Assam Election:AIUDF चीफ बदरुद्दीन अजमल का 42 देशों में है इत्र का कारोबार,जानिए कितनी संपत्ति के हैं मालिक
गुवाहाटी: 15 साल पुरानी बात है। 2006 के असम विधानसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तरुण गोगोई को जब मौलाना बदरुद्दीन अजमल की सियासी मंसूबों की भनक लगी थी तो उन्होंने एक ही सवाल पूछा था- बदरुद्दीन कौन है ? तब ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के संस्थापक अजमल ने लोअर और मिडल असम के मुस्लिम बहुल इलाकों में खूब खर्च करने शुरू किए थे। जाहिर है कि कांग्रेस नेता को उनकी इस हरकत से सांप सूंघ गया था। उनकी तैयार की हुई सारी सियासी फसल काटने की तैयारी शुरू हो चुकी थी। उसके बाद तीसरे चुनाव में ही असम की जमीन पर इत्र के बादशाह और मुसलमानों के इस आध्यात्मिक नेता की राजनीतिक हैसियत ये हो चुकी है कि दिवंगत गोगोई की गैर-मौजूदगी में कांग्रेस उनके साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ रही है। प्रदेश की राजनीति में अजमल भाजपा के खिलाफ एक बड़ा नाम हैं तो इत्र की दुनिया में उनकी बादशाहत दुनिया के 42 देशों में कायम हो चुकी है।
कांग्रेस ने क्यों किया अजमल की पार्टी से गठबंधन ?
जो कांग्रेस कुछ वर्ष पहले तक असम के इस मुस्लिम नेता को पहचानने तक से इनकार कर रही थी, वह आज उसके साथ भाजपा के तमाम आरोपों को झेलते हुए चुनाव मैदान में है तो इसके पीछे इतने साल में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की बढ़ी हुई ताकत है। अजमल ने तो अपने पहले चुनाव में ही राज्य की 126 सीटों में से 10 सीटें जीतकर उस समय के सीएम गोगोई के माथे पर पसीना ला दिया था। पांच साल बाद 2011 में उनकी पार्टी के 18 विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंच गए, लेकिन तब तक कांग्रेस शांत रही। लेकिन, 2016 में जब भाजपा ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया और एआईयूडीएफ को भी सिर्फ 13 सीटें ही मिल पाईं तो इस चुनाव में दोनों ने बीजेपी के खिलाफ साथ मिलकर ही लड़ने का फैसला किया। क्योंकि, कांग्रेस भी सिर्फ 26 सीटों पर सिमट कर रह गई थी।
असम की राजनीति में एक बड़ी ताकत बन चुके हैं बदरुद्दीन अजमल
पांच साल बाद आलम ये है कि अजमल बीजेपी के नारे 'सुरक्षा' और 'सभ्यता' के जरिए निशाने पर हैं तो नब्ज महाजोत में उनके सहयोगी कांग्रेस की दब रही है। सत्ताधारी पार्टी इत्र कारोबारी को बांग्लादेश से आए मुस्लिम घुसपैठियों का सरगना बताकर उन्हें असम की पहचान के लिए खतरा बताने की कोशिश कर रही है तो चिंता की लकीर कांग्रेस के रणनीतिकारों के सिर पर उभर रही है। आज कांग्रेस चाहे जिस मजबूरी में बदरुद्दीन के साथ खड़ी है और चाहे भाजपा जिस सियासी वजहों से उनपर हमले कर रही है। लेकिन, सच्चाई ये है कि 65 साल के इस इत्र कारोबारी को असम की राजनीति में आज कोई नकारने की स्थिति में नहीं है। पर यह भी उतना ही बड़ा सच है कि असम की राजनीति से बाहर भी अजमल की एक बहुत बड़ी दुनिया है, जिसके बारे में बहुत ही कम लोगों को पता है।
कौन हैं बदरुद्दीन अजमल ?
मौलाना बदरुद्दीन अजमल मूल रूप से असम के होजाई के गोपाल नगर गांव से हैं और तीन बार से सांसद हैं। वह इस समय भी धुबरी लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। मगर एक और बहुत बड़ी दुनिया है, जिसमें उनकी धाक इत्र के बादशाह के तौर पर जमी हुई है। अजमल के परिवार की कंपनी 'अजमल परफ्यूम' का सारा कारोबार दुबई से चलता है, जिसे उन्होंने अपना हेडक्वार्टर बना रखा है। वैसे तो वे कहते हैं कि अब उन्हें बिजनेस में कोई खास दिलचस्पी नहीं रही, लेकिन उनके बड़े साम्राज्य पर उनका असर हर जगह उसी तरह आज भी कायम है। इस समय मध्य-पूर्व में उनकी कंपनी के 270 शोरूम मौजूद हैं। दुबई की उनकी दो फैक्ट्रियों में इत्र के लिए जिस कच्चे माल का इस्तेमाल होता है, उसे वह असम में उपजाकर निर्यात करके ले जाते हैं। सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध कुछ दस्तावेजों और अजमल के भतीजे और उनकी कंपनी के सीओओ अब्दुला अजमल के कुछ साक्षात्कारों के मुताबिक उनकी कंपनी की इत्र कम से कम दुनिया के 42 देशों में सप्लाई की जाती है। इसी साल 7 जनवरी को खलीज टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने दावा किया था कि, 'हम भारतीय हैं, लेकिन ये (अजमल परफ्यूम) यूएई का ब्रांड है।'
कितनी संपत्ति के मालिक हैं बदरुद्दीन अजमल ?
वैसे इतना बड़ा कारोबार होने के बावजूद उनके विदेश में चल रहे कारोबार की वजह से उनकी आमदनी का सही ब्योरा उपलब्ध नहीं हो पाया है। वैसे 2019 के लोकसभा चुनाव में एआईयूडीएफ नेता ने अपनी संपत्ति का जो ब्योरा दिया था, उसमें उन्होंने अपनी कुल संपत्ति महज 78.8 करोड़ रुपये की बताई थी और 1 करोड़ रुपये की देनदारी भी दिखाई थी। उस चुनावी हलफनामे में उन्होंने अपनी आय 4.3 करोड़ रुपये दिखाया था। जब उनके इत्र कारोबार के बारे में ईटी मैगजीन ने पार्टी के महासचिव और प्रवक्ता चंपक कलीता से पूछा तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि वह सिर्फ पार्टी के मसले पर बोलने के लिए अधिकृत हैं। उन्होंने सिर्फ इतना बताया कि, 'अजमल साहेब के भाई, बेटे और भतीजे सभी बिजनेस में हैं। सभी लोग कमाते हैं, अजमल साहेब सिर्फ खर्च करते हैं।' खर्च करने से उनका मतलब चैरिटी और राजनीतिक खर्चों से था। खुद अजमल ने फोन पर बताया कि उन्हें अब बिजनेस में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रह गई है। 'मैं नहीं जानता कि हमारी कुल रेवेन्यू कितनी है। मुझे कहा गया है कि हमारी कंपनियों ने कोविड के दौरान भी प्रगति की है। मेरे चार बेटे बिजनेस में हैं। मैं अपने पांचवें बेटे मोहम्मद अहमद को राजनीति में बढ़ाना चाहता हूं।'
अभी भी अपनी कंपनियों में डायरेक्टर हैं अजमल
वैसे उपलब्ध दस्तावेजों से पता चलता है कि अजमल अभी भी मुंबई में रजिस्टर्ड चार कंपनियों- अजमल फ्रैगरेंसेज एंड फैशन प्राइवेट लिमिटेड, अजमल होल्डिंग एंड इंवेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड, बेल्लेजा इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड और अजमल बायोटेक प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर हैं। परिवार का इत्र कारोबार तब से फलने-फूलने लगा था,जब इनके पिता हाजी अजमल अली 1950 में असम से दो खास तरह का इत्र लेकर मुंबई पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात अरब के कुछ कारोबारियों से हुई जो उसी तरह के सुगंध की तलाश में भटक रहे थे। यहीं से उनका कारोबार बढ़ना शुरू हो गया। 1964 में हाजी ने अपने परफ्यूम के उत्पाद को अजमल ब्रांड नाम से बेचना शुरू कर दिया। 1976 में उन्होंने अपने दूसरे बेटे फखरुद्दीन को दुबई भेजा और वहीं के मुर्शीद बाजार में इत्र की एक दुकान खुलवा दी। 1990 के दशक में परिवार के इत्र का व्यापार पूरे मिडल-ईस्ट के देशों में फैलना शुरू हो गया। 2004 तक इस परिवार का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था और ना ही असम में उनके व्यापार के बारे में कोई जानता था। उस साल वहां के एक सुल्तान ने उनकी दूसरी कंपनी का उद्घाटन किया था और उसके बाद यह परिवार सियासत में दिलचस्पी लेने लगा। अगले ही साल असम में उनकी पार्टी गठित हो गई। अजमल की सियासत ऐसी है कि जहां मुसलमानों के एक वर्ग में वह बहुत ही लोकप्रिय हैं तो कई इलाका ऐसा है, जहां उनकी राजनीति से लोग नफरत करते हैं।