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COP27: आशाओं और निराशाओं का जलवायु सम्मेलन

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Provided by Deutsche Welle

खींचतान तो बहुत हुई लेकिन जलवायु परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार झेल रहे देश शर्म अल शेख से अच्छी खबर लेकर गए. लेकिन कार्बन उत्सर्जन के मुद्दे पर कई लोग निराश हैं.

मिस्र में 27वां जलवायु सम्मेलन रविवार तड़के 'लॉस एंड डेमेज' डील के साथ संपन्न हुआ. लंबे समय से विकासशील और गरीब देश मांग कर रहे थे कि उन्हें जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई की जाए. इसी के इर्द गिर्द 'लॉस एंड डेमेज' की पूरी बहस चल रही थी. इसके तहत पांरपरिक तौर पर कार्बन उत्सर्जन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार देशों को यह मदद मुहैया करानी होगी. इस मुद्दे पर इतने मतभेद थे कि शुक्रवार को खत्म होने वाले सम्मेलन को एक दिन आगे बढ़ाना पड़ा और रविवार तड़के जाकर डील पर सहमति बनी. इसके तहत एक 'लॉस एंड डेमेज' फंड बनाया जाएगा.

मील का पत्थर

पाकिस्तान की जलवायु परिवर्तन मंत्री शेरी रहमान ने इस डील को दशकों पुराने संघर्ष के बाद पहला सकारात्मक 'मील का पत्थर' बताया है. जलवायु परिवर्तन का खतरा झेल रहे 55 देशों की तरफ से पेश एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते दो दशक में बदलते मौसम की वजह से उनका जो नुकसान हुआ है, वो 525 अरब डॉलर के आसपास है. कुछ रिसर्चरों का कहना है कि 2030 तक यह नुकसान प्रति वर्ष 580 अरब डॉलर हो सकता है.

इसीलिए अमेरिका और यूरोपीय संघ की लॉस एंड डेमेज के मुद्दे पर आपत्ति थी. उन्हें डर था कि यह देन दारियां बढ़ती ही जाएगी. लेकिन शर्म अल शेख के जलवायु सम्मेलन में उन्होंने अपना रुख बदल लिया. यूरोपीय संघ की दलील है कि चीन अब दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अभी कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों में सबसे ऊपर है, इसलिए उसे भी इस फंड में योगदान देना चाहिए. लेकिन चीन ने ऐसा कोई वादा नहीं किया है. चीन के मुताबिक उसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अब भी कम है और हाल तक समूचे कार्बन उत्सर्जन में उसका योगदान काफी कम रहा है.

पृथ्वी 'इमरजेंसी रूम में'

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा है कि शर्म अल शेख में हुई वार्ता में लॉस एंड डेमेज फंड के जरिए न्याय की तरफ एक अहम कदम बढ़ाया गया है, लेकिन उनके मुताबिक कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य पर इस सम्मेलन में पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने कहा, "हमारा ग्रह अब भी इमरजेंसी रूम में है. हमें कार्बन उत्सर्जन में बहुत बड़ी कटौती करनी होगी और यह ऐसा मुद्दा है जिस पर इस जलवायु सम्मेलन में ध्यान नहीं दिया गया." ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भी कहा है, "और ज्यादा काम करने की जरूरत है."

पृथ्वी की तापमान औद्योगिकरण से पहले स्तर के मुकाबले अब तक 1.2 प्रतिशत बढ़ गया है और दुनिया पहले ही जलवायु परिवर्तन की तबाहियों का गवाह बन रही है. इसीलिए वैज्ञानिक जोर दे रहे हैं कि इस सदी के आखिर तक तापमान में यह वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. इसके लिए दुनिया के बड़े पैमाने पर उत्सर्जन में कटौती करनी होगी. अभी जिस पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाने वाले जीवाश्म ईंधनों की इस्तेमाल हो रहा है, उसे देखते हुए अगले दस साल में ही 1.5 डिग्री की सीमा पार हो सकती है.

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने ट्वीट कर कहा, "लॉस एंड डेमेज के लिए फंड बहुत जरूरी है, लेकिन अगर जलवायु संकट ने किसी छोटे द्वीपीय देश को नक्शे से मिटा दिया या किसी पूरे अफ्रीकी देश को रेगिस्तान में बदल दिया तो यह फंड उत्तर नहीं है."

उन्होंने कहा है कि जलवायु महत्वकांक्षा के मुद्दे पर दुनिया को बहुत बड़ी छलांग लगाने की जरूरत है.

Source: DW

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English summary
cop27 summit strikes historic deal on loss and damage fund
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