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सितम्बर विश्व प्रोस्टेट जागरूकता माह है और प्रोस्टेट के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने और इस अत्यधिक निवारणीय रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने का एक सुनहरा अवसर है। सितंबर के महीने को पहली बार अमेरिकन फाउंडेशन फार यूरोलाजिकल डिजीज (ए एफ यू डी) ने 1999 में विश्व प्रोस्टेट स्वास्थ्य माह के रूप में मनाने का आहवान किया था। एएफयूडी अब अमेरिकन यूरोलाजिकल एसोसिएशन फाउंडेशन के नाम से जाना जाता है। मूलत: प्रोस्टेट स्वास्थ्य माह को मनाने का उददेश्य लोगों को प्रोस्टेट स्वास्थ्य से संबंधित मुददों के बारे में बेहतर ढंग से जानकारी उपलब्ध कराना एवं इस बारे में जागरूकता कायम करना है।
भारत में लिथोटि्रप्सी के जनक के नाम से विख्यात आर जी स्टोन यूरोलाजी एवं लैपरोस्कोपी हॉस्पिटल के अध्यक्ष तथा प्रबंध निदेषक डा. भीम सेन बंसल कहते हैं, ''प्रोस्टेट एक ग्रंथि है जो वीर्य को बनाने में मदद करता है। वीर्य वह तरल है जिसमें शुक्राणु होते हैं। प्रोस्टेट उस नली से जुड़ी होती है जो मूत्राशय से मूत्र को शरीर से बाहर निकालता है। एक युवा आदमी का प्रोस्टेट लगभग एक अखरोट के आकार का होता है। यह उम्र बढ़ने के साथ-साथ धीरे-धीरे बड़ा होता जाता है। बहुत बड़ा हो जाने पर यह समस्याएं पैदा कर सकता है।
यह 50 साल की उम्र के बाद बहुत सामान्य है। कुछ सामान्य समस्याओं में प्रोस्टेटाइटिस (एक तरह का संक्रमण जो आम तौर पर बैक्टीरिया के द्वारा पैदा होता है), बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लेसिया या बीपीएच (प्रोस्टेट का बड़ा होना, जिसमें मूत्र त्यागने के बाद भी मूत्र का टपकना या अक्सर विषेश कर रात में मूत्र त्यागने की इच्छा होना) और प्रोस्टेट कैंसर शमिल है। होलमियम लेजर इनुकिलयेशन आफ प्रोस्टेट (एचओएलर्इपी) तकनीक का इस्तेमाल बढ़ी हुर्इ प्रोस्टेट ग्रंथि के इलाज में मौजूदा समय में सबसे नवीन और सफल तकनीक है।
प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में सबसे सामान्य कैंसर है। सिर्फ अमेरिका में ही हर साल करीब ढार्इ लाख पुरुषों में इस कैंसर की पहचान होती है। अन्य कैंसर की तरह ही, प्रोस्टेट कैंसर का सफलता पूर्वक इलाज के लिए शुरुआती अवस्था में इसकी पहचान महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
प्रोस्टेट कैंसर के कारणों के बारे में बताते हुये डा. भीम सेन बंसल कहते हैं प्रोस्टेट कैंसर के कारण अज्ञात हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि हार्मोन, आनुवांशिक और आहार सबंधी कारक इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 50 साल की उम्र के बाद इसका खतरा तेजी से बढ़ता है। सभी प्रोस्टेट कैंसर का करीब एक तिहार्इ 65 साल से अधिक उम्र के पुरुषों में पाया जाता है। कुछ परिवारों में प्रोस्टेट कैंसर पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है। लाल मांस का अधिक सेवन करने वाले पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर होने का खतरा अधिक होता है। अधिक वसा युक्त दुग्ध उत्पादों वाले आहार का अधिक सेवन भी इस खतरे को बढ़ा देता है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि इन खादय पदार्थों का सेवन इस खतरे को क्यों बढ़ाता है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि मोटे पुरुषों में अधिक आक्रामक प्रोस्टेट कैंसर होने का खतरा अधिक होता है।
लक्षण और उपचार :
डा. भीम सेन बंसल के अनुसार प्रोस्टेट ग्रंथि दो अलग-अलग तरीकों से बढ़ती है। पहले प्रकार की वृद्धि में, कोशिकाएं मूत्रमार्ग के आसपास गुणित होती हैं और इस पर उसी प्रकार का दबाव डालती हैं, जैसे आप एक स्ट्रा को दबा सकते हैं। दूसरे प्रकार की वृद्धि प्रोस्टेट के मध्य हिस्से में होती है, जिसमें कोशिकाएं मूत्र मार्ग और मूत्राशय के बाहरी क्षेत्र में वृद्धि करती हैं।
इस प्रकार की वृद्धि में आम तौर पर सर्जरी की आवश्यकता होती है। मूत्र में रक्त का आना (यानी रक्तमेह : हीमैटुरिया), जो मूत्राशय को पूरी तरह से खाली करने के लिये जोर लगाने पर होता है, मूत्र त्यागने के बाद भी मूत्र का टपकना, यहां तक कि मूत्र त्यागने के बाद भी यह महसूस होना कि मूत्राशय पूरी तरह से खाली नहीं हुआ है, बार-बार विशेषकर रात में बार-बार मूत्र त्यागना, मूत्र त्यागते समय रुक-रुक कर मूत्र का निकलना, कम आवेग के साथ रुक-रुक कर या कमजोर धारा के साथ मूत्र का निकलना, मूत्र का रिसाव, मूत्र त्यागने के लिए बार-बार दबाव लगाना या शकित लगाना, अचानक मूत्र त्यागने की इच्छा होना आदि इसके लक्षण हैं।
प्रोस्टेट कैंसर के लक्षण अक्सर बिनाइन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लेसिया (बीपीएच) के समान ही होते हैं। पुरुषों को मूत्र या वीर्य में रक्त आने, बार-बार विषेशकर रात में बार-बार मूत्र त्यागने, मूत्र त्यागने में परेशानी, कमर, कुल्हों, जांघ के ऊपरी हिस्सों या पेलिवस में दर्द या जकड़न, दर्दनाक स्खलन, मूत्र त्यागने के दौरान दर्द या जलन और मूत्र के प्रवाह के कमजोर या रुक-रुक कर आने जैसे लक्षण होने पर अपने चिकित्सक को दिखाकर पूर्ण परीक्षण कराना चाहिए।
शल्य उपचार के विशय में डा. भीम सेन बंसल जानकारी देते है कि होलमियम लेजर इनुकिलयेषन आफ प्रोस्टेट (एचओएलर्इपी) तकनीक का इस्तेमाल बढ़ी हुर्इ प्रोस्टेट ग्रंथि के इलाज में किया जाता है। इस प्रक्रिया में, एक 550 माइक्रान फाइबर युक्त एक 100 वाट होलमियम लेजर मशीन का इस्तेमाल प्रतिरोधी प्रोस्टेटिक ऊतक को हटाने और रक्त वाहिकाओं को बंद करने के लिए किया जाता है।
उसके बाद इनुकिलयेटेड ग्रंथि को मूत्राशय के अंदर कर दिया जाता है, जिसे बाद में मोरसीलेटर नामक उपकरण की मदद से खींचकर बाहर निकाल दिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में करीब 45-90 मिनट का समय लगता है, जो ग्रंथि के आकार पर निर्भर करता है। इस प्रक्रिया में रक्त नहीं के बराबर निकलता है। जब लेजर किरणें ग्रंथि को काटती हैं तो रक्त वाहिकाओं को बंद भी करती हैं। अधिकतर मामलों में रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं होती है।
प्रोस्टेट कैंसर का इलाज रोगी की अवस्था और रोगी की उम्र और उसके पूरे स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। प्रोस्टेट कैंसर का सर्जरी से इलाज रेडिकल प्रोस्टेटेक्टोमी और बाइलैटेरल आर्किडेक्टोमी के जरिये किया जाता है। रेडिकल प्रोस्टेटेक्टोमी के तहत प्रोस्टेट ग्रंथि और सेमिनल वेजाइकल्स और पेलिवक लिम्फ नोडस सहित आसपास के ऊतकों को सर्जरी से निकाल दिया जाता है। प्रोस्टेट रोगियों का खान पान के बारे में डा. भीम सेन बंसल ने बताया कि चार कप काफी और एक सेब का नियमित सेवन करने से इस रोग के होने की सम्भावना न के बराबर रहती है।
स्वास्थ्य शोधकर्ताओं के अनुसार आहार संतुलित आहार प्रोस्टेट को स्वस्थ्स को बनाये रखने में एक आवष्यक भूमिका निभाता है और साथ ही प्रोस्टेट कैंसर की रोकथाम में भी मददगार साबित होता है। सबिजयां जैसे की ब्रोकोली, फूलगोभी, जिन में आइसोथियोसाइनेट अधिक मात्रा में होता है व मछली प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को कम करने मे सहायक होता है। सोया उत्पाद भी प्रोस्टेट को बढ़नें से रोकने में मदद करते हैं और टयूमर के विकास को धीमा करते है।
इसके अलावा विटामिन र्इ भी प्रोस्टेट सूजन को कम करने में मदद करता है और कैंसर से बचाने में सहायक है। फेंटा हुआ मक्खन, वनस्पति तेल, गेहूं के बीज और साबुत अनाज भी प्रोस्टेट को रोकने और उसको न बढ़ने देने में काफी मददगार सिद्ध होते हैं। इसके साथ साथ टमाटर बहुत ज्यादा फायदेमंद है। प्रोस्टेट के रोगियों को अधिक मात्रा मे तरल पदार्थ का सेवन करना चाहिये । जिन रोगियों को प्रोस्टेट एन्लात्र्गेमेंट की षिकायत है उन्हे अल्कोहल से दूर रहना चाहिये। मसालेदार खाना और कैफीन का सेवन भी करना प्रोस्टेट रोगी के लिए खतरनाक सिद्व हो सकता है।