खाने में आप भी लेते हैं जीरे के तड़के का मजा तो हो जाएं सावधान, दिल्ली में पकड़ा गया गिरोह
नई दिल्ली- दिल्ली में एक ऐसे गैंग का भंडाफोड़ हुआ है, जो नकली जीरे की फैक्ट्री चलाता था। यूपी के शाहजहांपुर से सक्रिय इस गैंग की नकली जीरे की फैक्ट्री दिल्ली के बवाना इलाके से पकड़ी गई है और पुलिस गिरोह के सरगना समेत पांच आरोपियों को रंगे हाथों पकड़ा है। यह गिरोह पुरानी दिल्ली की मशहूर मंडी खारी बावली से लेकर यूपी और राजस्थान के होलसेल कारोबारियों तक से संपर्क में था और उनतक नकली जीरे का सप्लाई करता था। बाद में होलसेलर असली जीरे में नकली जीरा मिलाकर उसे दुकानों तक पहुंचा देते थे, जहां से यह जहरीला जीरा हमारे-आपके खाने की थाली तक पहुंच रहा था। आइए जानते हैं कि क्या था इस नकली जीरा गिरोह का मोडस ऑपरेंडी?
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485 बोरी नकली जीरा बरामद
दिल्ली पुलिस ने एक ऐसे गिरोह का पर्दाफाश किया है, जो नकली जीरा तैयार कर उसे मसाले के कारोबारियों तक पहुंचाता था। आउटर दिल्ली के बवाना इलाके में नकली जीरे की ऐसी 485 बोरियां बरामद की गई हैं, जिसमें हर बोरी में 20-20 किलो नकली जीरा भरा था। यह गिरोह स्टोन डस्ट, सूजी और घास के पेस्ट से नकली जीरा तैयार करता था, जिसकी खुशबू और टेक्सचर बिल्कुल जीरे जैसी है। छापेमारी की इस कार्रवाई में शामिल एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि, "जब इन तीनों चीजों को आपस में मिलाया जाता है, तो उसका टेक्सचर पूरी तरह से जीरे की तरह दिखता है। इन्हें बोरियों में भरकर होलसेल मार्केट तक पहुंचाया जाता है और वहां से खारी बावली और दूसरे स्थानों में दुकानदारों तक पहुंचा दिया जाता है...."
रंगे हाथों पकड़ा गया गिरोह
पुलिस तहकीकात में पता चला है कि नकली जीरे का ये रैकेट यूपी में शाहजहांपुर के जलालाबाद का एक गैंग चला रहा था। इस जहरीले खेल के सरगना हरिनंदन, कामरान, गंगा प्रसाद, हरीष और पवन को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और उनके खिलाफ धोखाधड़ी और खाने-पीने की चीजों में मिलावट के आरोपों के तहत केस दर्ज किए गए हैं। इस कांड में पुलिस ने एक और आरोपी की भी पहचान की है, लेकिन अभी वह उसके हत्थे नहीं चढ़ा है। दिल्ली में नकली जीरे की फैक्ट्री बवाना के पूठ खुर्द इलाके में एक गोदाम में चल रही थी। स्थानीय लोगों ने वहां किसी फैक्ट्री होने की सूचना पुलिस को दी थी। इसके बाद फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) तक जानकारी पहुंचाई गई थी। इसके बाद पुलिस ने एफएसएसएआई के अधिकारियों के साथ फैक्ट्री पर छापा मारा और वहां मजदूरों को स्टोन डस्ट, सूजी और घास के पेस्ट से नकली जीरा बनाते हुए रंगे हाथों धर-दबोचा।
कैसे काम करता था गिरोह?
नकली जीरा बनाने वाले गिरोह के सरगना हरिनंदन ने पुलिस को बताया है कि पहले वे लोग अलग-अलग तरह की घासों और जंगलों से बीज जमा कर उससे नकली मसाले बनाकर स्थानीय बाजारों में बेचते थे। जब उन्हें लगा कि इस कारोबार में काफी कमाने की गुंजाइश है, तब उन्होंने बड़े पैमाने पर नकली जीरा तैयार करने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने कुछ मजदूरों को घास इकट्ठा करने और उसे स्टोन डस्ट और सूजी के साथ मिलाकर जीरे की शक्ल देने के काम पर लगाना शुरू कर दिया। तैयार होने के बाद नकली जीरे असली जीरे में फर्क करना मुश्किल हो गया। तब उन्होंने नकली जीरे को पहले उत्तर प्रदेश और राजस्थान के होलसेलरों को बेचना शुरू कर दिया, जो नकली जीरे को असली जीरे में मिलाकर रिटेलर्स को बेच देते थे।
असली और नकली जीरे का अनुपात 80:20
इस तरह हमारे-आपके जायके तक जो जीरा पहुंचता था उसमें ज्यादातर भाग तो असली जीरे का होता था, लेकिन एक बहुत बड़ा हिस्सा नकली जीरे का भी होता था, जो कि सेहत के लिए बहुत ही नुकसानदेह है। बाहरी और उत्तरी दिल्ली के डीसीपी गौरव शर्मा के मुताबिक, "नकली जीरे की एक बोरी होलसेलरों को 20 रुपने में मिलती है, लेकिन जब असली के साथ नकली जीरा मिला दिया जाता है तो एक बोरी पर उनका मुनाफा 400 रुपये बढ़ जाता है।.........वे असली और नकली जीरे की मिलावट का अनुपात 80:20 रखते हैं।" जबकि, गिरोह नकली जीरा तैयार करने वाले मजदूरों को प्रति किलो 2 रुपये की मजदूरी देता था और वे हर 20 दिन पर अपनी फैक्ट्री का ठिकाना बदलते रहते थे।
ऐसे करें पहचान
नकली जीरे की पहचान के लिए एक कटोरी पानी में इसे डाल दें। पानी में कुछ देर रहने के बाद नकली जीरा गलने लगता है। वह टूटने लगता है। उसका रंग छूटने लगता है। असली जीरा पानी में डाले जाने के बाद भी बदलता नहीं है।
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