बिहार की चुनावी रैलियों में चिराग पासवान पर पीएम मोदी की चुप्पी के मायने समझिए
नई दिल्ली- बिहार विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहीं 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों की रणनीति पर तो नहीं चल रहे हैं। क्योंकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के मतदाताओं से नीतीश कुमार को फिर से मुख्यमंत्री बनाने की अपील तो कर रहे हैं, लेकिन जो चिराग पासवान उन्हें सत्ता से बेदखल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे, उनके खिलाफ सीधा कुछ भी कहने से बच रहे हैं। पीएम मोदी संकेतों में जो कुछ कह रहे हैं, उसका इशारा चिराग की ओर मान भी लिया जाय तो भी उनका सीधा नाम नहीं लेकर वह नीतीश समेत पूरे जदयू का ब्लड प्रेशर बढ़ा रहे हैं। इसलिए, ऐसे कयास लगाए जाने लगे हैं कि मौजूदा चुनाव में कहीं बिहार में लोजपा और भाजपा का संबंध उसी दौर से तो नहीं गुजर रहा है, जो 2014 में महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावों में शिवसेना के साथ था।
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2014 के लोकसभा चुनाव में साथ चुनाव लड़ने के बावजूद उसी साल बीजेपी और शिवसेना विधानसभा चुनावों में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ी थी। उस वक्त की चुनावी सभाओं को याद कीजिए तो तब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी रैलियों में उद्धव ठाकरे पर सीधा हमला नहीं करते थे। दोनों पार्टियां इसलिए अलग-अलग लड़ रही थीं, क्योंकि सीटों के बंटवारे पर तालमेल नहीं हो पाया था। लेकिन, चुनाव के बाद दोनों फिर से साथ आ गए और शिवसेना के समर्थन से देवेंद्र फडणवीस की सरकार बनी और पूरे पांच साल चली। अलबत्ता पिछले साल के चुनाव में कहानी ठीक उलट गई। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी की सबसे अहम सहयोगी जेडीयू और उसके मुखिया नीतीश कुमार को बार-बार निशाना बनाने के बावजूद चिराग पर चुप्पी साध लेना नीतीश कुमार को भी शायद जरूर खल रहा होगा।
सासाराम की रैली में पीएम मोदी ने चिराग पासवान के पिता और दिवंगत लोजपा नेता रामविलास पासवान को बहुत ही भावुक श्रद्धांजलि दी। वे बोले की पासवान ने आखिरी सांस तक उनका साथ दिया। पिता के निधन से पहले से ही चिराग पीएम मोदी के मुरीद रहे हैं। वह खुद को मोदी जी के हनुमान होने का दावा भी कर चुके हैं। आज भी प्रधानमंत्री के बिहार दौरे का उन्होंने दिल खोलकर स्वागत किया है, लेकिन जिन्हें सीएम बनाने के लिए पीएम जनता से गुजारिश कर रहे हैं उनपर तीखा से तीखा निशाना साधने से भी लोजपा अध्यक्ष नहीं चूक रहे हैं। तथ्य ये भी है कि सासाराम में जिस रैली से पीएम मोदी ने चुनाव अभियान की शुरुआत की है, वहां की दो सीटों पर लोजपा ने भाजपा छोड़कर आए दो दिग्गज नेताओं को टिकट दिया है। दिनारा सीट से पार्टी के पूर्व कद्दावर नेता राजेंद्र सिंह चिराग की पार्टी से मैदान में हैं तो नोखा सीट से दिग्गज रामेश्वर चौरसिया चिराग का झंडा बुलंद करने निकले हैं। इतना ही नहीं बिहार में भाजपा के कम से कम ऐसे 22 दिग्गज हैं, जो आज लोजपा के लिए पार्टी से बगावत कर चुके हैं। आज भी उनकी सभाओं में झंडा लोजपा का होता है, लेकिन नारे बीजेपी के ही गूंजते सुनाई पड़ रहे हैं। जाहिर है कि इसका खामियाजा बीजेपी की सहयोगी को भुगतना पड़ सकता है।
इन सबके बावजूद चिराग पर सीधे हमले से पीएम मोदी को क्या चीजें रोक रही हैं, यह सवाल स्वाभाविक तौर पर पैदा हो रहे हैं। पीएम मोदी ने सिर्फ इतना कहा है कि किसी को कंफ्यूजन में रहने की जरूरत नहीं है। उन्होंने चुनाव पूर्व सर्वे और रिपोर्ट का हवाला देकर दावा किया है कि सरकार एनडीए की बन रही है। इसलिए कुछ विश्लेषक इसे इशारों में चिराग को दिया गया संदेश मान रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार के लोग भ्रम में नहीं रहते। लेकिन, फिर भी चिराग का नाम ना लेकर उन्होंने नीतीश की धड़कनें जरूर बढ़ा दी है। वनइंडिया ने जब कुछ भाजपा सूत्रों से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि 'वह उन्हें (चिराग पासवान) ज्यादा महत्त्व नहीं देना चाह रहे हैं।'
ऐसे में इन कयासों को और बल मिल रहा है कि शायद बीजपी चुनावों के बाद के लिए अपने विकल्प खुले रखना चाहती है। इसके लिए हमें लोक जनशक्ति पार्टी की रणनीति को समझना पड़ेगा। चिराग पासवान यही दावा करते हैं कि सरकार भाजपा की अगुवाई में लोजपा के समर्थन से ही बनेगी। उन्होंने भाजपा से आए नेताओं को इसलिए टिकट दिया है कि उन्हें लगता है कि नीतीश से नाराज सवर्ण वोटों का फायदा मिल सकता है। राम विलास पासवान फरवरी, 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में यह प्रयोग सफलतापूर्वक कर चुके हैं। लालू से बगावत करने के बाद उन्होंने तब ज्यादातर दबंग सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट दिया था और उनकी पार्टी 27 सीटें जीत गई थी। यह लोजपा का विधानसभा में अबतक का सबसे बेहतर प्रदर्शन है।
बीजेपी को लगता है कि अगर लोजपा ने इस बार उसी तरह का प्रदर्शन किया तो चुनाव के बाद उसका समर्थन लेना मजबूरी बन सकती है। क्योंकि, एलजेपी जितनी मजबूत होगी, जेडीयू का खेल बिगाड़ने में उतनी ही सफल होगी।