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जानें श्री गुरु गोविंद सिंह महराज के बारे में कुछ खास ,धर्म की खातिर दे दी थी चारों बेटों की कुर्बान

सिक्खों के अंतिम और दसवें गुरू श्री गुरु गोविंद सिंह महाराज की जन्मभूमि पटना में 350 में प्रकाशोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है।

By मुकुंद सिंह
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पटना। सिक्खों के अंतिम और दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह महाराज की जन्मभूमि बिहार स्थित पटना में 350 में प्रकाशोत्सव धूमधाम मनाया जा रहा है। पटना के सभी गुरुद्वारों को बड़े ही आकर्षक ढंग से सजाया गया है तो इस प्रकाशोत्सव को लेकर तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब के दर्शन के लिए सिक्ख श्रद्धालु देश - विदेश से पहुच रहे है। वहीं इस प्रकाशोत्सव का मुख्य आयोजन 5 जनवरी को पटना के गांधी मैदान में होगा। आज यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आएंगे।
आपको बताते चलें कि सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरू माने जाने वाले श्री गुरु गोविंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 ईस्वी मे पटना सिटी की पावन धरती पर हुआ था। गुरु गोविंद सिंह को लोग सर्वन्सदानी भी कहते है।वो भगवान शिव के सेवक थे। साथ ही वो एक ऐसे संत थे जिन्हें एक साथ सैनिक और संत कहलाने का सौभाग्य प्राप्त था। 29 मार्च 1676 ईस्वी को गोविंद सिंह सिक्खों के गुरु बने और 1708 तक इस पद पर बने रहे।वो सिक्खों के सैनिक संगति और खालसा के सृजन के लिए जाने जाते हैं।
पटना सिटी की पावन धरती पर जन्म लेने वाले गुरु गोविंद सिंह को बचपन मे गोविंद राय के नाम से बुलाया जाता था। अपने बचपन के दिन पटना सिटी में बिताने के बाद वो हिमाचल प्रदेश चले गए ,जहां उन्होंने तीरंदाजी, घुड़सवारी और मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग की।वो हिंदी, पंजाबी, फारसी, उर्दू और बृज भाषा के विद्वान भी थे ,उनकी 18 रचनाएं भी हैं। उन्हे सैन्य जीवन के प्रति लगाव अपने अपने दादा गुरु हरगोविंद सिंह से मिला था।

धर्म की खातिर दे दिया था अपने चारों बेटों की कुर्बानी

धर्म की खातिर दे दिया था अपने चारों बेटों की कुर्बानी

सिख धर्म में विश्वास रखने वाले संजय सिंह का कहना है कि श्री गुरु गोविंद सिंह महाराज भगवान शिव की आराधना में लीन रहते थे। उन्हे सर्वन्सदानी भी कहा गया है। इस्लाम धर्म कबूल नहीं करने को लेकर उन्होंने अपने चारों बेटे की कुर्बानी दे दी थी। जहां इस्लाम धर्म कबूल करने को लेकर उनके दो बेटे को 13 साल की उम्र में दीवारों में चुनवा दिया गया था तो बाकी दो बेटे चमकौर के युद्ध में मारे गए थे।

प्रसाद में क्यों दिया जाता है ,चना घुघनी

प्रसाद में क्यों दिया जाता है ,चना घुघनी

बाललीला गुरुद्वारा के प्रधान संत बाबा कश्मीर सिंह भुरीवाले का कहना है कि बचपन में गुरु महाराज ने यहा पर कई चमत्कार किए थे। फतहचंद मैनी यहां के बड़ी जमींदार थे , जिन्हें राजा की उपाधि मिली हुई थी। पर उन्हें एक भी संतान का नहीं था।जिसे लेकर उनकी पत्नी भगवान से रोज प्रार्थना करती थी। वही आस पास के बगीचे में गुरु गोविंद सिंह अपने दोस्तों के साथ खेलने जाया करते थे।

रानी को हुए चार लड़के

रानी को हुए चार लड़के

एक दिन गोविंद सिंह खेलते खेलते रानी की गोद में जा बैठे और उन्हें मां कह कर पुकारते हुए कहा कि मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है कुछ खाने को दो। जिससे रानी खुश हो गई और उन्हें धर्मपुत्र के रूप में स्वीकार किया। तथा भूख मिटाने के लिए उस वक्त रानी ने गोविंद सिंह को चना घुघनी दिया। जिसे वो अपने दोस्तों के साथ मिल बांट कर खा गये । तभी से यहा प्रसाद के रुप में चना घुघनी दिया जाता है। हलाकि बाद मे रानी को चार लड़का भी हुआ।

विदेशियों ने भी सराहा, कहा हम बिहार में है कि पंजाब में है

विदेशियों ने भी सराहा, कहा हम बिहार में है कि पंजाब में है

गुरु गोविंद सिंह जी महाराज की 350 वीं जयंती कि जो तैयारियां है, जैसा अलौकिक और विहंगम दृश्य है उसे देखकर यक़ीनन गर्व महसूस होता है। गुरु पर्व की तैयारियों को लेकर जब हरमंदिर जी साहिब,कंगन घाट, टेंट सिटी पहुचा तो वहां इस प्रकाशोत्सव मे भाग लेने कनाडा ,अमेरिका और साउथ अफ्रीका से आये विदेशी श्रद्धालुओ से बात करने पर उन्होंने कहां की ये सब अद्भुत है। बिहार और बिहारियों के प्रति सोच बदल गई। अब तक हमने पंजाब और दूसरे प्रान्तों में जाकर काम करने वाले बिहारियों को देखा था। कितने मेहनती होते है, लेकिन अब उनके परिवार और संस्कृति को देख रहा हूं।

हुई नीतीश कुमार की तारीफ

हुई नीतीश कुमार की तारीफ

कहा कि जो प्यार और अपनापन दिया जा रहा है उससे तो लगता ही नहीं की हम बिहार में है कि पंजाब में और इन सबके पीछे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भूमिका की वो तारीफ करना नहीं भूले। नि संदेह सीएम नीतीश कुमार ने मेहनत की है और उनके प्रयास को पूरा करने में पटना की पुलिस ,पटना की जिला प्रशासन की टीम पर्यटन विभाग और गुरुद्वारा की आयोजन समिति ने भी कोई कसर नहीं छोड़ा है।


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English summary
Special things about shri guru gobind singh maharaj
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