नहीं रहे 'लौंडा नाच' को नई पहचान देने वाले पद्मश्री रामचंद्र मांझी, लोकसंगीत का कैनवस हुआ सूना
पटना, 08 सितंबर। संगीत के क्षेत्र से फिर एक बुरी खबर आई है, मशहूर भोजपुरी लोक नर्तक 'पद्मश्री' रामचंद्र मांझी ने बुधवार रात दुनिया को अलविदा कह दिया। मांझी लंबे वक्त से हार्ट ब्लॉकेज और इंफेक्शन की समस्या से जूझ रहे थे और कल रात पटना के आईजीआईएमएस अस्पताल में वो जिंदगी की जंग हार गए और उन्होंने दुनिया से विदाई ले ली।
'पद्मश्री' रामचंद्र मांझी का निधन
'पद्मश्री' रामचंद्र मांझी ने बिहार की लोक संस्कृति को अलग पहचान दिलाई थी और उन्होंने इंटरनेशनल लेवल पर 'लौंडा नाच' को नई ऊंचाईयां दी थी। वो भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर के काफी करीबी माने जाते थे।
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नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित
वह 'भिखारी ठाकुर' की नाटक टीम के सदस्यों में से एक थे और उन्हें साल 2017 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और उन्हें 2021 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से भी नवाजा गया था।
बिहार के सारण जिले में हुआ था जन्म
आपको बता दें कि मांझी का जन्म 1925 में बिहार के सारण जिले के ताजपुर में एक दलित परिवार में हुआ था। 10 साल की उम्र में ही वह भिखारी ठाकुर की नाटक टीम में शामिल हो गए और उनके साथ उन्होंने उनके जीवन की अंतिम सांस तक काम किया।
"नाच भिखारी नाच"
रामचंद्र माझी के जाने से आज भोजपुरी संगीत का कैनवस तो सूना हुआ ही है बल्कि अब 'लौंडा नाच' को आगे ले जाने वाले सारथी की भी विदाई हो गई है। मालूम हो कि उन्होंने लौंडा नाच पर "नाच भिखारी नाच" नामक एक 72 मिनट लंबी डॉक्यूमेंट्री फिल्म में भी काम किया था।
क्या होता है 'लौंडा नाच'?
'लौंडा नाच' बिहार का लोकप्रिय लोकनृत्य है, जिसमें पुरुष महिलाओं की तरह वस्त्र पहनकर और मेकअप करके डांस और नृत्य नाटिका पेश करते हैं। शादी-विवाह और मांगलिक कार्यों में ये नृत्य किया जाता है। हालांकि आधुनिकतावाद के दौर में अब ये कला गुम होती जा रही है। जब तक स्वास्थ्य ठीक था, तब तक मांझी और भिखारी ठाकुर ने इस कला को आगे बढ़ाने में काफी योगदान दिया और इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, हालांकि ज्यादा पैसे ना मिलने के कारण आज 'लौंडा नाच' की मंडलियां कम होती जा रही हैं और युवाओं का रूझान इसके प्रति कम होता जा रहा है।