Donald Trump's Plan: अफगानिस्तान पर भारत को इसलिए ज्ञान दे रहे हैं राष्ट्रपति ट्रंप
बंगलुरू। अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अफगानिस्तान में आईएसआईएस और तालिबान की लड़ाई में पड़ोसी राष्ट्रों में शामिल भारत को भी सक्रिय होने की सलाह दी है। राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका पिछले 18 वर्षों से अफगानिस्तान में लड़ाई लड़ रहा है, लेकिन अफगानिस्तान के नजदीकी देश इस लड़ाई में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
दरअसल, ट्रंप चाहते हैं कि भारत आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय रुप से शामिल हो जबकि भारत लगातार पड़ोसी राष्ट्र अफगानिस्तान के विकास के लिए काम करता आ रहा है। आखिर क्यों अमेरिकी अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई से पीछा हटना चाहता है। सवाल यह भी है कि क्या अमेरिका अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ छेड़ी लड़ाई में 18 वर्ष बाद भी सफलता नहीं मिलने से निराश हो गया है?
पूरे विश्व पर चौधराहट दिखाने वाले अमेरिका के बदले हुए सुर इशारा करते हैं कि अमेरिका तालिबानी और अब इस्लामिक स्टेट के खिलाफ छेड़ी गई लड़ाई में थक कर चूर हो चुका है। पिछले 18 वर्षों से अमेरिका से 7000 मील दूर आतंकियों से लोहा लेते हुए उसके सैनिक भी अफगानिस्तान से निकलने के लिए छटपटा रहे हैं।
बुधवार को व्हाउट हाउस में पत्रकारों से बातचीत में ट्रंप ने कहा कि अफगानिस्तान में मौजूद आतंकी संगठनों से लड़ाई में भारत समेत रूस, तुर्की, इराक और पाकिस्तान को अपनी भूमिका अदा करने की जरूरत है। शिकायती लहजे में उन्होंने कहा अमेरिका अफगानिस्तान में पिछले 18 वर्षों से आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन कर रहा है, लेकिन जो अफगानिस्तान के पड़ोसी देश इस मुहिम में बिल्कुल भी सहयोग नहीं दे रहे हैं।
अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की रणनीति में आए बदलाव से विशेषज्ञ भी दंग हैं, क्योंकि ट्रंप की खुद की दक्षिण एशिया की रणनीति में भारत की भूमिका अफगानिस्तान में रचनात्मक और विकास कार्यों में तय की गई थी, जिसमें लगातार भारत अपना योगदान दे रहा है। इससे पहले भारत से न ही कभी आतंकवाद निरोधी अभियानों में हिस्सा लेने के लिए कभी कहा गया और न ही भारत खुद भी वहां सैन्य ऑपरेशनों में शामिल होना चाहता है। ट्रंप की रणनीति में अचानक आए बदलाव को लेकर भारत का चकित होना लाजिमी है।
गौरतलब है इराक और सीरिया में लगभग अपनी जमीन खो चुके आतंकी संगठन आईएसआईएस अब अफगानिस्तान में अपनी पकड़ मजबूत करने में लगा हुआ है जबकि अमेरिका वहां तालिबानी आंतकियों से निपटने में हलकान हुआ जा रहा है और ऐसे में आतंकी संगठन आईएसआईएस के अफगानिस्तान में पहुंचने से अमेरिका अब खुद को वहां निकालना चाहता है।
आत्मघाती हमले में करीब 63 लोगों की मौत
अफगान में आतंकी संगठन इस्लामिट स्टेट की गतिविधियों से परेशान अमेरिका अब चाहता है कि अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ लड़ाई में अब पड़ोसी देशों को शामिल किया जाए ताकि वह वहां पर तैनात अमेरिका सेना को हटा सके। अफगानिस्तान में आंतकी गतिविधियों को अंदाजा कुछ दिन पहले हुए एक आत्मघाती हमले से लगाया जा सकता है, जिसमें करीब 63 लोगों की मौत हो गई थी।
ट्रंप ने अफगानिस्तान बाहर निकलने के बदली रणनीत
माना जा रहा है कि दक्षिण एशिया की रणनीति को लेकर अमेरिकी की नीति में बदलाव इसलिए आया है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अफगानिस्तान से अमेरिका को बाहर निकालना चाहते हैं। अमेरिकी फौज सितंबर 2001 से ही अफगानिस्तान में मौजूद है और करीब 18 साल बीत जाने के बाद अमेरिका अफगानिस्तान को आंतकियों के आतंक से मुक्त कराने में अब तक नाकाम रहा है।
शायद यही कारण कि अमेरिकी ने रणनीति बदलकर अब अफगानिस्तान में दूसरे देशों से योगदान की अपील करने को मजबूर हुआ है। हालांकि अमेरिका अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज को पूरी तरह से वापसी नहीं कराने जा रहे हैं, लेकिन तालिबान के खिलाफ लड़ाई अमेरिका दूसरों का साथ चाहता है, जो तालिबानी आंतकियों से लोहा लेने में उसकी मदद कर सके
रूस को अफगानिस्तान निकलकर भागना पड़ा था
दरअसल, तालिबान के चंगुल से अफगानिस्तान को छुड़ाने के लिए अमेरिका द्वारा शुरु की गई कवायद से यहां पहले रूस ने अफगानिस्तान में शांति बहाली के लिए तालिबान से लोहा लेने की खूब कोशिश की थी, लेकिन भारी तबाही के बाद भी रूस को निराश होकर वहां से निकलकर भागना पड़ा और आज यही हालत अमेरिका भी हो चुका है।चूंकि रूस के लौटने के बाद अफगानिस्तान पर दोबारा तालिबानी हावी हो गए और वहां अपनी सरकार तक बना ली।
वर्ष 2001 में अमेरिका ने अफगान से तालिबानियों को सत्ता से हटाने के नाम पर अफगानिस्तान में डेरा डाला,लेकिन 18 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद अमेरिका की कोशिश भी नाकाम हो रही है। यही वजह है कि अमेरिका अब अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अब उसके पड़ोसी देशों को शामिल होने की अपील कर अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के बहाने तलाश रहा है।
राष्ट्रपति बनते ही ट्रंप ने सैनिकों की तैनाती में की कटौती
उल्लेखनीय है अफगानिस्तान में नाटो के करीब 13 हजार जवान तैनात हैं, जिनमें से 9800 अकेले अमेरिका से ही हैं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने कार्यकाल में अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की तैनाती बढ़ाई थी जबकि राष्ट्रपति बनने के बाद वहां पर तैनात सैनिकों की संख्या में कटौती करके मोर्च पर अफगान सेना को वहां तैनात करने के लिए प्रशिक्षित कर रही है। यह प्रशिक्षण अमेरिका की उस भावी रणनीति का हिस्सा है जिसके तहत एक दिन वह अफगानिस्तान से निकल जाएगा और अफगानिस्तान को अफगान सुरक्षाबलों के हवाले कर दिया जाएगा।
अमेरिका को अफगानिस्तान में नुकसान के अलावा कुछ मिला
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अब जब अफगानिस्तान की जमीं से अमेरिका सैनिकों की वापसी का मन बना लिया है, लेकिन ट्रंप के हालिया बयानों पर अगर गौर करें तो ट्रंप कई बार इस बात को सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि अमेरिका को अफगानिस्तान में सिवाय नुकसान के कुछ और नहीं मिला है।
अफगानिस्तान में खरबों डालर खर्च कर चुका हैं अमेरिका
माना जाता है कि करीब दो दशकों से जारी जंग में अमेरिका अफगानिस्तान में अब तक खरबों डॉलर बर्बाद कर चुका है और इस दौरान उसके कई जवानों को जान से हाथ धोना पड़ा हैं। इसी वर्ष जनवरी, 2019 से जून, 2019 के बीच अफगानिस्तान में 20 से अधिक अमेरिकी सैनिक तालिबान के खिलाफ लड़ाई में अपनी जान गंवा चुके हैं।
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