जीएसटी भुगतान की स्थिति में नहीं केंद्र सरकार, जानिए क्या असर होगा राज्यों पर
नई दिल्ली। कोरोना महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया है। मंगलवार को संसदीय स्थायी समिति की बैठक में केंद्रीय वित्त सचिव अजय भूषण पांडे ने कहा कि सरकार वर्तमान राजस्व बंटवारे के फार्मूले के अनुसार राज्यों के जीएसटी हिस्से का भुगतान करने की स्थिति में नहीं है। वित्तीय मामलों पर गठित एक संसदीय समिति के विपक्षी दलों के सदस्य वित्त सचिव अजय भूषण पांडे के एक कथित बयान को लेकर भड़के हुए हैं।
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जीएसटी कानून के मुताबिक यह तय किया गया था कि इस सिस्टम को लागू करने से राज्यों को राजस्व का जो नुकसान होगा उसकी भरपाई केंद्र सरकार करेगी। आधार वर्ष 2015-16 को मानते हुए यह तय किया गया कि राज्यों के इस प्रोटेक्टेड रेवेन्यू में हर साल 14 फीसदी की बढ़त को मानते हुए गणना की जाएगी। पांच साल के ट्रांजिशन पीरियड तक केंद्र सरकार महीने में दो बार राज्यों को मुआवजे की रकम देगी।
केंद्र सरकार द्वारा जीएसटी हिस्से के भुगतान ना करने पर केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक ने बुधवार को कहा कि माल एवं सेवा कर (जीएसटी) की क्षतिपूर्ति के भुगतान के कानून में कोई भी बदलाव संघीय विश्वास के साथ एक बड़ा धोखा होगा। कई राज्य जीएसटी मुआवजे की आवश्यकता के बारे में मुखर रहे हैं। जून में, तेलंगाना के वित्त मंत्री हरीश राव ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से कहा था कि सरकार राज्य के राजस्व में भारी कमी आई है, केंद्र सरकार फंड जारी करे।
अप्रैल और मई के महीनों में लॉकडाउन के कारण राज्यों ने जीएसटी राजस्व में तेजी से गिरावट देखी गई है। राज्यों की वित्तीय क्षमता इस समय महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्यों के खर्च बढ़ गया है क्योंकि उन्हें कोरोना वायरस के इलाज के लिए अधिक पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। जीएसटी में राज्यों के कर राजस्व का लगभग 60% शामिल होता है और इसलिए यह मुआवजा राज्य के वित्त में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। महामारी से पहले राज्य आर्थिक मंदी जूझ रहे थे, ऐसे में जीएसटी मुआवजा ना मिलने के कारण उनके सामने संकट खड़ा हो गया है।
राज्यों में राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत शराब है। लॉकडाउन के कारण शराब की बिक्री में भारी कमी देखने को मिली थी। दूसरी ओर केंद्र द्वारा तेल की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी के चलते राज्य सरकारों के पास टैक्स जुटाने के रास्ते ओर संकरे हो गए हैं। लेकिन इन सबस से मिलने वाला पैसा राज्यों के लिए काफी नहीं होता है। राज्यों ने वेतन में कटौती की है, शराब पर करों में वृद्धि की है, और कर्नाटक जैसे राज्यों ने भी धन जुटाने के लिए 12,000 आवास स्थलों की नीलामी करने का फैसला किया है।
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