भिलाई निगम से नहीं छट रहे संकट के बादल, अब आय बढ़ाने का बना रहे प्लान, क्या इन कारणों से खाली हुआ खजाना!
नगर पालिक निगम भिलाई में आर्थिक संकट के बादल छटने का नाम नहीं ले रहे हैं। निगम में विकास कार्य ठप्प हैं तो वहीं निगम की देनदारियां भी बढ़ती जा रहीं हैं। कर्मचारियों के वेतन भुगतान के लिए हर माह संघर्ष करना पड़ रहा है। अब निगम कोष में आय बढ़ाने के उपायों पर विचार किया जा रहा है। स्वयं के आय से स्थापना व्यय वहन करने वाले निगम के खजाने की बात करें तो बीते 10 वर्षों में ही खराब हुए हैं। आइए इनके प्रमुख कारणों से आपको अवगत करातें हैं।
करोड़ों की देनदारियां निगम के पास
भिलाई निगम की देनदारी की बात की जाए तो निगम का पानी और बिजली बिल भी लगभग 40 करोड़ तक पहुंच गया है। निगम को कई बार नोटिस भी मिल चुका है। इसके अलावा स्लाटर हाउस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को पेनाल्टी सहित लगभग 4 करोड़ की राशि का भुगतान निगम को करना है। इस मामले में NGT के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी भी निगम कर रहा था। निर्माण कार्यों से संबंधित ठेकेदारों की करोड़ों की देनदारियां भी निगम पर है। इसके अलावा निगम विकास कार्यों के लिए 14 वे और 15 वे वित्त कर पैसे पर निर्भर है। राज्य सरकार की योजनाओं और अन्य खर्चों का बोझ भी निगम पर है।
निगम की अर्थव्यवस्था बिगड़ने के मुख्य कारण
निगम के अर्थव्यवस्था खराब होने के मुख्य कारणों की बात की जाए तो पहला बड़ा कारण पुरानी स्व विवरणी के अनुसार सम्पत्तिकर की वसूली है। जबकी साल 2011 के बाद से शहर की जनसँख्या और संरचनाओं में तेजी से इजाफा हुआ है। इसके आलवा भु-भाटक, तालाबों, बाजारों की नीलामी पर रोक, चुंगीकर में कमी, सम्पत्ति कर में दिया गया 50 प्रतिशत छूट, विज्ञापन बोर्ड से आय में कमी, निगम मद, ब्याज मद, पर्यावरण मद, अधोसंरचना मद से कराए गए टेंडर व विकास कार्यों के कारण आज भिलाई निगम की अर्थ व्यवस्था बदहाल हो चुकी है। भिलाई इस्पात संयंत्र से निगम के खराब हुए रिश्ते भी इसके मुख्य कारण है। जिसके कारण मिलने वाला लगभग 8 से 9 करोड़ रुपये का राजस्व बन्द हो चुका है। फिलहाल निगम और बीएसपी का मामला न्यायालय में लंबित है।
कोरोना काल में भी खजाने पर पड़ा असर
कोरोना काल में राजस्व की आय लगभग पूरी तरह खत्म हो चुकी थी। इसके साथ ही कर्मचारियों का वेतन भुगतान निगम कोष से ही किया जा रहा था। कोरोना काल में आपदा प्रबंधन का भी खर्चा भी लगातार बढ़ता ही जा रहा था। इसके अलावा निगम में सफाई ठेके में हर साल खर्च होने वाले करोड़ो रूपये की राशि को कम करने में निगम सफ़ल नहीं हो सका है। डीजल, सफाई कार्य के संसाधनों में बेहताशा वृद्धि हुई है।
सूडा से अब तक नहीं मिली 10 करोड़ की राशि
दरअसल सूडा को सीटी बस खरीदी के लिए मई 2015 में 10 करोड़ रुपए की राशि दो किस्तों में दी गई थी। यह राशि संचित निधि से दी गई थी। उस दौरान संचित निधि में 37 करोड़ रुपए थे। सिटी बस खरीदे गए लेकिन 3 साल में ही सिटी बस सेवा बन्द हो गई। लेकिन अब तक राज्य शहरी विकास अभिकरण ने यह बड़ी राशि नहीं लौटाई गई है। निगम कमिश्नर ने वेतन के लिए इस राशि की मांग की है। इसके अलावा अन्य कमिश्नरों द्वारा भी लगातार सूडा से मांग की जा रही थी।
रायपुर की तर्ज पर ड्रोन से होगा सर्वे
निगम प्रशासन और महापौर ने निगम की राजस्व वसूली में कमी को इसका कारण बताया है। राजस्व वसूली वाली कम्पनी की समय सीमा समाप्त होने के बाद कम्पनी को रिपीट न करने के प्रस्ताव पर भी मेयर की एमआईसी ने सहमति दे दी है। जिसके बाद अब रायपुर निगम की तर्ज पर वर्ल्ड बैंक परियोजना अंतर्गत संपत्ति सर्वे का कार्य किया जाएगा, संपत्ति का ड्रोन सर्वे भी होगा और जीआईएस मैप तैयार कर डिजिटल डोर नंबर जारी किया जाएगा। इससे निगम के राजस्व में वृद्धि की उम्मीद जताई जा रही है। भिलाई में संपत्ति के सर्वे कार्य के लिए एजेंसी भी तय कर ली गई है। शीघ्र ही इस पर कार्य प्रारंभ हो जाएगा। उपायुक्त नरेंद्र बंजारे ने बताया कि जीआईएस मैप से कोई भी भवन इससे अछूते नहीं रहेंगे, उनका एरिया, लोकेशन, क्षेत्रफल सभी की जानकारी इससे मिल जायेगी, स्व विवरणी की जांच में भी आसानी होगी।
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