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डिप्रेशन क्या है, क्रिएटिव काम से कैसे मिलती है मदद

डिप्रेशन के शिकार कई लोग ध्यान बंटाने के लिए म्यूज़िक, पेंटिग या दूसरे तरह के क्रिएटिव काम करते हैं. क्या हैं इनके फ़ायदे और नुक़सान.

By शुभम किशोर
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डिप्रेशन क्या है, क्रिएटिव काम से कैसे मिलती है मदद

"यार आज का दिन अच्छा नहीं था, मैं बहुत डिप्रेस फ़ील कर रहा हूं"

ये बात-बात पर ख़ुद को 'डिप्रेस्ड' बताना दरअसल डिप्रेशन नहीं है, हां ये हमारी डिप्रेशन को लेकर कम जानकारी को ज़रुर दर्शाता है.

दिल्ली की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. पूजाशिवम जेटली कहती हैं, "ये एक विडंबना ही है. हम ऐसे शब्दों का इस्तेमाल इतनी आसानी से कर देते हैं लेकिन मेंटल हेल्थ के प्रति जागरुक नहीं हैं."

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ दुनियाभर में अलग-अलग उम्र के 26 करोड़ से ज़्यादा लोग इससे पीड़ित हैं.

हालांकि कई मनोवैज्ञानिक ये मानते हैं कि ये संख्या इससे बहुत ज़्यादा हो सकती है क्योंकि कई लोगों को पता ही नहीं होता कि वो डिप्रेशन में हैं.

उदासी, डिप्रेशन, एंग्ज़ाइटी अलग-अलग हैं

किसी बुरी ख़बर के आने पर, या कुछ काम के बिगड़ जाने पर जब हम ये कहते हैं कि हम डिप्रेस्ड फ़ील कर रहे हैं, वो दरअसल डिप्रेशन नहीं, उदासी है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ डिप्रेशन एक आम मानसिक बीमारी है. डिप्रेशन आमतौर पर मूड में होने वाले उतार-चढ़ाव और कम समय के लिए होने वाले भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से अलग है.

लगातार दुखी रहना और पहले की तरह चीज़ों में रुचि नहीं होना इसके लक्षण हैं.

मेंटल हेल्थ
Science Photo Library
मेंटल हेल्थ

डब्लूचओ के मुताबिक़ एंग्ज़ाइटी डिसऑर्डर डर और घबराहट के लक्षण वाली एक मानसिक बीमारी है. इसके कई प्रकार हैं. डिप्रेशन के शिकार कई लोगों में एंग्ज़ाइटी के लक्षण भी होते हैं.

बोलचाल की भाषा में समझाते हुए डॉक्टर पूजाशिवम कहती हैं, "सुशांत सिंह राजपूत की ख़बर सुनने के बाद हम सब उदास थे, कुछ लोग कुछ घंटों के लिए उदास रहेंगे, कुछ लोग कुछ दिनों तक उदास रहेंगे, फिर ठीक हो जाएंगी. ये डिप्रेशन नहीं है."

उनके मुताबिक़ "कुछ लोगों को कई चीज़ों से घबराहट होती है, किसी एक चीज़ पर उनका कंट्रोल नहीं रहता, ये एक मानसिक स्थिति है जब आप ख़ुद को 'हेल्पलेस'(बेबस) महसूस करते हैं, इसे एंग्ज़ाइटी कहते हैं. लेकिन जब आप 'होपलेस' महसूस करने लगते हैं यानि कि आप अपने भविष्य से उम्मीद खो बैठते हैं, तो इस मनोस्थिति को डिप्रेशन कहते हैं. ये ज़रूरी नहीं कि जिसे एंग्ज़ाइटी है, वो डिप्रेशन में भी है या डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति को एंग्ज़ाइटी की शिकायत भी हो. लेकिन एंग्ज़ाइटी से डिप्रेशन हो सकता है और डिप्रेशन से भी एंग्ज़ाइटी की शिकायत हो सकती है."

डिप्रेशन, मनपसंद काम औ क्रिएटिविटी

डिप्रेशन के शिकार लोगों को अपना ध्यान बंटाने के लिए उन कामों पर ध्यान देने को कहा जाता है, जो उन्हें पसंद है. कई लोग इस दौरान म्यूज़िक, पेंटिग या दूसरे तरह के क्रिएटिव काम करते हैं.

दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मनोविज्ञान विभाग की डॉक्टर स्मिता देशपांडे बताती हैं, "हम लोगों को सलाह देते हैं, कि आप वो करें जो आप आसानी से कर सकते हैं, हम चाहते हैं कि वो एक्टिव रहें, इस दौरान कई लोग ब्लॉग्स लिखते हैं, दूसरे तरह के क्रिएटिव काम करते हैं. हमारा मक़सद उस काम की क्वालिटी को देखना नहीं होता, लेकिन कई लोग इस दौरान बहुत अच्छा काम कर जाते हैं. जो लोग क्रिएटिव होते हैं, वो डिप्रेशन के दौरान एक नए तरह का आर्ट बना सकते हैं, वो अच्छा भी हो सकता है, ख़राब भी. मक़सद होता है, उन्हें एक्टिव रखना"

मेंटल हेल्थ
Getty Images
मेंटल हेल्थ

इंदौर की 23 साल की शालीनी (बदला हुआ नाम) को कई तरह की दवाईयां लेनी पड़ रही थीं जिनके कई साइड इफ़ेक्ट्स हो सकते थे. डॉक्टर की सलाह पर अपना ध्यान बंटाने के लिए उन्होंने डूडल्स बनाना शुरु किया.

बीबीसी से बातचीत में शालिनी कहती हैं, "शुरुआत में मैं इन्हें इंस्टाग्राम पर पोस्ट करने से डरती थी, मुझे लगता था कि लोगों को पसंद नहीं आया तो वो क्या सोचेंगे? कई बार मैं शायद किसी एक ख़ास व्यक्ति के लिए पोस्ट कर रही थी, मुझे लगा वो देखेगा, उसे पसंद आएगा. लेकिन धीरे-धीरे मुझे इस आर्ट में मज़ा आने लगा, लोगों ने तारीफ़ की तो मेरे अंदर कॉन्फिडेंस आया.''

शालिनी आगे कहती हैं, ''मैंने अपनी कला को निखारने के लिए ट्रेनिंग लेनी शुरू की, मैंने डूडल्स से शुरुआत की थी और अब मैं 3D इल्यूज़न बनाती हूं. ये किसी कमर्शियल कारण के लिए नहीं करती हूं, सिर्फ़ ख़ुद के लिए. मुझे लगता है ये बीमारी आपके कॉन्फ़िडेंस को ख़त्म कर देती है, आपको एक ज़रिया चाहिए होता है अपने कॉन्फ़िडेंस को वापस पाने के लिए, मेरे लिए ये आर्ट वही ज़रिया है."

हैदराबाद में एक आईटी कंपनी में काम करने वाली संध्या (बदला हुआ नाम) ने डिप्रेशन के दौरान कविताएं लिखने और पेंटिग्स बनाने पर ध्यान लगाया.

वो बताती हैं, "मुझे लगता है, डिप्रेशन के दौरान मैंने अपना सबसे बेहतरीन क्रिएटिव काम किया है. मैं जो भावनाएं कैनवस या काग़ज़ पर उकेर पाई, वो मैं पहले कभी नहीं कर पाई थी."

हालांकि संध्या कहती हैं कि उनके क्रिएटिव काम को इस दौरान फ़ायदा हुआ लेकिन बीमारी से उभरने में इस आर्ट ने कोई ख़ास मदद नहीं की. उनके मुताबिक़ वो लिखने और ड्राइंग बनाते वक़्त नकारात्मक चीज़ों के बारे में और ज़्यादा सोचने लगती थीं.

मेंटल हेल्थ
Science Photo Library
मेंटल हेल्थ

दिल्ली के सेंट स्टीफ़न्स कॉलेज की मनोविज्ञान विभाग की प्रमुख रूपाली शिवालकर के मुताबिक़, "आप इस तरह से समझ सकते हैं, कि अगर आप डिप्रेस हैं और आप बार-बार उदास गाने सुन रहे हैं, तो इसका आप पर बुरा असर हो सकता है. इसी तरह अगर कोई आर्टिस्ट डिप्रेशन में है और वो बार-बार नेगेटिव थीम पर काम कर रहा है, तो शायद उसे कोई फ़ायदा न हो, सकारात्मक थीम उस पर बेहतर असर डाल सकती है. लेकिन हमें ये बात समझनी होगी कि हर इंसान का दिमाग़ अलग होता है और इन चीज़ों का उनके दिमाग़ पर असर भी अलग होता है."

दिल्ली के एक स्टार्टअप में काम करने वाली नादिमपल्ली कहती हैं कि उनके लिए क्रिएटीविटी का मतलब लिखना और पॉटरी थी.

नादिमपल्ली कहती हैं, "लिखना मेरे लिए दर्द को बताने का एक ज़रिया था, जैसे-जैसे मेरा दर्द कम होता गया, लिखना भी कम हो गया. मैं कम अब कम लिखती हूं, लेकिन इसका अफ़सोस नहीं है, क्योंकि मैं अपना दर्द बयां करने के लिए लिखती थी, वही कम है तो लिखना अपने आप कम हो गया. पॉटरी को मैंने एक ज़रूरी एक्टिविटी की तरह शुरू किया. ये एक अच्छा थेरेपी आर्ट फ़ॉर्म है."

लेकिन क्या क्रिएटीविटी सिर्फ़ कुछ अच्छा काम करने तक ही सीमित है?

डॉक्टर पूजाशिवम के मुताबिक़ हमें क्रिएटिविटी को सिर्फ़ फ़िज़ीकल फ़ॉर्म में नहीं देखना चाहिए.

वो कहती हैं, "उपलब्धि सिर्फ़ जो समाज की नज़र में है वो नहीं है, बड़ी उपलब्धि वो है जब आप अपने दिमाग़ में बनाए गए दायरों को तोड़ें और आप समझें कि ये भी एक संभावना मेरे लिए मौजूद है. यहीं से बदलाव की शुरुआत होती है."

डॉक्टर पूजाशिवम बताती हैं, ''मेरे पास दो केस ऐसे आए, जिसमें उन लोगों ने वो चीज़ें करनी शुरू कीं जो पहले नहीं करते थे, अलग-अलग लोगों से मिलना शुरू किया, ज़िंदगी को अलग तरह से देखने लगे. इसका असर ये हुआ कि वो प्रोफ़ेशनल, सामाजिक और पर्सनल लेवल पर अच्छा काम करने लगे.''

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आर्ट थेरेपी भी हो सकती है कारगर

कई लोगों के लिए आर्ट थेरेपी भी उपयोगी साबित होती है.

रूपाली कहती हैं, "आर्ट थेरेपी क्रिएटीविटी के बारे में है, उनके लिए है जिन्हें आर्ट पसंद है, किसी तरह के आर्ट को करने में आपको मज़ा आता है, और आपको लगता है कि आपने कुछ अच्छा किया है. डिप्रेशन में ही नहीं, दूसरे तरह की मानसिक बीमारियों के लिए भी ये थेरेपी बहुत अच्छी है. ये हर उम्र के लोगों पर काम कर सकती है. ये एक सपोर्टिव थेरेपी है जो लोगों को उनके मौजूदा मानसिक स्थिति से बाहर लाने में मदद करती है.''

सिर्फ़ मनपसंद काम करना इलाज नहीं

मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक़ डिप्रेशन के दौरान किए गए क्रिएटिव काम आपको इस परिस्थिति से निपटने में मदद कर सकते हैं, कई बार जब आप जो महसूस कर रहे हैं उसे अपने क्रिएटिव काम के माध्यम से जताना आसान होता है, इसलिए आपके किए गए क्रिएटिव काम में आपकी मनोस्थिति दिखती है और वो आपको अच्छा भी लगने लगता है.

लेकिन ये तरीक़ा सभी पर कारगार साबित होगा ऐसा नहीं है. हर इंसान का दिमाग़ अलग होता, कुछ लोगों को ये मदद करता है तो कुछ को नहीं. और सिर्फ़ अपना ध्यान किसी क्रिएटिव काम में लगाना भी इलाज नहीं है, परिवार और दोस्तों का साथ, योगा, फ़िज़िकल एक्टीविटी और डॉक्टर्स द्वारा दी जाने वाली दूसरी थेरेपी भी बहुत ज़रूरी हैं. सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि समाज में मानसिक स्वास्थ्य पर खुल कर बातचीत हो.

BBC Hindi
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English summary
What is depression, how to get help from creative work
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