इतिहास के पन्नों से- कृष्ण भक्ति में जो हो गया इब्राहीम से रसखान
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) क्या आपने सैयद इब्राहीम के संबंध में सुना है? कृष्णभक्ति शाखा के इस महान कवि ने अपना उपनाम 'रसखान' रखा। रसखान पर ही भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र ने लिखा था- इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिये!
अमरोहा में हुए पैदा
वे संवत 1630 में अमरोहा में पैदा हुए थे। उनके पिता वहां बड़े जागीरदार थे और तब दिल्ली में पठानों का राज था। उसी समय गदर पड़ा और पूरा दिल्ली शहर श्मशान में तब्दील हो गया।
हो गया वैराग्य
रसखान पर अध्ययन करने वाले शंभूनाथ शुक्ल कहते हैं कि सैयद इब्राहीम को वैराग्य हो गया और वे मथुरा के पास वृन्दावन चले गए तथा रसखान उपनाम से कविताएं लिखने और गाने लगे। कृष्णभक्ति शाखा के इस महान कवि ने अपना उपनाम 'रसखान' रखा अथवा "रस खाँ" इस पर मतभेद हैं। बहरहाल रसखान का जो चित्र नवलगढ़ रियासत के महाराजा संग्राम सिंह के यहां मिला उसमें फारसी में रसखान और नागरी में "रस खाँ" लिखा हुआ है। रसखान पर ही भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र ने लिखा था- इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिये!
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कृष्ण भक्ति
रसखान
के
बारे
में
कहा
जाता
है
कि
उन्होंने
सिर्फ
कृष्ण
भक्ति
की
ही
कविताएं
रचीं
पर
ऐसा
नहीं
है
प्रेम
पर
उनकी
उड़ान
अदभुत
थी।
प्रस्तुत
हैं
प्रेम
जैसे
अशरीरी
और
अमूर्त
तत्व
पर
रसखान
का
बखान-
प्रेम-अयनि
श्रीराधिका,
प्रेम-बरन
नँदनंद।
प्रेमवाटिका
के
दोऊ,
माली
मालिन
द्वंद्व।।1।।
प्रेम-प्रेम
सब
कोउ
कहत,
प्रेम
न
जानत
कोय।
जो
जन
जानै
प्रेम
तो,
मरै
जगत
क्यौं
रोय।।2।।
प्रेम
अगम
अनुपम
अमित,
सागर
सरिस
बखान।
जो
आवत
एहि
ढिग,
बहुरि,
जात
नाहिं
रसखान।।3।।
प्रेम-बारुनी
छानिकै,
बरुन
भए
जलधीस।
प्रेमहिं
तें
विष-पान
करि,
पूजे
जात
गिरीस।।4।।
प्रेम-रूप
दर्पन
अहो,
रचै
अजूबो
खेल।
यामें
अपनो
रूप
कछु
लखि
परिहै
अनमेल।।5।।
कमलतंतु
सो
छीन
अरु,
कठिन
खड़ग
की
धार।
अति
सूधो
टेढ़ो
बहुरि,
प्रेमपंथ
अनिवार।।6।।
लोक
वेद
मरजाद
सब,
लाज
काज
संदेह।
देत
बहाए
प्रेम
करि,
विधि
निषेध
को
नेह।।7।।
कबहुँ
न
जा
पथ
भ्रम
तिमिर,
दहै
सदा
सुखचंद।
दिन
दिन
बाढ़त
ही
रहत,
होत
कबहुँ
नहिं
मंद।।8।।
तो ये है भारत। एक मुसलमान का कृष्ण प्रेम।