Gujarat Election 2022: गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में AAP का क्या है हाल ? जानिए
Gujarat assembly elections 2022: गुजरात के बारे में कहा जाता है कि वहां सत्ता में आने के लिए सौराष्ट्र क्षेत्र पर पकड़ होनी जरूरी है। आम आदमी पार्टी ने इस बार जिन इसुदान गढ़वी को अपना सीएम उम्मीदवार बनाया है, वह भी उसी क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। पार्टी की रणनीति वही है कि इससे पूरे सौराष्ट्र में झाड़ू के पक्ष में हवा बनाई जा सकेगी। गढ़वी जिस खंभालिया सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, उसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि ना सिर्फ खंभालिया में बल्कि बाकी सौराष्ट्र क्षेत्र में आम आदमी पार्टी को लेकर लोग क्या सोच रहे हैं। वह जमीनी स्तर पर कितना जनाधार बना पाई है। क्योंकि, वहां के मतदाताओं के लिए यह पार्टी अभी बिल्कुल नई-नवेली है।
गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में AAP का क्या है हाल ?
गुजरात चुनाव में आम आदमी पार्टी के प्रदर्शनों पर सभी चुनावी पंडितों की नजरें टिकी हुई हैं। पार्टी की ओर से प्रचार तो तूफानी हो रहा है, लेकिन वह वोटरों तक अपनी बात पहुंचाने में कितनी सफल हो रही है, सबसे बड़ा सवाल यही है। लेकिन, आम आदमी पार्टी को गंभीरता से लेना इसलिए जरूरी है कि वह दिल्ली के बाद पंजाब में इतिहास रच चुकी है। पर गुजरात तो गुजरात है। यहां के लोग भावना में भी बहते हैं और हिसाब भी पुख्ता रखते हैं। ऐसी एक धारणा बनी हुई है। कई चुनावी पंडित कहते हैं कि गांधीनगर का रास्ता गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र से होकर ही जाता है। यह बात आम आदमी पार्टी को भी मालूम है। इसलिए वह प्रचार में भी पूरी ताकत झोंक रही है और यहीं के द्वारका जिले की खंभालिया सीट से अपने सीएम उम्मीदवार इसुदान गढ़वी को भी चुनाव मैदान में उतार रखा है।
गढ़वी कुछ गांव वालों के बीच लोकप्रिय-रिपोर्ट
ईटी की एक रिपोर्ट की मानें तो सौराष्ट्र के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में अरविंद केजरीवाल की पार्टी का प्रभाव तो दिख रहा है, लेकिन वह बहुत ही सीमित है। सबसे ज्यादा प्रभाव स्वाभाविक तौर पर खंभालिया सीट पर नजर आता है, जिसे कि बीजेपी नहीं,बल्कि कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। यहां के कई गांवों में पार्टी के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी इसुदान गढ़वी की लोकप्रियता तो नजर आती है। कई गांव वाले खुलकर कहते हैं, 'परिवर्तन आवे छे' (परिवर्तन हो रहा है)। खासकर किसानों में उनको लेकर ज्यादा उत्सुकता दिख रही है, जिन्हें बिजली भी मुफ्त चाहिए और फसलों की अच्छी कीमतें भी चाहिए। लेकिन, केजरीवाल की पार्टी का यहां अपना कोई ठोस जनाधार नजर नहीं आता। इसकी सबसे बड़ी वजह तो ये कि यहां पार्टी का अपना कैडर ही नहीं है। खुद गढ़वी के चुनाव की जिम्मेदारियां पंजाब, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान से लाए गए लोग संभाल रहे हैं।
क्या कांग्रेस बिल्कुल ही खत्म हो जाएगी ?
2017 के विधानसभा चुनाव में भी दिल्ली की पार्टी ने गुजरात में 29 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इन सीटों पर पार्टी सिर्फ 0. 62% वोट ही ले पाई थी और इसके सभी उम्मीदवारों की जमानतें जब्त कर ली गई थीं। सामान्य तौर पर वोट शेयर तब सीटों में परिवर्तित होता है, जब कोई पार्टी 30% वोट के आंकड़े तक पहुंचती है। इस केस में आम आदमी पार्टी को अपना वोट शेयर लगभग शून्य से सीधे 30% तक ले जाना है, यह नामुमकिन नहीं तो बहुत आसान भी नहीं है। वैसे गढ़वी का दावा है कि कांग्रेस गुजरात में 10 सीटों का भी आंकड़ा पार नहीं कर सकेगी। मतलब, आम आदमी पार्टी का लक्ष्य कांग्रेस के निपटने के भरोसे है और यह दोनों ही दलों के लिए ही बहुत बड़ा चैलेंज है!
'गुजरात दूसरे राज्यों की तरह नहीं है'
आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन को लेकर जितनी उत्सुकता चुनावी पंडितों को है,उतना ही गुजरात के लोगों को भी है। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने 'दिल्ली मॉडल' का खूब प्रचार-प्रसार किया है। उनके पार्टी के नेता-कार्यकर्ता भी वही कर रहे हैं। लेकिन, स्थानीय वोटरों की नजर में यह बिल्कुल ही नई पार्टी है, जिसको लेकर उनके मन से एक संदेह नहीं जा रहा है। जैसे कि राजकोट के प्रतीक भाई का कहना है, 'बीजेपी शासन की वजह से हमें कई सारी समस्याएं हैं। लेकिन, गुजरात दूसरे राज्यों की तरह नहीं है, जहां मुफ्त की बिजली-पानी की आवश्यकता है। मुझे पूरा यकीन है कि कुछ छिपा हुआ टैक्स होगा।'
मध्यम वर्ग के मन में अलग ही संदेह है
जबकि, शहरी इलाकों में रहने वाले मध्यम वर्ग के वोटरों को यह चिंता है कि मुफ्त की मार उनपर ही पड़ेगी। क्योंकि, गरीबों से जितने भी मुफ्त वाले वादे किए जा रहे हैं, वह किसी ना किसी रूप में उन्हें ही चुकाना पड़ेगा। सौराष्ट्र क्षेत्र में पहले ही चरण में 1 दिसंबर को वोटिंग होनी है। राज्य में दूसरे चरण में 5 दिसंबर को मतदान होगा और राज्य की सभी 182 सीटों के लिए 8 दिसंबर को वोटों की गिनती की जाएगी।