शवों से पटे पड़े दिल्ली के शवदाहगृह, अंतिम संस्कार के लिए किया जाएगा कुत्ता श्मशान का इस्तेमाल
राजधानी दिल्ली में कोरोना से हर दिन भारी संख्या में लोग मर रहे हैं। आलम यह है कि श्मयान घाटों में शवों को अंतिम संस्कार से गुजरने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है।
नई दिल्ली, 28 अप्रैल। राजधानी दिल्ली में कोरोना से हर दिन भारी संख्या में लोग मर रहे हैं। आलम यह है कि श्मयान घाटों में शवों को अंतिम संस्कार से गुजरने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। एक साथ कई-कई लाशों को जलाया जा रहा है। दिल्ली सहित देश के ज्यादातर श्मशान घाटों की कमोवेश यही स्थिति है। हालात ये हैं कि श्मशान घाट के प्रबंधक लोगों से 14 से 20 घंटे के बाद शव का अंतिम संस्कार करने के लिए दोबारा आने के लिये कह रहे हैं। वे मजबूर हैं, एक बार लाशें पूरी तरह से जल नहीं पातीं की उतनी ही लाशें फिर से अंतिम संस्कार के लिए तैयार हो जाती हैं। श्मशान घाटों से रात-दिन धुंआ उठ रहा है। दिल्ली के मेसी शवदाहगृह की मालकिन विनीता मेसी ने कहा कि, 'ऐस मंजर उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। लोग अपने प्रियजनों के शवों के साथ इधर उधर भाग रहे हैं। दिल्ली के लगभग सभी शवदाहगृहों में शवों की बाढ़ सी आ गई है।'
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस महीने दिल्ली में अब तक 3,601 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें से 2,267 मौतें पिछले सात दिनों में हुई हैं, जोकि एक डरावना आंकड़ा है। कोरोना से अपनों को खोने का दर्द जो है वो तो है ही इसके साथ-साथ उनका ठीक से अंतिम संस्कार न कर पाने का मलाल भी लोगों को कचोट रहा है।
लोग श्मशान घाट तक शवों को लेकर जाते हैं और आनन-फानन में उन्हें अग्नि के हवाले कर के वापस लौट रहे हैं। अपनों को ठीक से अंतिम विदाई देने का भी उन्हें समय नहीं दिया जा रहा। क्योंकि एक के बाद एक लाश अंतिम संस्कार के लिए तैयार खड़ी है।
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इस
समय
उन
लोगों
के
परिजनों
के
लिए
भी
दर्द
कम
नहीं
है
जो
बिना
कोरोना
संक्रमण
के
मारे
गये।
अमन
अरोरा
की
कहानी
कुछ
यही
बयां
कर
रही
है।
अमन
कहते
हैं
कि
मेरे
पिताजी
के
सीने
में
एकदम
से
दर्द
उठा।
हम
उन्हें
अस्पताल
लेकर
गये,
लेकिन
वहां
के
स्टाफ
ने
कहा
कि
आपको
कोरोना
की
रिपोर्ट
पेश
करनी
होगी।
पापा
के
पास
इतना
समय
नहीं
था
और
वो
दुनिया
से
चले
गये।
इसके बाद जब अमन अपने पिता का शव श्मशान घाट लेकर पहुंचे तो उनसे कहा गया कि आपको अगले दिन की सुबह तक इंतजार करना होगा। उनके पास कोई चारा नहीं था। अपने पिता के शव को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने बर्फ का इंतजाम किया।
अमन ने कहा श्मशान में लाशों के ढेर लगे हुए थे हमारे पास इंतजार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था। इसलिए हमने पापा के शव को अगले दिन तक सुरक्षित रखने के लिए 1 फ्रिज किराये पर लिया।
लाशों के अंबार से शवदाहगृहों का स्टाफ भी परेशान हो चुका है। इतने परेशान की अब उन्हें किसी मृतक के परिजन का दुख भी दिखाई नहीं दे रहा। दिल्ली के एक शवदाहगृह के एक युवा कर्मी ने एक मृतक के परिजन से कहा, 'अपनी लाश उठाओ और उधर लाइन में जा के खड़े हो जाओ' ये तो चंद उदाहरण है, ऐसे केसों की फेहरिस्त बहुत लंबी है।
40 वर्षीय मनमीत सिंह बताते हैं कि वह अपने पिता गुरुपाल सिंह के शव को अपनी कार से सुभाष नगर शवदाहगृह लेकर गया। लेकिन वहां के स्टाफ ने विनम्रतापूर्वक मुझसे कहा कि आपके पिता का अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता क्योंकि शवदागृह पहले से ही फुल है। वह सीएनजी से चलने वाला शवदाहगृह था जिसमें एक बार में दो लोगों का ही अंतिम संस्कार किया जा सकता है। सीएनजी चैंबर में शव को डिस्पोज करने में लगभग 90 मिनट का समय लगता है। मनमीत के पास वहां से जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। अंतत: वह पश्चिम विहार स्थित एमसीडी के शवदाहगृह पहुंच और सौभाग्यवश उन्हें वहां जगह मिल गयी। ये स्थिति खाली दिल्ली की नहीं अमूमन हर राज्य हर जिले की है।
अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल होगा कुत्ता श्मशान
दिल्ली के श्मशान घाटों में अंतिम संस्कार के लिए जगह की कमी के बीच द्वारका सेक्टर-29 में बन रहे राज्य के पहले कुत्ता श्मशान घाट का इस्तेमाल किया जाएगा। दक्षिणी दिल्ली नगर निगम इस बात पर विचार कर रहा है। नगर निगम के एक अधिकारी ने कहा कि श्मशान घाटों में शवों की आमद 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ गई है इसलिए यहां एक अस्थाई शवदाहगृह बनाने का विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अभी यह श्मशान उपयोग में नहीं है। लगभग 6 महीने पहले प्रशासन ने इस जगह को जानवरों का शव दफनाने के लिए मंजूरी दी थी।