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बिहार में पीले सोने की आंच से दागदार हो रही अफसरशाही

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नई दिल्ली, 27 जुलाई। बिहार में बालू के अवैध खनन में माफिया और अधिकारियों पर कार्रवाई हुी है. लेकिन, जैसा कि पहले भी होता रहा है, कार्रवाई की गाज अफसरों पर ही गिरी, सफेदपोश बच निकले. बालू के अवैध उत्खनन तथा माफिया से साठगांठ के आरोप में दो पुलिस अधीक्षकों (एसपी) समेत परिवहन, खान व भूतत्व, पुलिस तथा राजस्व व भूमि सुधार विभाग के 41 अधिकारियों को पदों से हटा दिया गया. इस संबंध में कार्रवाई अभी जारी है.

Provided by Deutsche Welle

आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) द्वारा बालू लूट में संलिप्तता के आरोपी इन 41 अफसरों की संपत्ति की जांच की जाएगी और अवैध संपत्ति का साक्ष्य मिलने पर इनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाएगा. ईओयू ने इसके लिए तीन दर्जन अधिकारियों की टीम बनाकर कार्रवाई शुरू कर दी है. भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति वाले बिहार में किसी एक मामले में पहली बार इतने अधिकारियों के खिलाफ संपत्ति जांच की कार्रवाई की जा रही है.

दरअसल, दो साल पहले तक बिहार के 24 जिलों में बालू का खनन हो रहा था. इन जिलों में बालू घाटों की बंदोबस्ती की गई थी यानी सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को खनन का पट्टा दिया गया था. किंतु, 2020-24 की बंदोबस्ती के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति नहीं मिली. तब राज्य सरकार ने एक व्यवस्था के तहत 2015-19 के बालू ठेकेदारों को बंदोबस्ती की राशि में 50 फीसद की वृद्धि के साथ खनन की इजाजत दे दी.

लेकिन 14 जिलों के ठेकेदार ही इस व्यवस्था से बालू घाटों के संचालन के लिए सहमत हुए. साल 2021 के लिए 30 मार्च के बाद बंदोबस्त की पुरानी राशि में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी के बाद सरकार ने फिर से खनन का पट्टा दिया, लेकिन महज आठ जिलों के बंदोबस्त धारी ही इसके लिए तैयार हुए.

2020-24 की बंदोबस्ती के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति नहीं मिली है पर अवैध खनन जारी है

सरकारी व्यवस्था के अनुसार अब केवल नवादा, किशनगंज, बांका, मधेपुरा, वैशाली, बक्सर, बेतिया व अरवल में बालू खनन हो रहा है. किंतु वास्तविक स्थिति इसके उलट है. शेष 16 जिलों में भी बालू के अवैध उत्खनन का कार्य बदस्तूर जारी है. इससे बालू माफिया की चांदी हो गई है. सरकार के पास आठ जिले हैं तो उनके पास 16 जिले हैं.

अवैध कमाई का गणित

जानकार बताते हैं कि बालू खनन का मौजूदा तौर-तरीका ही अवैध कमाई को प्रोत्साहित करने वाला है. पिछले तीन साल में सरकार ने ठेके की राशि में ढाई गुणा वृद्धि की, किंतु सरकार की आमदनी घट गई. साफ है, बालू माफिया और अवैध कारोबारियों की आमदनी बढ़ती गई.

ऐसा इसलिए संभव हुआ कि इन इलाकों में ये वैध बंदोबस्त धारियों की दर से ही अवैध उत्खनन कर बालू की बिक्री करने लगे. बालू के इस खेल में जनता ने तो महंगा बालू खरीदा, लेकिन सरकार का राजस्व नहीं बढ़ा.

लूट की गणित का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रेत माफिया के दो माह के कमाई के बराबर सरकार के पूरे साल की आमदनी है. जाहिर है, जनता का पैसा इन लुटेरों की जेब में ही गया. सबसे बेहतर रेत के रूप में विख्यात सोन नदी के पीले बालू का सबसे बड़ा स्त्रोत भोजपुर जिले का कोईलवर क्षेत्र है. सरकार की नजर में इस इलाके में बालू का खनन नहीं हो रहा है, किंतु हकीकत में यहां तीन हजार से अधिक नावें रोजाना 12 करोड़ से अधिक का बालू लूटतीं हैं.

एक बड़ी नाव से सरकारी दर के आधार पर कम से कम 40,000 रुपये के राजस्व की चोरी होती है. बाजार में यही बालू माफिया चार से पांच गुणा ऊंची दर पर बेचते हैं, अर्थात 48 से 60 हजार रुपये की राशि प्रतिदिन उनकी जेब में जाती है. 2020-21 में सरकार को पूरे राज्य से महज 678 करोड़ रुपये की आय हुई, जो केवल कोईलवर के अवैध कारोबारियों के दो महीने की आय है.

सरकार को एक पैसा दिए बिना ये अपनी जेब भरते रहे. वैसे फिलहाल वैध बालू खनन पर भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने एक जून से रोक लगा रखी है. सरकारी दस्तावेजों में भले ही खनन बंद हो किंतु हकीकत में किसी जिले में बालू का खनन बंद नहीं है. रोज रेत ढोने वाली नावें, पोकलेन मशीनें अपने काम में लग जाती हैं.

आखिरकार यह सब नेताओं व पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत के बिना कैसे संभव है? प्रदेश के खान व भूतत्व मंत्री जनक राम भी मानते हैं कि अवैध खनन से सरकार को औसतन सात सौ करोड़ का सालाना नुकसान पहुंच रहा है जबकि राज्य सरकार के लिए बालू खनन ही राजस्व का सबसे बड़ा स्त्रोत है.

तस्वीरों मेंः रिश्वतखोरी में भारत अव्वल

वह कहते हैं, ''अवैध खनन पर रोक को लेकर लगातार जिला स्तर के अधिकारियों को लिखता रहा हूं. बालू माफिया और अधिकारियों के गठजोड़ के बारे में मुख्यमंत्री को भी बताया है. अंतत: अब ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई की जा रही है.''

थानावार बढ़ती है कीमत

रेत की कालाबाजारी से मोटी कमाई का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भोजपुर में तीन हजार प्रति सीएफटी (वर्ग फुट) मिलने वाला बालू पश्चिम चंपारण जिले में 15 हजार रुपये में बिकता है. इसी तरह अरवल में 6,500 रुपये में मिलने वाला बालू पटना आते-आते 13 हजार का हो जाता है. साफ है जितने थाने से रेत ले जा रहा वाहन गुजरता है, उसी के अनुसार उसकी कीमत भी बढ़ती जाती है. और, बढ़ा हुआ यह पैसा तो सरकारी खजाने में जाता नहीं है.

उत्तर बिहार की नदियों के बालू की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती, इसलिए यहां बालू का खेल दक्षिण बिहार जैसा नहीं है. बालू की तस्करी के लिए औरंगाबाद जिला सबसे अधिक बदनाम है. यहां सोन, पुनपुन व बटाने नदी से बालू निकाला जाता है जो गाजीपुर, वाराणसी व फैजाबाद समेत अन्य जिलों में जाता है.

2020-21 में सरकार को पूरे राज्य से महज 678 करोड़ रुपये की आय हुई

इसके बाद सबसे ज्यादा लूट भोजपुर में मची है. यहां बालू का उत्खनन करने वाली ब्राडसन कंपनी ने इस साल एक मई से काम बंद कर दिया. उसके अनुसार माफिया उसे यहां काम करने नहीं दे रहे थे. इसके बाद यहां बालू की लूट शुरू हो गई. इसे रोकने के लिए तीन सौ से अधिक छापेमारी की गईं, जिसके तहत करीब सवा सौ एफआइआर दर्ज किए गए, दो सौ से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हुई, करीब ढाई करोड़ से ज्यादा जुर्माना वसूला गया और एक हजार वाहन जब्त किए गए, किंतु बालू लूट का सिलसिला नहीं रूका.

केवल भोजपुर जिले में एक साल के अंदर 12 पुलिसकर्मियों को जेल जाना पड़ा है. यहां का बालू राज्य के अन्य जिलों के अलावा उत्तर प्रदेश तक जाता है. यहां की खनन पट्टाधारी ब्राडसन कमोडिटीज प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी थी जिसे एक अरब 48 करोड़ 41 लाख में बंदोबस्त का ठेका मिला था.

जानकार बताते हैं कि ब्राडसन कंपनी को पर्दे के पीछे से सुभाष यादव चलाते हैं जिनका लालू परिवार से नजदीकी रिश्ता रहा है. हालांकि सुभाष यादव इससे इंकार करते रहे हैं. राजद के टिकट पर वह झारखंड के चतरा से लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं.

तस्वीरों मेंः भारत के महाघोटाले

आखिरकार बालू की लूट को रोकने में नाकाम रहने के आरोप में सरकार ने दो पुलिस अधीक्षकों (एसपी), दो जिला परिवहन अधिकारियों (डीटीओ), पांच खनन पदाधिकारियों (माइनिंग अफसर), एक अनुमंडल अधिकारी (एसडीओ), पांच अंचल अधिकारियों (सीओ) तथा तीन एमवीआई समेत डेढ़ दर्जन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को एक बार में उनके पद से हटा दिया.

बताया जाता है कि ईओयू ने बालू माफिया से गठजोड़ के संबंध में करीब आधा दर्जन जिलों के पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका की जांच कर रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, जिसके आधार पर कार्रवाई की गई.

बालू लूट पर नक्सलियों की भी नजर

जांच के क्रम में यह भी पता चला है कि लाल बालू की काली कमाई के खेल में नक्सलियों ने भी जोर-आजमाइश शुरू कर दी है. खुफिया एजेंसियों को इसके प्रमाण भी मिले हैं. बालू की लूट में नक्सलियों की इंट्री को लेकर खुफिया एजेंसियों ने सरकार को सतर्क भी किया है.

औरंगाबाद, रोहतास, अरवल, भोजपुर और पटना से गुजरने वाली सोन नदी का अधिकांश इलाका नक्सल प्रभावित रहा है. कहा जाता है कि नक्सली पहले तो बालू माफिया से लेवी वसूलते थे, किंतु मोटी कमाई को देखकर वे भी इसके अवैध धंधे में उतर चुके हैं.

जानकार बताते हैं कि सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर बालू की तस्करी में नक्सलियों ने अपनी पकड़ बना ली तो उनके पास न तो पैसों की कमी रहेगी और न ही असलहों की. फिर उसी के बूते नक्सली संगठन एक बार फिर से राज्य में दबदबा कायम करने की कोशिश करेंगे, जो किसी भी स्थिति में उचित नहीं होगा.

देखिएः 15 साल का हुआ सूचना का अधिकार

इस संबंध में एडीजी (पुलिस मुख्यालय) जितेंद्र कुमार कहते हैं, ''अवैध खनन में नक्सलियों को रोकना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन हम इसके लिए तैयार हैं. हमारी स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) इसमें माहिर है. इसी के बदौलत सुदूर इलाके में हम नक्सलियों को खत्म करने में कामयाब रहे हैं.''

बालू की मनमाने तरीके से बेतहाशा बढ़ती कीमत तथा अवैध खनन पर रोक नहीं लगा पाने का कलंक झेल रही सरकार ने बिहार खनिज नियमावली, 2019 में भी बदलाव कर दिया है. इसके तहत अवैध रूप से खनन किए गए बालू के मूल्य का 25 गुणा जुर्माना वसूला जाएगा. इस काम में लगे वाहन जब्त होंगे और फिर उन्हें नीलाम कर दिया जाएगा. वहीं अवैध खनन के आरोप में पकड़े गए लोगों को दो साल की सजा दी जाएगी.

देखने वाली बात तो यह होगी कि इस नियमावली पर कितनी सख्ती से पुलिस-प्रशासन व संबंधित विभाग द्वारा अमल किया जाएगा, क्योंकि बालू की लूट रोकने के तमाम उपायों के बावजूद लूट तो होती ही रही है.

Source: DW

English summary
Bureaucracy getting tainted by illegal mining in Bihar
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