इस एक शख्स की वजह से मोहम्मद रफी की चमकी थी किस्मत, मिला था बॉलीवुड में गाने का मौका
Mohammad Rafi Birth Anniversary: 13 साल की उम्र में पहली बार मोहम्मद रफी स्टेज पर चढ़े तो उन्हें देखकर लोग हैरान हो गए थे। उनकी आवाज सुन लोग मंत्रमुग्ध हो गए थे।
Mohammad Rafi Birth Anniversary: बॉलीवुड के महान गायकों में से एक मोहम्मद रफी की आवाज के आज भी लोग दीवाने हैं। आज की पीढ़ी के प्लेलिस्ट में भी मोहम्मद रफी के कई गाने शामिल हैं। गायिकी के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी का आज 98वां जन्मदिवस है। साल 1924 में आज के ही दिन अमृतसर के कोटला सुल्तान सिंह में रहने वाले हाजी अली मोहम्मद के घर पर महान सिंगर मोहम्मद रफी ने जन्म लिया था। उस वक्त किसी को नहीं पता था कि ये बच्चा एक दिन बड़ा होकर शहंशाह ऐ तरन्नुम के नाम से जाना जाएगा। मोहम्मद रफी जब 7 साल के थे तो उनका पूरा परिवार काम के सिलसिले में लाहौर में शइफ्ट हो गया था। मोहम्मद रफी के बड़े भाई लाहौर ही नाई की दुकान चलाते थे। आइए आज उनके जन्मदिवस के खास मौके पर आपको बताते हैं कि दुकान पर काम करने वाले मोहम्मद रफी आखिर किस तरह से संगीत की दुनिया के बादशाह बने और किस शख्स ने इस राह पर उनकी मदद की।
सूफी फकीर से मिली गाने की प्रेरणा
आपको बता दें कि मोहम्मद रफी का मन पढ़ाई लिखाई में कभी नहीं लगता था इसीलिए कम उम्र से ही वह भाई के साथ दुकान में हाथ बंटाते थे। मोहम्मद रफी जब दुकान का काम सीख रहे थे उसी दौरान उनके जीवन में एक सूफी फकीर फरिश्ता बनकर आए। ये फकीर गली में गाकर अपना गुजारा करते थे। फकीर की मधुर आवाज सुनकर मोहम्मद रफी का दिल खुश हो जाता था। वह बार बार फकीर को सुनते थे। उस फकीर से ही प्रेरणा लेकर मोहम्मद रफी ने उनकी नकल करना शुरू कर दिया था। इसके बाद मोहम्मद रफी खुद भी थोड़ा थोड़ा गाने लगे थे।
13 साल की उम्र में स्टेज पर गाया पहला गाना
साल 1931 में लाहौर में आकाशवाणी पर प्रसिद्ध गायक कुंदन लाल सहगल को गाने के लिए आमंत्रित किया गया था। सहगल जी को सुनने के लिए वहां लोगों की भीड़ लग गई थी। लेकिन प्रोग्राम के बीच में अचानक बिजली चली गई और कुंदन लाल सहगल ने गाना गाने से इनकार कर दिया। यही वो घड़ी थी जब मोहम्मद रफी को गाने का पहला मौका मिला था।
लोग उनकी आवाज में कहीं खो गए
मोहम्मद रफी के बड़े भाई ने आयोजकों से निवेदन कर उन्हें गाने का मौका देने के लिए तैयार कर लिया था। 13 साल की उम्र में पहली बार मोहम्मद रफी स्टेज पर चढ़े तो उन्हें देखकर लोग हैरान हो गए थे। इसके बाद जब मोहम्मद रफी ने गाना शुरू किया और चारों तरफ बस उनकी ही आवाज गूंज रही थी। लोग उनके गानों में डूब गए थे। गाना पूरा होने के बाद लोगों ने जमकर तालियां बजाई थीं। इसके बाद मोहम्मद रफी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
ऐसे हुई फिल्मी सफर की शुरुआत
साल 1944 में मोहम्मद रफी को पंजाबी फिल्म गुल बलोच में गाना गाने का मौका मिला था। इसके बाद मोहम्मद रफी साल 1946 में मुंबई पहुंच गए थे। मुंबई में संगीत की साधना शुरू करने वाले मोहम्मद रफी को संगीतकार नौशाद ने पहला मौका दिया था और फिल्म में प्लैबैक सिंगिंग का अवसर प्रदान किया था। इसके बाद से ही मोहम्मद रफी ने फिल्मों में गाना शुरू कर दिया और अनमोल घड़ी, मेला, दुलारी और शहीद जैसी फिल्मों में कई हिट गाने दिए।
कई भाषाओं में गाए थे गाने
आपको बता दें कि मोहम्मद रफी ने दिलीप कुमार और देवानंद जैसे सुपरस्टार्स के लिए कई गाने गाए हैं। टीवी पर अपने चहीते सितारों को देखने वाले मोहम्मद रफी अब खुद एक सेलिब्रिटी बन गए थे। मोहम्मद रफी ने चौदहवीं का चांद हो, मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की कसम, चाहूंगा मैं तुझे , छू लेने दो नाजुक होठों को जैसे कई सुपरहिट गाने गाए हैं। मोहम्मद रफी ने अपने करियर में हिंदी के अलावा असमी, कोंकणी, भोजपुरी, ओड़िया, पंजाबी, बंगाली, मराठी, सिंधी, कन्नड़, गुजराती, तेलुगू, माघी, मैथिली, उर्दू, के साथ साथ इंग्लिश, फारसी, और अरबी भाषा में 4516 से ज्यादा गानों को अपनी आवाज दी है।