आख़िर नाम बदलने से पश्चिम बंगाल में क्या बदल जाएगा
नाम में क्या रखा है? शेक्सपियर ने कभी ये बात कही थी.
लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए शायद नाम में ही सब कुछ रखा है.
यही वजह है कि साल 2011 में सत्ता पर काबिज होने के बाद से ही उन्होंने राज्य का नाम बदलने की मुहिम चला रखी है.
सत्ता में आते ही उनकी सरकार ने राज्य का नाम पश्चिम बंगाल से बदल कर 'पश्चिम बंगो' करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था, लेकिन उसे मंजूरी नहीं मिली.
नाम में क्या रखा है? शेक्सपियर ने कभी ये बात कही थी.
लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए शायद नाम में ही सब कुछ रखा है.
यही वजह है कि साल 2011 में सत्ता पर काबिज होने के बाद से ही उन्होंने राज्य का नाम बदलने की मुहिम चला रखी है.
सत्ता में आते ही उनकी सरकार ने राज्य का नाम पश्चिम बंगाल से बदल कर 'पश्चिम बंगो' करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था, लेकिन उसे मंजूरी नहीं मिली.
उसके बाद दो साल पहले तृणमूल कांग्रेस सरकार ने विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद राज्य के नाम तीन भाषाओं में अलग-अलग रखने का प्रस्ताव पारित किया था.
तब इसका नाम बांग्ला में 'बांग्ला', अंग्रेज़ी में 'बेंगॉल' और हिंदी में 'बंगाल' करने का प्रस्ताव था, लेकिन केंद्र ने इसे भी ख़ारिज कर दिया.
सरकार की दलील
लगातार बढ़ती बेरोज़गारी, खस्ताहाल उद्योग-धंधे, देशी-विदेशी पूंजी निवेश का अभाव और हज़ारों करोड़ के भारी-भरकम कर्ज के बोझ से कराह रहे पश्चिम बंगाल का नाम बदल देने से क्या इसकी मुश्किलें हल हो जाएंगी?
राज्य का नाम पश्चिम बंगाल से बदल कर 'बांग्ला' करने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित होने के बाद अब यही सवाल पूछा जाने लगा है.
क्या इससे रातोंरात तस्वीर बदल जाएगी?
वैसे नाम बदलने के लिए अभी इस प्रस्ताव को केंद्रीय गृह मंत्रालय से अनुमोदन मिलना बाक़ी है.
लेकिन आख़िर सरकार ने नाम बदलने का फ़ैसला क्यों किया?
संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी कहते हैं, "दरअसल, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अंतरराज्यीय परिषद समेत तमाम अहम बैठकों में बोलने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर-कर थक जाती थीं."
"अंग्रेज़ी में वेस्ट बंगाल वर्णमाला के अक्षरों के क्रम में लगभग आखिर में आता था. ऐसे में ममता को अपनी बात कहने का बहुत कम समय मिल पाता था या कई बार तो समय ही नहीं मिल पाता था."
वह बताते हैं कि नाम बदलने के बाद राज्यों की सूची में इस राज्य का नाम चौथे नंबर पर आ जाएगा.
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विपक्ष का पलटवार
ममता ने राज्य विधानसभा में ये प्रस्ताव पेश करने के बाद कहा, "केंद्र ने पहले के प्रस्ताव पर दो साल चुप्पी साधे रखने के बाद सरकार से कोई एक नाम चुनने को कहा है. हम इस मुद्दे पर कोई विवाद नहीं चाहते. इसलिए हमने बांग्ला चुना है. यह नाम राज्य की संस्कृति के अनुरूप है."
वैसे, विपक्षी राजनीतिक दलों ने सरकार की इस दलील को बचकाना करार दिया है.
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं कि राज्यों के लिए केंद्रीय परियोजनाओं के आवंटन की रकम तय होती है. कोई पहले बोले या बाद में उससे कोई अंतर नहीं पड़ता.
घोष दलील देते हैं, "पश्चिम बंगो नाम से विभाजन की यादें जुड़ी हैं. इसके अलावा राष्ट्रगान में भी बंगो शब्द शामिल है. ऐसा में महज़ सूची में ऊपर जाने के लिए नाम बदलने की कोई तुक नहीं है."
वह कहते हैं कि राज्य को आगे ले जाने के लिए सरकार को सही मायने में विकास का ठोस काम करना होगा.
वाम मोर्चे की सरकार के वक़्त
सीपीएम विधायक सुजन चक्रवर्ती कहते हैं, "लेफ्ट फ्रंट ने साल 2016 में ही सरकार को तीन की बजाय महज एक नाम बांग्ला चुनने का सुझाव दिया था, लेकिन तब सरकार ने उस पर ध्यान नहीं दिया."
वैसे, राज्य का नाम बदलने की पहल साल 1999 में लेफ्ट फ्रंट सरकार के कार्यकाल में ही हुई थी. तब ज्योति बसु मुख्यमंत्री थे.
उस समय सरकार ने पश्चिम बंगाल का नाम बदल कर 'बांग्ला' करने का प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन केंद्र सरकार ने इसे ख़ारिज कर दिया था.
राज्य का नाम बदलने की सरकारी कोशिशों पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं.
कुछ लोगों ने इसका स्वागत किया है तो कुछ इसे गैर-जरूरी कवायद मामते हैं.
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क्या कहते हैं लोग
फ़िल्मकार गौतम घोष इस पर खुशी जताते हुए कहते हैं, "पश्चिम बंगो (पश्चिम बंगाल) नाम बंटवारे की याद दिलाता था और इससे विस्थापन की दर्दनाक यादें ताज़ा होती थीं."
मशहूर अभिनेता सौमित्र चटर्जी कहते हैं, "यहां आज़ादी के बाद लंबे समय से 'पश्चिम बंगो' नाम का इस्तेमाल किया जाता रहा है. नया नाम 'बांग्ला' ठीक है."
लेकिन एक बड़ा तबका ऐसा भी है जिसको इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता.
कोलकाता के एक कॉलेज स्टूडेंट मोहम्मद सफ़ीकुल सवाल करते हैं, "क्या नाम बदलने से हमारे लिए रोजगार की राह खुल जाएगी? क्या देशी-विदशी कंपनियों में 'बांग्ला' में निवेश करने की होड़ मच जाएगी."
महानगर की संकरी गलियों में हाथ रिक्शा खींचने वाले हरिलाल पासवान कहते हैं, "नाम से क्या फ़र्क पड़ता है? हमें तो दो जून की रोटी जुटाने के लिए दिन भर कड़ी धूप और बारिश की परवाह किए बिना हाड़-तोड़ मेहनत पहले भी करनी पड़ती थी और अब भी करनी होगी."
राजनीतिक पर्यवेक्षक तरुण गांगुली कहते हैं, "नाम बदलने से राज्य की सेहत या विकास की गति पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा. हां, 'बांग्ला' शब्द लोगों की भावनाओं से जुड़े होने की वजह से इसका सियासी फ़ायदा जरूर मिल सकता है."
आलोचकों का कहना है कि वैसे भी पश्चिम बंगाल को बांग्लाभाषी लोग 'पश्चिम बांग्ला' ही कहते थे. अब इसमें से महज़ पश्चिम शब्द हटा दिया गया है.
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