भाजपा के केशव पर भारी स्वामी की भाजपा?
लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी के कभी हिस्से रहे स्वामी प्रसाद मौर्या सोमवार को अमित शाह की मौजूदगी में भारतीय जनता पार्टी में शपथ लेकर शामिल हो गए। माना जा रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्या की भाजपा में एंट्री को लेकर केशव प्रसाद मौर्या बिलकुल भी खुश नहीं है। क्योंकि मौर्या समाज पर प्रभाव के आधार पर हो या फिर राजनीतिक अनुभव के आधार पर स्वामी का कद केशव से बड़ा है। ऐसे मे निश्चित तौर पर स्वामी को तवज्जो ज्यादा मिलेगी।
UP: भाजपा में शामिल हुए पूर्व बसपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या
ओम माथुर ने तैयार किया स्वामी के लिए रास्ता
पिछले डेढ़ माह में यूपी बीजेपी प्रभारी ओम माथुर ने स्वामी प्रसाद मौर्या की भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से दो बार मुलाकात कराई है। मौर्या का बीजेपी में आने का पूरा रास्ता ओम माथुर ने तैयार किया है।
स्वामी का केशव से प्रभाव ज्यादा
पार्टी नेतृत्व को पता है कि केशव मौर्य की तुलना में स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी कुर्मी जाति के बड़े नेता हैं। और उनका कुर्मी वोटर पर ज्यादा प्रभाव है। ओम माथुर समेत पार्टी का वरिष्ठ दल ये बात अच्छे से जानता है कि यूपी में कुर्मी जाति के लगभग 6 प्रतिशत वोट बैंक है, जिसका पूर्वी उत्तर प्रदेश की 100 से ज्यादा सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव है।
यूपी की सियासत का 'क्लाइमेट चेंज'
स्वामी प्रसाद मौर्या के द्वारा भाजपा के साथ गलबहियां करने के बाद सूबे में सियासी क्लाइमेट पूरी तरह से बदल चुका है। क्योंकि जहां एक ओर सपा के साथ यादव विरादरी पैतृक रूप से जुड़ी है, वहीं कांग्रेस नई-नई रणनीति के माध्यम से सभी दलों में सेंध लगाने का प्रयास कर रही है। रही बात बसपा की तो उसके साथ जाटव विरादरी मानी जाती है। ऐसे में मौर्या समाज भी अपने आगे चलने वाला एक बड़े नेता के लिए ख्वाब बुन रहा था, जिसे भाजपा ने खुद के साथ एकजुट करने के लिए स्वामी प्रसाद मौर्या को अपने खेमे में शामिल कर लिया है।
सपा-बसपा बदल सकते हैं अपनी रणनीति
भाजपा में स्वामी के शामिल होने के बाद सपा-बसपा अपनी रणनीतियों में बदलाव जरूर करेंगे। क्योंकि इस बात की उम्मीद की जा रही है कि भाजपा के साथ स्वामी के आने के बाद बसपा तो कमजोर हुई है साथ ही सपा पर भी चुनावों के मद्देनजर प्रभाव पड़ा है। हालांकि अब ये देखना दिलचस्प होगा कि स्वामी की कमी को बसपा किस तरह से पूरा करती है और सपा अपने खाते में किस नए वोट बैंक को जोड़ने की कवायद करेगी। इन तमाम फेरबदल के बाद एक बात तो साफ है कि यूपी का चुनाव जाति केंद्रित हो चुका है। जिसमें विकास पिछले पायदान पर खड़ा है।