बच्चियों की मौत की ख़बर मिलने के बाद वे ट्रेन पकड़कर घर के लिए निकले मगर रविवार देर शाम तक भी वे धर्मपुर नहीं पहुंच पाए थे.
वहीद की ग़ैरमौजूदगी में ही शाहजहां और शाज़िया को दफना दिया गया. घटना के वक्त ज़ुलेख़ा अपनी बकरियों को घास चराने गई थीं.
भाजपा का नाम
ज़ुलेख़ा अनपढ़ हैं, लेकिन वह अपने बच्चों को पढ़ा रही हैं.
भरे गले से उन्होंने बताया, "हम तो सोचे थे कि अच्छा होगा, ज्ञान मिलेगा. अब तो बाबू चला गया. अब ज्ञान क्या मिलेगा. हम बच्चों को पढ़ाकर आगे निकालना चाहते थे. उनके नसीब में जो होता वे बनते मगर मेरे नसीब में अब मेरे बच्चे ही नहीं हैं."
ज़ुलेख़ा के एक बेटे भी उसी स्कूल में पढ़ते हैं. वह शनिवार को स्कूल नहीं गए क्योंकि वे घर पर आए फूफा के साथ रुक गए थे.
ज़ुलेख़ा कहती हैं, "मेरा बाबू स्कूल नहीं गया नहीं तो वो भी चला जाता भैया. फिर हम किसको देखकर रहते भैया."
पुलिस की शुरुआती जांच में यह बात सामने आई है कि हादसे के वक्त भाजपा नेता मनोज बैठा खुद अपनी गाड़ी चला रहे थे.
पुलिस अब तक मनोज बैठा को गिरफ्तारी नहीं कर पाई है.
बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव सहित मृतक बच्चों के परिजन आरोप लगा रहे हैं कि दुर्घटना के वक्त मनोज बैठा नशे में थे.