भास्कर गायकवाड़, जिनकी FIR पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया SC/ST एक्ट पर फैसला
एससी-एसटी एक्ट में हुए फेरबदल को लेकर 1 अप्रैल को पूरे देश में दलितों ने भारत बंद का ऐलान किया था। इस दिन हुई हिंसा में कुल 12 लोगों की जान चली गई और दर्जनों लोग घायल हो गए।
नई दिल्ली। एससी-एसटी एक्ट में हुए फेरबदल को लेकर 1 अप्रैल को पूरे देश में दलितों ने भारत बंद का ऐलान किया था। इस दिन हुई हिंसा में कुल 12 लोगों की जान चली गई और दर्जनों लोग घायल हो गए। सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले पर देशभर में उबाल देखनो को मिला, उसकी शुरुआत पुणे के भास्कर करभारी गायकवाड़ के फाइल किए गए केस से होती है। भास्कर गायकवाड़ ने एक सरकारी अफसर पर एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसको हटाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया।
यहां से हुई थी इस विवाद की शुरुआथ
20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक गला दी थी, जिसके बाद से दलित संगठनों ने 1 अप्रैल को देशभर बंद का ऐलान किया था। 1 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के फैसले कि खिलाफ दलितों ने सड़कों पर उतरकर अपना विरोध दर्ज कराया। इस दौरान कई जगहों पर झड़प और हिंसा भी देखने को मिली जिसमें 12 लोगों की जान चली गई। इस पूरे विवाद की शुरुआत महाराष्ट्र के पुणे में रहने वाले एक व्यक्ति की एफआईआर से हुई थी। महाराष्ट्र के सतारा जिले में कराद के सरकारी फॉर्मेसी कॉलेज में स्टोरकीपर की नौकरी करने वाले भास्कर गायकवाड़ ने अपने दो वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज किया था।
भास्कर गायकवाड़ ने वरिष्ठ अधिकारियों पर लगाया था आरोप
गायकवाड़ का कहना है कि उस वक्त कॉलेज के प्रिंसिपल ने कुछ घपला करने के बाद उन्हें रिकॉर्ड दोबारा लिखने को कहा था, जिसके लिए उन्होंने इनकार कर दिया था। गायकवाड़ का आरोप था रि जब उन्होंने इसके लिए मना कर दिया तो वरिष्ठ अधिकारी सतिश भिसे और किशो बुराडे ने उनकी सलाना गोपनीय रिपोर्ट में उनके खिलाफ बातें लिखीं। गायकवाड़ ने आरोप लगाया कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वो अनुसूचित जाति से आते हैं। इसके बाद साल 2006 में गायकवाड़ ने भिसे और बुराडे के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तरत मामला दर्ज करवाया था और कहा था कि रिपोर्ट में ये टिप्पणी उनके काम के लिए नहीं, बल्कि जाति के कारण की गई है।
पुनर्विचार याचिका डालेंगे गायकवाड़?!
इसके बाद मामले की जांच के लिए जब पुलिस अधिकारियों ने अपने वरिष्ठ अधिकारी से इजाजत मांगी और उन्हें नहीं मिली तो गायकवाड़ ने 10 साल बाद फिर उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज कराई, जिन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया था। दूसरी एफआईआर में महाराष्ट्र के टेक्निकल एजुकेशन के अध्यक्ष सुभाष काशिनाथ महाजन का भी नाम था। इस एफआईर को रद्द करने के लिए महाजन ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन उनकी याचिका रद्द कर दी गई। इसके बाद महाजन एफआईआर के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंचे जहां कोर्ट मे तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। भास्कर गायकवाड़ मानते हैं कि कोर्ट का ये फैसला ठीक नहीं है और वो इस फैसले के खिलाफ जल्द ही पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे।
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