40 करोड़ बच्चों को लगनी है वैक्सीन, एक्सपर्ट से समझिए कहां से आएगी इतनी डोज ?
नई दिल्ली, 15 अक्टूबर: भारत बायोटेक की बच्चों की कोवैक्सीन को सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमिटी की सिफारिश मिलने के बाद इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। लेकिन, देश की एक-तिहाई से भी ज्यादा या यूं समझ लीजिए कि लगभग एक-चौथाई आबादी को कोरोना की रोकथाम की खुराक लगाना इतना क्या आसान है। जबकि, यह वो आयु वर्ग है जो अब एक्सपोज हो रहा है। स्कूल खुलने लगे हैं। ऑनलाइन क्लास के दौर धीरे-धीरे खत्म होने लगे हैं। इस महाभियान को लेकर इस मामले के एक्सपर्ट की राय एक नहीं है।
कोवैक्सीन को डीजीसीआई से अंतिम मंजूरी का इंतजार
2 से 18 साल के बच्चों के लिए भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल की सिफारिश सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमिटी ने कर दी है और अब इसपर ड्रग कंट्रोल जनरल ऑफ इंडिया(डीजीसीआई) की अंतिम मंजूरी मिलने का इंतजार है। यानी अब चुनौती हैदराबाद स्थिति भारत बायोटेक की है कि उसकी वैक्सीन को हरी झंडी मिलने के बाद वह इस महाभियान को आगे बढ़ाने के लिए कैसे इसकी आपूर्ति करेगी। कंपनी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि 'भारत बायोटेक डीसीजीआई, सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमिटी और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) को उनकी त्वरित समीक्षा प्रक्रिया के लिए धन्यवाद देता है। अब हम बच्चों के लिए कोवैक्सिन के प्रोडक्ट लॉन्च और बाजार में इसकी उपलब्धता से पहले सीडीएससीओ से रेगुलेटरी मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं।'
40 करोड़ बच्चों को वैक्सीन लगाने की चुनौती
लेकिन, चुनौती बहुत ही बड़ी है। लगभग 40 करोड़ बच्चों का टीकाकरण अभियान कोई बच्चों का खेल नहीं है। मोटे तौर पर यह देश की 30 फीसदी आबादी से ज्यादा है। जाहिर है कि यह लगभग असंभव लगता है कि इतने बड़े वर्ग के लिए अकेले एक कंपनी वैक्सीन सप्लाई कर पाने में सफल हो सके। वैसे बच्चों के लिए कोविड-19 की कोवैक्सीन से पहले ही डीजीसीआई एक और वैक्सीन जायडस कैडिला के जायकोव-डी को मंजूरी दे चुका है। यह वैक्सीन 12 साल से ऊपर के किशोरों के साथ-साथ व्यस्कों को भी लग सकती है। लेकिन, अगस्त में मंजूरी मिलने के बाद भी यह टीकाकरण के लिए अभी उपलब्ध नहीं हुई है।
कहां से आएगी इतनी वैक्सीन ?
तथ्य ये है कि बच्चों ने अब स्कूल जाना शुरू कर दिया है। उनका एक्सपोजर बढ़ रहा है। कोरोना वायरस का खतरा टला नहीं है। 18 साल से ऊपर के व्यस्कों को 97 करोड़ से ज्यादा डोज जरूर लग चुकी है। लेकिन, दोनों खुराक लगवाने वालों की संख्या अभी 28 करोड़ तक भी नहीं पहुंची है। ऐसे में देश की करीब एक-तिहाई से ज्यादा आबादी को वैक्सीन की डोज लगनी कितनी बड़ी चुनौती है, इसपर मनीकंट्रोल ने कुछ बड़े एक्सपर्ट से बात की है और यह जानने की कोशिश की है कि आगे क्या दिख रहा है। गुजरात के गांधीनगर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के हेड दिलीप मावलंकर ने कहा है कि 2 से 18 साल के जिन करीब 40 करोड़ बच्चों को वैक्सीन लगनी है, उतनी डोज की निश्चित तौर पर कमी होगी। क्योंकि, जायड के पास 12 साल से ऊपर के लिए सिर्फ 1 करोड़ डोज है। उनके मुताबिक पिछले दो वर्षों में देखा गया है कि बच्चों कोविड होने पर भी ज्यादातर मामलों में यह हल्का ही रहा है। इसलिए इनको लगता है कि जिस तरह से केस कम हो रहे हैं, सिर्फ पढ़े-लिखे और उच्च वर्ग के बच्चे ही वैक्सीन लगवाएंगे, ज्यादातर गरीब इससे दूर ही रह जाएंगे।
जल्दबाजी नहीं चाहते कुछ एक्सपर्ट
टाटा इंस्टीट्यूट फॉर जेनेटिक्स एंड सोसाइटी के डायरेक्टर राकेश शर्मा ने कोवैक्सीन के लिए सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमिटी की सिफारिश मिलने को अच्छा कदम बताया है। उनका कहना है कि भारत के डेमोग्राफी को देखते हुए करीब एक-तिहाई जनसंख्या को वैसे ही नहीं छोड़ा जा सकता। क्योंकि, वायरस को रोकने का यही एक तरीका है। हालांकि, उन्होंने ट्रायल की समीक्षा को अहम माना है। उन्होंने यह भी कहा है कि इसमें जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। लेकिन, उनका मानना है कि देश में टीकाकरण का इतिहास पुराना है, इसलिए उन्हें इसमें कोई समस्या नजर नहीं आती।
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गेंद भारत बायोटेक के पाले में- एम्स के पूर्व डायरेक्टर
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के पूर्व डायरेक्टर डॉक्टर एमसी मिश्रा का कहना है कि संबंधित अधिकारियों ने इसे सुरक्षित माना है और पर्याप्त ट्रायल हो चुके हैं, इसलिए इसकी शुरुआत करने की सारी वजहें मौजूद हैं। लेकिन, यह भारत बायोटेक के लिए बड़ी चुनौती है। गेंद उन्हीं के पाले में है। यह उन्हीं पर निर्भर करता है कि वह कितना उत्पादन कर सकते हैं और कितना टारगेट पूरा कर सकते हैं। मैं समझता हूं के बेंगलुरु और महाराष्ट्र में अपने नए प्लांट से उन्होंने अपनी क्षमता बढ़ा ली होगी।