क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

नज़रिया: दलितों के घोड़ी पर चढ़ने से सवर्णों को कष्ट क्यों है?

राजस्थान के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने पिछले दिनों विधानसभा में एक दिलचस्प लेकिन चिंताजनक जानकारी दी. उन्होंने बताया कि प्रदेश में पिछले तीन साल में दलित दूल्हों को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने की 38 घटनाओं में मुकदमे दर्ज हुए. ये घटनाएं रुक नहीं रही हैं.

दो साल पहले मध्य प्रदेश के रतलाम से आई एक तस्वीर ने लोगों को चौंका दिया था. 

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
दलित, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश
Getty Images
दलित, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश

राजस्थान के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने पिछले दिनों विधानसभा में एक दिलचस्प लेकिन चिंताजनक जानकारी दी. उन्होंने बताया कि प्रदेश में पिछले तीन साल में दलित दूल्हों को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने की 38 घटनाओं में मुकदमे दर्ज हुए. ये घटनाएं रुक नहीं रही हैं.

दो साल पहले मध्य प्रदेश के रतलाम से आई एक तस्वीर ने लोगों को चौंका दिया था. वहां एक दलित दूल्हे को हेलमेट पहनकर घोड़ी पर चढ़ना पड़ा, क्योंकि गांव के सवर्ण लोग नहीं चाहते थे कि वह घोड़ी पर चढ़े.

पहले तो उसकी घोड़ी छीन ली गई और फिर पत्थर फेंके गए. उनके फेंके पत्थरों से दूल्हे को बचाने के लिए पुलिस ने हेलमेट का बंदोबस्त किया, तब जाकर बारात निकली.

हाल ही में उत्तर प्रदेश के कासगंज में पुलिस ने आधिकारिक तौर पर कह दिया था कि दलित दूल्हे का घोड़ी पर बैठना शांति के लिए ख़तरा है.

यूपी के कासगंज में दलित की बारात 'शांति के लिए ख़तरा'

'इस मासूम का होली मनाना उन्हें नागवार गुज़रा’

दादरी ज़िले के संजरवास गांव में पिछले साल जब एक दलित दूल्हे की बारात आई तो राजपूतों ने हमला कर दिया. इस घटना में दूल्हा संजय समेत कई बाराती और लड़की वाले जख्मी हो गए. हमला करने वालों का कहना था कि दलित दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर नहीं आ सकता, क्योंकि उन्हें इसका अधिकार नहीं है.

दो साल पहले हरियाणा के कुरुक्षेत्र में दलित समाज की एक बारात पर सवर्णों ने यह कहकर हमला कर दिया कि दलित दूल्हा घोड़े की बग्गी पर सवार होकर उनके मंदिर में नहीं आ सकता, उसे जाना है तो रविदास मंदिर में जाए. पुलिस की सुरक्षा के बावजूद पथराव की घटना हुई.

शादियों के मौसम में लगभग हर हफ्ते देश के किसी न किसी हिस्से से ऐसी किसी घटना की खबर आ ही जाती है. इन घटनाओं में जो एक बात हर जगह समान होती है, वह यह कि दूल्हा दलित होता है, वह घोड़ी पर सवार होता है और हमलावर सवर्ण समुदाय के लोग होते हैं.

एनकाउंटर में मुस्लिम-दलित होते हैं निशाने पर?

इन घटनाओं के मतलब

इन घटनाओं के समाजशास्त्रीय दृष्टि से दो मतलब हैं.

एक, दलित समुदाय के लोग पहले घुड़चढ़ी की रस्म नहीं करते थे. न सिर्फ सवर्ण बल्कि दलित भी मानते थे कि घुड़चढ़ी सवर्णों की रस्म है लेकिन अब दलित इस भेद को नहीं मान रहे हैं. दलित दूल्हे भी घोड़ी पर सवार होने लगे हैं.

दलित, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश
NARAYAN BARETH/BBC
दलित, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश

यह अपने से ऊपर वाली जाति के जैसा बनने या दिखने की कोशिश है, इसे लोकतंत्र का भी असर कहा जा सकता है, जिसने दलितों में भी समानता का भाव और आत्मसम्मान पैदा कर दिया है. यह प्रक्रिया पहले पिछड़ी जातियों में हुई होगी, जो अब चलकर दलितों तक पहुंची है.

दूसरा, सवर्ण यानी ऊपर मानी गई जातियां इसे सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रही हैं. उनके हिसाब से दूल्हे का घोड़ी पर सवार होना एक सवर्ण विशेषाधिकार है और इसे कोई और नहीं ले सकता.

वे इस बदलाव को रोकने की तमाम कोशिशें कर रहे हैं. हिंसा उनमें से एक तरीका है और इसके लिए वे गिरफ्तार होने और जेल जाने तक के लिए तैयार हैं. आधुनिकता और लोकतंत्र के बावजूद सवर्णों में यह चेतना नहीं आ रही है कि सभी नागरिक समान हैं.

कई दशक पहले पिछड़ी जातियों के लोगों ने जब बिहार में जनेऊ पहनने का अभियान चलाया था, तो ऐसी ही हिंसक प्रतिक्रिया हुई थी और कई लोग मारे गए थे. दलितों के मंदिर घुसने की कोशिश अब भी कई जगहों पर हिंसक प्रतिक्रिया को जन्म देती है.

बाकियों की तुलना में दलित स्त्रियां जल्दी क्यों मर जाती हैं

दलित, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश
AFP
दलित, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश

ये कैसी मानसिकता

इसी का एक रूप तीन साल पहले उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में देखने को मिला. वहां के रेहुआ लालगंज गांव के राजू और ब्रजेश सरोज ने जब आईआईटी का एंट्रेंस पास कर लिया, तो गांव के सवर्णों ने उनके घर पर पत्थरबाजी की.

यह तब हुआ जबकि इन भाइयों के आईआईटी एंट्रेंस क्लियर करने का देश भर में स्वागत हुआ था और तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री ने इनकी हर तरह की फीस और खर्च माफ करने की घोषणा की थी.

ऐसी घटनाओं की तादाद बहुत ज्यादा है जो कहीं दर्ज नहीं होतीं, राष्ट्रीय स्तर पर जिनकी चर्चा नहीं होती. एक घुड़चढ़ी पर हमला दरअसल सैकड़ों दलित दूल्हों को घुड़चढ़ी से रोकता है, यानी सामाजिक बराबरी की तरफ़ कदम बढाने से रोकता है.

खासकर गांवों में समाज अभी भी स्थिर हैं और दलित कई जगहों पर आर्थिक रूप से सवर्णों पर निर्भर हैं इसलिए वे खुद भी ऐसा कुछ करने से बचते हैं, जिससे सवर्ण नाराज हों और उनके आर्थिक स्रोत बंद कर दिए जाएं.

दलित, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश
Getty Images
दलित, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश

इन घटनाओं को अब तक दलित उत्पीड़न के तौर पर देखा गया है. अब जरूरत इस बात की भी है कि इन घटनाओं को 'सवर्णों की समस्या' की तरह देखा जाए. कोई बीमार समाज ही किसी युवक के घोड़ी पर चढ़ने या किसी के आईआईटी पास करने पर पत्थर फेंक सकता है.

दुनिया में किसी भी देश में इसे सामान्य नहीं माना जाएगा. 21वीं सदी में तो इसे किसी भी हालत में आम घटना के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए. इस बीमार मानसिकता का मनोचिकित्सकों और समाजविज्ञानियों को अध्ययन करना चाहिए.

आधुनिकता के साथ पिछड़ापन

यह समझने की कोशिश की जाए कि आधुनिकता और लोकतंत्र के इतने सालों के अनुभव के बाद भी कुछ समुदाय सभ्य क्यों नहीं बन पाए रहे हैं. ऐसी कौन सी चीज है, जिसकी वजह से सवर्ण यह मानने को तैयार नहीं हैं कि वे भी बाकी लोगों की तरह इंसान हैं और उन्हें कोई जन्मगत विशेषाधिकार हासिल नहीं हैं और न ही कुछ लोग सिर्फ जन्म की वजह से नीच हैं.

अगर पुराने दौर में उन्हें कुछ विशेषाधिकार हासिल थे भी तो लोकतंत्र में उन्हें यह सुविधा हासिल नहीं है.

दलित, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश
Getty Images
दलित, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश

इसे भारतीय आधुनिकता की समस्या के तौर पर भी देखा जाना चाहिए. यूरोप और अमरीका में परंपरा और पुरातन की कब्र पर आधुनिकता का विकास हुआ. जो कुछ सामंती या पतनशील था, उसे खारिज करने की कोशिश की गई. चर्च और पादरियों को पीछे हटना पड़ा, तब जाकर बर्बर यूरोप बदला और वहां वैज्ञानिक और औद्योगिक क्रांति हुई.

भारत में ऐसी कोई क्रांति नहीं हुई.

यूरोप से सीखी हुई आधुनिकता और भारतीय परंपरा के नाम पर जारी अन्याय भारत में गलबहियां कर गए. जीवन जीने का ढर्रा नहीं बदला, यही वजह है कि उपग्रह प्रक्षेपण की सफलता के लिए मंदिर में पूजा को सामान्य माना जाता है. यहां इंटरनेट जैसे आधुनिक प्लेटफॉर्म पर जाति और कम्युनिटी के मेट्रोमोनी डॉट कॉम चलते हैं.

जातिवाद एक व्यापक समस्या का ही हिस्सा है जहाँ वैज्ञानिक चेतना और लोकतांत्रिक सोच से टकराव हर स्तर पर दिखाई देता है, मसलन, क्या ये धार्मिक मामला है कि दिल्ली में अरबिंदो मार्ग पर आईआईटी के गेट पर शनि मंदिर बनाया गया है जहां टीचर और स्टूडेंट सरसों का तेल चढ़ाते हैं?

भारतीय समाज कई मामलों में एक भैंसागाड़ी की तरह है जिसमें इंजन लगा दिया गया हो.

भारत ने लोकतंत्र जैसी आधुनिक शासन प्रणाली को तो अपना लिया गया, लेकिन समाज में गोलबंदी का आधार धर्म और जाति बने रहे. संविधान सभा में बाबा साहेब आंबेडकर ने इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती के रूप में स्वीकार किया था.

उन्होंने कहा था कि हर व्यक्ति का एक वोट और हर वोट का एक मूल्य तो है लेकिन हर व्यक्ति समान नहीं है. उन्होंने उम्मीद जताई थी कि यह स्थिति बदलेगी.

दलितों की घुड़चढ़ी पर पत्थर फेंकने वाले सवर्णों ने भारत के संविधान निर्माताओं को निराश किया है.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Attitude Why do the upper castes suffer from climbing Dalits
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X