धारा-370: टॉप सीक्रेट था पीएम मोदी का 'मिशन कश्मीर', अमित शाह ने ऐसे दिया अंजाम
नई दिल्ली- संविधान की धारा-370 को हटाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजना को गृहमंत्री अमित शाह ने जिस तरीके से अंजाम दिया उससे विपक्ष ही नहीं, सरकार के मंत्री भी हैरान हैं। यकीन मानिए जम्मू-कश्मीर में क्या बड़ा होने वाला है, इसकी पुख्ता जानकारी शायद सरकार के बड़े-बड़े मंत्रियों और अधिकारियों तक को सोमवार सुबह तक नहीं थी। शाह जानते थे कि अगर फैसले को अमल में लाने से पहले विपक्ष को जरा भी भनक लग गई तो वो ऐसा उछल-कूद मचाएंगे कि ऐक्शन को तय योजना के अनुसार अंजाम देना असंभव हो जाएगा। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि शाह ने पीएम मोदी द्वारा उन्हें सौंपे गए काम को कैसे इतनी गोपनीयता के साथ पूरा कर दिखाया है।
पार्टी सांसदों को भी किया हैरान
जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और धारा-370 को हटाने के लिए सरकार सर्वोच्च स्तर पर बरती गई गोपनीयता आज चर्चा का विषय बन गया है। अमित शाह ने बीजेपी में अपनी संगठन क्षमता का जलवा कई बार दिखाया है, लेकिन केंद्रीय गृहमंत्री के तौर पर जो छाप छोड़ी है, उसने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में पूरी विश्वसनीयता के साथ स्थापित कर दिया है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक शाह इस मिशन को लेकर कितने संजीदा थे इसका अंदाजा इसी से लगता है कि पिछले हफ्ते पार्टी सांसदों के लिए आयोजित दो दिवसीय ट्रेनिंग सेशन में भी उन्होंने पहले से तय अपना भाषण नहीं दिया। वे सिर्फ उद्घाटन के दौरान संक्षेप में बोलने आए थे। बीजेपी सांसदों को उनके इस रवैये से काफी हैरानी भी हुई और वे तभी से देश की आम जनता की तरह कश्मीर को लेकर कयासबाजियों में डूब गए। शाह को पता था कि मिशन की गोपनीयता जितनी जरूरी है, उसे अमल में लाने के लिए हर छोटी-बड़ी योजनाओं को अमलीजामा पहनाना भी उतना ही आवश्यक है। इसलिए उन्होंने पिछले दो दिनों के लिए संसद में अपने दफ्तर को ही अपना ठिकाना बना लिया था। यहीं पर उन्होंने सारी बैठकें कीं और पूरी प्लानिंग के साथ कदम बढ़ाते चले गए।
वक्त गंवाना नहीं चाहते थे गृहमंत्री
अमित शाह पिछली सरकार में बीजेपी के इस मंसूबे का अंजाम देख चुके थे। तब मोदी सरकार ने पत्थरबाजों के खिलाफ तो सख्त नीति अपनाई थी, लेकिन हीलिंग टच नीति के तहत मुफ्ती मोहम्मद सईद की तरफ भी हाथ बढ़ाया था और वार्ताकार को भी लगाने की कोशिश की थी। लेकिन, शाह ये सब दोहराना नहीं चाहते थे। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, उन्होंने इसे पूरी ताकत के साथ निपटाना ही सही समझा। क्योंकि, वे पहले की तरह अलगवादियों से बातचीत करके समय बर्बाद नहीं करना चाहते थे। पार्टी के एक बड़े नेता ने हाल में जम्मू-कश्मीर को लेकर उठाए गए सारे कदमों के बारे में कहा है कि "घाटी में उठाए गए सभी कदमों के पीछे शाह का हाथ था- यह उनका मिशना था, और वे इसमें सफल हुए।" इसकी तस्दीक खुद प्रधानमंत्री मोदी ने भी शाह की सराहना करके की है।
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निर्णायक रणनीति
जम्मू-कश्मीर पर मोदी सरकार के फैसले ने वहां के इतिहास के साथ-साथ भूगोल भी बदल दिया है और उसके पीछे दिमाग गृहमंत्री अमित शाह का ही माना जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी से पूरी आजादी पाकर ही उन्होंने पूरी व्यूह रचना तैयार की। जम्मू-कश्मीर का विशेषाधिकार खत्म कर दिया, उसे एक राज्य से दो केंद्र शासित प्रदेशों में तब्दील कर दिया और इसके लिए बहुत ही बेहतरीन अंदाज में पॉलिटिकल और सिक्योरिटी मैनेजमेंट का नमूना भी पेश किया। यही नहीं उन्होंने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में परिसीमन का खाका पेश करके कश्मीर घाटी और जम्मू क्षेत्र की चुनावी राजनीति की दशा और दिशा बदलने का भी निर्णायक कदम उठा दिया है। पार्टी को भरोसा है कि इस फैसले से पाकिस्तान और पीओके से आए हिंदू शरणार्थियों को घाटी में बसने का मिलेगा, कमजोर तबकों खासकर दलितों को भी लाभ मिलेगा, जिससे आखिरकार चुनावी राजनीति में भी फायदा मिल सकता है। वाजपेयी से लेकर राजनाथ सिंह ने कश्मीर में हीलिंग टच नीति अपनाकर देख ली थी, शायद इसलिए शाह ने तय किया कि इस समस्या का हमेशा के लिए समाधान यही है कि इससे स्पेशल स्टैटस का दर्जा खत्म कर दिया जाए।
सिर्फ दो को थी पूरी जानकारी
पार्टी के एक नेता ने बताया है कि ऐसा लगता है कि पूरी योजना की पुख्ता जानकारी सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के पास ही थी। वरिष्ठ मंत्रियों को कुछ जानकारी मिल भी रही थी तो शायद टुकड़ों में मिल रही थी। सूत्रों के मुताबिक कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विधेयक की ड्राफ्टिंग रविवार देर रात तक की। बताया जा रहा है कि बाकी मंत्रियों को सोमवार सुबह प्रधानमंत्री आवास पर हुई कैबिनेट बैठक में ही इसकी सूचना दी गई। यहां यह बताना जरूरी है कि जब पिछले 28 जून को अमित शाह लोकसभा में राज्य में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने को लेकर बहस कर रहे थे, तब उन्होंने इस बात का जिक्र किया था कि संविधान की धारा-370 अस्थाई है, न कि स्थाई। मतलब ये है कि उनके दिमाग में तब भी ये मामला घूम रहा था। राज्यसभा में आंकड़े जुटाने में भी बीजेपी सरकार बनाते ही जुट चुकी थी और आरटीआई बिल एवं ट्रिपल तलाक बिल पर उसे मिली सफलता एक प्रयोग की तरह साबित हुआ। एक मंत्री के मुताबिक अमित शाह ने वरिष्ठ मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं से कहा था कि राज्यसभा में बहुमत जुटाने की कोशिश करें, क्योंकि कुछ महत्वपूर्ण एवं निर्णायक बिल पास कराए जाने हैं। लेकिन, कोई मंत्री और बीजेपी नेता नहीं समझ पाया कि शाह उस बिल की बात कर रहे हैं, जिसे हटाने का मुद्दा सात दशकों से चला आ रहा है और लगभग असंभव सा प्रतीत होता है।
अमित शाह को लेकर अब तक एक वर्ग का ये मानना था कि भले ही वे संगठन को बखूबी चलाना जानते हों, लेकिन गृहमंत्री जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी वो कैसे निभाएंगे, इसके लिए इंतजार करना होगा। लेकिन शाह ने लोगों को इंतजार का मौका ही नहीं दिया है। उनके फैसले का कोई विरोध करे या समर्थन, लेकिन इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि शाह सियासत के ही शाह नहीं हैं, वे सरकार के भी शाह बनने का दम रखते हैं।
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