भारत रत्न सचिन तेंदुलकर पर शिवानंद तिवारी की गुगली के मायने?
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पटना। राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने क्रिकेट के कोहिनूर सचिन तेंदुलकर को भी राजनीति में घसीट लिया है। शिवानंद का कहना है कि सचिन को भारत रत्न दिया जाना गलत है। इसे वापस लिया जाना चाहिए क्योंकि वे देश के इस सर्वोच्च सम्मान का अनादर कर रहे हैं। शिवानंद के मुताबिक, सचिन प्रोफेशनल हैं, वे हर काम पैसे के लिए करते हैं। भारत रत्न से सम्मानित होने के बाद भी व्यवसायिक विज्ञापन करते हैं। इसलिए उनसे भारत रत्न वापस लिया जाना चाहिए। तो क्या पैसा लेकर क्रिकेट खेलना और विज्ञापन करना गुनाह है ? क्या प्रोफेशनल लोग राष्ट्रीय सम्मान को बढ़ाने में योगदान नहीं करते? विश्वकीर्तिमानों की झड़ी लगाने वाले सचिन पर भारत क्या पूरी दुनिया के खेल प्रेमी नाज करते हैं। लेकिन शिवानंद को सचिन से तकलीफ है। सचिन ने किसान आंदोलन में विदेशी हस्तियों की घुसपैठ का विरोध क्या किया राजद नेता शिवानंद की बौखलाहट बढ़ गयी। तेजस्वी यादव भी तो पैसा लेकर क्रिकेट खेले हैं। क्या शिवानंद तेजस्वी के बारे में कुछ बोलेंगे ? तेजस्वी अन्य खिलाड़ियों की तरह क्रिकेट की मंडी (आइपीएल ऑक्शन) में अपना दाम लगा कर बिक चुके हैं । फिर वे कैसे गरीब जनता का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं?
सचिन को भारत रत्न तो मनमोहन सरकार ने दिया था
कांग्रेस ने ही सचिन को 2012 में मनोनीत कर राज्यसभा सांसद बनाया था। सचिन को फरवरी 2014 में भारत रत्न मिला था। उस समय केन्द्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी। सचिन को भारत रत्न कैसे मिला ? मध्य प्रदेश के हेमंत दुबे ने सूचना के अधिकार के तहत सचिन को भारत रत्न दिये जाने की जानकारी मांगी थी। इस जनकारी के मुताबिक तात्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार की दिलचस्पी के कारण सचिन को ये पुरस्कार मिला था। हैरत की बात ये है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यालय ने मेजर ध्यानचंद के प्रस्ताव को दरकिनार कर आनन-फानन में सचिन तेंदुलकर के नाम को भारत रत्न के लिए चुना था। खेल मंत्रालय ने जुलाई 2013 में ही मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने की सिफारिश कर दी थी। इसे मंजूर भी कर लिया गया था। लेकिन अचानक सब कुछ बदल गया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सचिन के नाम की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास प्रस्ताव भेज दिया और यह मंजूर भी हो गया। सिर्फ 24 घंटे में सचिन को भारत रत्न देने के फैसले पर मुहर लग गयी। 16 नम्बर 2013 को जब सचिन ने वेस्टइंडीज के खिलाफ अपना आखिरी मैच खेल कर विदाई ली तो उसी दिन शाम को मनमोहन सरकार ने सचिन को भारत रत्न देने की घोषणा कर दी। उस समय राजद ने स्वेच्छा से मनमोहन सरकार को समर्थन दे रखा था। इस तरह शिवानंद तिवारी तो अपनी ही सरकार के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं। आज शिवानंद कह रहे हैं कि सचिन की जगह मेजर ध्यान चंद को भारत रत्न मिलना चाहिए था। क्या उन्हें मालूम नहीं कि ध्यानचंद को किसा वजह से यह पुरस्कार नहीं मिला ?
विवादास्पद बयानों के लिए मशहूर
शिवानंद तिवारी अपने विवादास्पद बयानों से अक्सर सुर्खियां बटोरते रहे हैं। उन्हें बड़बोला नेता माना जाता है। वे विरोधियों पर तो बयानों के तीर चलाते ही ही हैं अपने सहयोगियों की फजीहत में भी कोई कसर नहीं छोड़ते। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जब राजद जीत की मंजिल से दूर रह गया तो शिवानंद ने हार का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ दिया था। पिछले साल नवम्बर में उन्होंने कहा था, जब बिहार में चुनाव पूरे उफान पर था तो राहुल गांधी शिमला में पिकनिक मना रहे थे। तब कांग्रेस ने शिवानंद को खूब खरी खोटी सुनायी थी। दिसम्बर 2020 में झारखंड के दुमका में 17 हैवानों ने एक महिला से गैंग रेप किया था। इस घटना पर शिवानंद ने कहा था, एक आदिवासी इलाके में ऐसी घटना की किसी ने कल्पना नहीं की थी। रेप कभी आदिवासी संस्कृति में रहा ही नहीं। लेकिन आइटम डांस और मोबाइल पर पोर्नोग्राफी के कारण इस तरह की घटनाएं होने लगीं। ये सब चीजों ही रेप की मानसिकता तैयार करती हैं। आदिवासी इलाके में इस घटना का मतलब है कि अब यह मानसिकता समाज के अंतिम हिस्से तक पहुंच गयी है। शिवानंद के इस बयान पर भी खूब बवाल मचा था। उनके विवादास्पद बयानों की लंबी फेहरिस्त है।
क्या है शिवानंद का राजनीतिक स्टैंड ?
क्या शिवानंद तिवारी ने राजनीतिक कारणों से सचिन के भारत रत्न पर सवाल उठाया है ? तो क्या है उनका राजनीतिक स्टैंड ? शिवानंद तिवारी जेपी के छात्र आंदोलन में सक्रिय थे। छात्र संघ की राजनीति में लालू और नीतीश से सीनियर थे। उनके पिता रामानंद तिवारी समाजवादी नेता थे और बिहार सरकार के मंत्री भी रहे थे। शिवानंद भी समाजवाद की पतवार थाम कर राजनीति में शामिल हुए। जिस कांग्रेस के खिलाफ उनकी राजनीतिक परवरिश हुई आज वे उसी के सहयोगी बने हुए हैं। आज शिवानंद भले नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आग उगलते हैं लेकिन 2008 में जब वे राज्यसभा के लिए चुने गये थे तो उसमें भाजपा का भी समर्थन हासिल था। शिवानंद लालू यादव और नीतीश से सीनियर जरूर थे लेकिन वे बहुत समय तक विधायक भी नहीं बन पाये थे। वे 1997 में तब पहली बार विधायक बने जब भोजपुर जिले की पीरो (अब तरारी) विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। वे नीतीश की समता पार्टी से खड़ा हुए थे। कहा जाता है कि तब उन्होंने पहली बार विधायक बनने के लिए भाजपा समर्थक सवर्ण वोटरों से खुद के ब्राह्मण होने के नाम पर वोट मांगा था। वे जीते भी। शिवानंद तिवारी ने लालू यादव और नीतीश कुमार के साथ कई बार निष्ठा बदली। फिलहाल वे लालू यादव की पार्टी में हैं और उसके अनुरूप ही बातें करते हैं।
क्या विदेशी हस्तियों की टिप्पणी हस्तक्षेप नहीं ?
किसान आंदोलन पर विदेशी हस्तियों की टिप्पणी क्या भारत के अंदरुनी मामले में हस्तक्षेप नहीं है ? हर देश में कोई न कोई आंतरिक समस्या है। अगर मानवाधिकार के नाम पर इन मामलों में बोला जाए कौन सा देश अछूता रह जाएगा। अगर ऐसा हो तो पूरी दुनिया में अराजकता फैल जाएगी। इसलिए यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि कोई देश अपनी आंतरिक समस्याएं खुद हल करे। तो क्या शिवानंद तिवारी ने किसान आंदोलन पर ग्रेटा थनबर्ग, रिहाना और मिया खलीफा के ट्वीट का समर्थन किया है ? सचिन तेंदुलकर ने दुर्लभ कीर्तिमानों को रच कर भी जो शालीनता, विनम्रता दिखायी है उसकी मिसाल मुश्किल है। उन्होंने क्रिकेट के जरिये भारत के गौरव को दुनिया में बढ़ाया है। वे दुनिया के अकेले ऐसे क्रिकेटर हैं जिन्होंने सौ शतक (टेस्ट और वनडे) लगाये हैं। देश की विशिष्ट सेवा के लिए ही उन्हें भारत रत्न प्रदान किया गया है। सचिन वैसे भी गैरराजनीतिक व्यक्ति हैं। उनको राजनीति में घसीटना कहां तक उचित है ? क्या शिवानंद तिवारी सचिन के ट्वीट में भी कोई राजनीति खोज रहे हैं ?