खून की कमी से जूझ रहा है भारत, देश को चाहिए 35 टैंकर ब्लड
नई दिल्ली। अस्पतालों में समय पर खून न मिलने की वजह से अक्सर मरीजों की मौत होने के मामले सामने आते रहे हैं। यह समस्या देश के कई हिस्सों में है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में करीब 35 टैंकर ट्रक खून की जरूरत है। जबकि देश में ही कुछ जगहों पर खून जरूरत से इतना ज्यादा है इसे बर्बाद किया जा रहा है।
इंडिया स्पेंड की ओर से की गई एक स्टडी में पता चला है कि देश में करीब 11 लाख यूनिट खून की कमी है। जुलाई 2016 में यह जानकारी केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने लोकसभा में दी थी। एक यूनिट में करीब 350ml से 450 ml तक खून होता है। रिसर्च टीम ने डाटा को टैंकर में कन्वर्ट करके आंकड़े जुटाए। एक ट्रक अमूमन 11000 लीटर का होता है।
बिहार
में
सबसे
ज्यादा
खून
की
कमी
आंकड़ों
से
पता
चला
कि
भारत
में
खून
औसत
जरूरत
से
भी
9
फीसदी
कम
है।
हालांकि
2013
में
यह
आंकड़ा
17
फीसदी
था।
बिहार
में
सबसे
ज्यादा
खून
की
कमी
पाई
गई
है।
यहां
जरूरी
खून
में
84
फीसदी
कमी
दर्ज
की
गई
है।
जबकि
दूसरे
स्थान
पर
छत्तीसगढ़
(66
फीसदी)
और
फिर
अरुणाचल
प्रदेश
(64
फीसदी)
हैं।
छत्तीसगढ़
में
जरूरी
खून
में
कमी
9
गुनी
है।
जबकि
दिल्ली
में
तीन
गुनी,
दादर-नगर
हवेली,
मिजोरम
और
पुडुचेरी
में
खून
की
कमी
लगभग
दोगुनी
है।
पढ़ें: शारीरिक संबंध बनाने से किया इनकार तो प्रेमी के दोस्त ने कुल्हाड़ी से काट डाला
देश
के
कई
जिलों
में
नहीं
है
ब्लड
बैंक
देश
में
कुल
2708
ब्लैड
बैंक
हैं,
लेकिन
81
जिले
ऐसे
हैं
जहां
एक
भी
ब्लड
बैंक
नहीं
है।
छत्तीसगढ़
के
11
जिलों
में
ब्लड
बैंक
नहीं
है,
जबकि
असम
और
अरुणाचल
प्रदेश
के
9-9
जिलों
में
ब्लड
बैंक
उपलब्ध
नहीं
हैं।
बॉम्बे
ब्लड
बैंक्स
फेडेरेशन
की
चेयरपर्सन
और
पैथोलॉजिस्ट
जरून
भरूचा
ने
कहा
कि
समाज
में
ब्लड
डोनेशन
को
लेकर
लोग
जागरूक
नहीं
हैं।
उन्होंने कहा, 'ग्रामीण इलाकों में ब्लड की सप्लाई बेहद मुश्किल है। भारत में करीब 70 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है। हमें अत्यंत पिछड़े इलाकों में भी खून उपलब्ध कराने की जरूरत है।'
कलेक्शन
एजेंसी
न
होना
भी
एक
समस्या
खून
की
कमी
के
पीछे
एक
वजह
यह
भी
है
कि
इसके
लिए
अब
तक
कोई
सेंट्रल
कलेक्शन
एजेंसी
नहीं
है।
सारा
काम
ब्लड
बैंक
और
स्थानीय
सरकारों
पर
निर्भर
करता
है।
लगभग
इसी
समय
देश
के
कई
हिस्सों
में
ब्लड
डोनेशन
का
ग्राफ
ज्यादा
होता
है,
लेकिन
यह
भी
संयमित
नहीं
है।
भरुचा ने कहा, 'हमारे सामने दो मुद्दे हैं। पहला ये कि किसी इलाके में ब्लड डोनेशन में भारी कमी आएगी, क्योंकि देश में ब्लड डोनेशन का कल्चर नहीं है। एक शख्स ब्लड डोनेट करता है तो दूसरी बार वह कब करेगा पता नहीं होता। दूसरी मुद्दा ये है कि आपके पास ब्लड जरूरत से ज्यादा है, ऐसे में वह बर्बाद होगा।'
पढ़ें: देश में खोजा गया नया ब्लड ग्रुप, WHO ने किया प्रमाणित
महाराष्ट्र
में
बेकार
हो
गया
था
130000
लीटर
खून
मई
2016
में
एशियन
एज
की
एक
रिपोर्ट
में
बताया
गया
था
कि
जनवरी
2011
से
दिसंबर
2015
के
बीच
मुंबई
के
करीब
63
ब्लैड
बैंकों
ने
130000
लीटर
खून
बर्बाद
किया।
यह
आंकड़े
मुंबई
जिला
एड्स
कंट्रोल
सोसाइटी
की
ओर
से
एक
आरटीआई
के
जवाब
में
दिए
गए
थे।
आरटीआई
से
यह
भी
खुलासा
हुआ
था
कि
यह
खून
इसलिए
फेंकना
पड़ा
क्योंकि
लंबे
समय
तक
इसे
स्टोर
करके
रखा
गया
था।
NACO
ने
ब्लड
डोनेशन
में
बताई
बढ़त
विश्व
स्वास्थ्य
संगठन
(WHO)
की
गाइडलाइन
में
सभी
ब्लड
ग्रुप
के
डोनर्स
से
खुद
आकर
ब्लड
डोनेट
करने
के
लिए
कहा
गया
है।
नेशनल
एड्स
कंट्रोल
ऑर्गेनाइजेशन
(NACO)
की
रिपोर्ट
में
बताया
गया
है
कि
ब्लड
डोनेशन
में
2013-14
में
84
फीसदी
की
बढ़त
दर्ज
की
गई
थी
जो
2006
में
54
फीसदी
थी।
हालांकि
कई
एक्टिविस्ट
NACO
के
इस
दावे
के
खिलाफ
दिखे।
{image-20080415084234blood203 hindi.oneindia.com}
पेड
डोनेशन
पर
है
सुप्रीम
कोर्ट
की
रोक
सुप्रीम
कोर्ट
ने
1996
में
एक
आदेश
जारी
करके
पेड
डोनेशन
पर
रोक
लगा
दी
थी,
लेकिन
इसके
बावजूद
इसे
पूरी
तरह
रोका
नहीं
जा
सका।
अक्सर
खून
की
जरूरत
होने
पर
अस्पताल
मरीज
के
परिवार
के
सामने
'डोनर
रिप्लेसमेंट'
की
सलाह
भी
देते
हैं।
भरूचा ने कहा कि हर किसी परिवार में डोनर नहीं मिलता। इसलिए ऐसी शर्त आने पर वे पेड डोनर तलाशते हैं। पेड डोनर के सुरक्षित होने का भी कोई दावा नहीं किया जा सकता। कई बार डोनर पैसों की लालच में अपनी मेडिकल हिस्ट्री छुपा लेते हैं, जो दूसरों के लिए खतरनाक हो सकता है।
लाल
खून
का
काला
बाजार
खून
की
कमी
की
वजह
से
काला
बाजार
भी
तेजी
से
सक्रिय
हुआ
है।
बीबीसी
की
एक
रिपोर्ट
के
मुताबिक,
साल
2008
में
17
लोगों
को
किडनैप
कर
लिया
गया
और
उन्हें
ब्लड
डोनेट
करने
के
लिए
ढाई
साल
तक
मजबूर
किया
जाता
रहा,
ताकि
डोनर
ब्लड
बैंक
और
अस्पतालों
को
खून
बेच
सकें।
उन्हें
एक
सप्ताह
में
तीन
बार
ब्लड
डोनेट
करने
के
लिए
मजबूर
किया
जाता
था।
जबकि
मेडिकल
में
8-12
हफ्ते
में
सिर्फ
एक
बार
ब्लड
डोनेट
करने
की
सलाह
दी
जाती
है।
देश में जिस तेजी से खून की कमी बढ़ी है, हमें जरूरत है जागरूकता लाने की। भरूचा ने कहा, 'हमें समाज में रेगुलर ब्लड डोनेशन का कल्चर स्थापित करना होगा। हर तीन महीने में ब्लड डोनेट होने से न सिर्फ सप्लाई बल्कि सुरक्षा भी बढ़ेगी।'
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