औरंगाबाद से ग्राउंड रिपोर्ट: आख़िर किस क्रिया की प्रतिक्रिया में हुए दंगे?
शाम होते ही मोहम्मद कलाम की बुक शॉप पर भीड़ लग जाती थी. औरंगाबाद में पढ़ाई कर रहे हर स्टूडेंट के लिए कलाम की बुक शॉप सबसे लोकप्रिय ठिकाना होता था. लोगों को कलाम भाई ही बताते थे कि किस नौकरी का फ़ॉर्म आया है और आवेदन की आख़िरी तारीख़ कब है.वो दिल्ली से भी प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबें ऑर्डर पर मंगवा देते थे. पै
शाम होते ही मोहम्मद कलाम की बुक शॉप पर भीड़ लग जाती थी.
औरंगाबाद में पढ़ाई कर रहे हर स्टूडेंट के लिए कलाम की बुक शॉप सबसे लोकप्रिय ठिकाना होता था.
लोगों को कलाम भाई ही बताते थे कि किस नौकरी का फ़ॉर्म आया है और आवेदन की आख़िरी तारीख़ कब है.
वो दिल्ली से भी प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबें ऑर्डर पर मंगवा देते थे. पैसे नहीं होने पर कलाम भाई लोगों को यह कहते हुए किताबें दे देते थे कि नौकरी लगने पर दे देना.
26 मार्च को रामनवमी के जुलूस में शामिल दंगाइयों ने कलाम की दुकान में आग लगा दी. कलाम घर में बची किताबों के साथ जली दुकान की ज़मीन पर बोरा डालकर बैठे हैं.
अथाह निराशा के साथ कलाम कहते हैं कि शहर के लड़के लड़कियों को न जाने कितनी किताबें और प्रतियोगी पत्रिकाएं मुफ़्त में पढ़ाईं और इसका इनाम ये मिला है.
दंगाइयों ने दुकानें जला दी
उसी दिन इमरोज़ ख़ान के 'एक्शन शूज़' के शोरूम को दंगाइयों ने जला दिया. इमरोज़ ने खाड़ी के देशों से पैसे कमाकर मुल्क लौटने का फ़ैसला किया था.
अब वो फिर से वतन छोड़ने जा रहे हैं. इमरोज़ का सियाराम के कपड़ों का भी एक शोरूम है. उनका कहना है कि हिंदुओं ने ही इसे जलने से बचा लिया.
इमरोज़ के 22 स्टाफ़ में से 18 हिंदू थे और दंगे के कारण इनकी रोज़ी-रोटी पर संकट आ गया है.
26 मार्च को ही हॉस्पिटल चौक पर दंगाइयों ने लाइन से आठ दुकानों में आग लगा दी थी. सभी दुकानें मुर्गे और बैंड की थीं.
इनमें से सम्राट बैंड नाम की दुकान नरेंद्र राम की थी. पंजाब बैंड के शौकत अली कहते हैं, "दंगाइयों को लगा कि ये भी मियां की ही दुकान है."
हिंदू और मुसलमान होने का फ़र्क़
नरेंद्र राम समेत बैंड की दुकान चलाने वालों के लिए ये कमाई करने का सीज़न था. 14 अप्रैल के बाद इन्हें कई शादियों में बैंड पार्टी के साथ शरीक होना था.
किसी की रोज़ी-रोटी की हत्या का दुख क्या हो सकता है, ये नरेंद्र राम और शौकत अली के चेहरे पर देख सकते हैं.
जली दुकान में दीवारों पर टंगे सारे इंस्ट्रूमेंट देखने में ऐसे लग रहे हैं, मानो ये किसी श्मशान घाट पर अधजली लाशों के हिस्से हैं.
नरेंद्र राम और शौकत अली के बीच दंगाई हिंदू और मुसलमान होने का फ़र्क़ कैसे करते होंगे? दोनों को देखने के बाद मेहनती हाड़-मांस के सिवा कुछ दिखता नहीं है.
26 से 28 मार्च के बीच औरंगाबाद में रामनवमी के जुलूस की आग में कम से कम 30 दुकानें राख हो गईं. इनमें से 99 फ़ीसदी दुकानें मुसलमानों की हैं.
प्रशासन की आंखों के सामने...
लोगों का कहना है कि प्रशासन की आंखों के सामने शहर जलता रहा.
औरंगाबाद के डीएम राहुल रंजन माहिवाल का कहना है कि हज़ारों की संख्या में हिंसक भीड़ सड़क पर थी.
उनका कहना है कि अगर पुलिस सख़्ती करती तो कई लोगों की जान जा सकती थी. राहुल माहिवाल का कहना है कि दंगाई बाहरी राज्यों से भी आए थे.
तो क्या यह दंगा सुनियोजित था और इसकी तैयारी पहले से चल रही थी? डीएम राहुल माहिवाल कहते हैं कि 'इस एंगल से भी जांच चल रही है.'
स्थानीय लोगों का भी कहना है कि दंगाई बाहरी थे. ज़िला कांग्रेस का कहना है कि बाहरी दंगाई घंटे भर में तो आ नहीं सकते.
पल भर में भगदड़ मची...
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या सब कुछ सुनियोजित था?
शहर के कांग्रेस विधायक आनंद शकर का कहना है कि जुलूस में वो भी मौजूद थे और जैसे पल भर में भगदड़ मची और जुलूस से दूर महाराजगंज रोड में मुसलमानों की दुकानें जलाई जाने लगीं, उससे तो यही लगता है कि सब कुछ सुनियोजित था.
हालांकि नवाडीह के कुछ लोग कांग्रेस विधायक की भूमिका को भी संदिग्ध मान रहे हैं.
इलाक़े के ही मोहम्मद सुल्तान आरोप लगाते हैं कि 'आनंद शंकर के चचेरे भाई मुखिया हैं और उन्होंने भी दंगा भड़काया है'.
जुलूस में आनंद शकर के शामिल होने से शहर के मुसलमान ख़ुश नहीं हैं.
बाइक रैली में मुस्लिम विरोधी नारे
25 मार्च को रामनवमी को लेकर शहर के कुछ संगठनों ने बाइक रैली निकाली थी. शहर के नवाडीह इलाक़े में हिंदू और मुस्लिमों की मिलीजुली आबादी है.
इस इलाक़े के लोगों का कहना है कि जब बाइकर्स नवाडीह पहुंचे तो मुस्लिम विरोधी नारे लगाने लगे. नवाडीह मोड़ पर ही धर्मेंद्र कुमार की गल्ले की दुकान है.
धर्मेंद्र कुमार ने कहा, "हमलोग यहां इतने भाईचारे के साथ रहते हैं कि बता नहीं सकते. ये जो जुलूस निकला था उसमें बहुत आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया."
"इनके भड़काऊ नारों के कारण ही पूरा माहौल ख़राब हुआ है. नारों में कहा जा रहा था कि 'जब-जब हिंदू जागा है तब-तब मुसलमान भागा है'. सोचिए ये कितना ग़लत शब्द है. ये नहीं बोलना चाहिए. 'टोपी वाला जय श्रीराम बोलेगा', ऐसा ही सब ग़लत-ग़लत बोल रहा था. हम तो इसी जगह खड़े थे."
क़ब्रिस्तान में लगा दिया भगवा झंडा
धर्मेंद्र कुमार बताते हैं, "हम तो डर से बक्सा लेकर अंदर अपनी झोपड़ी में चले गए."
इसी इलाक़े के ज़ेड हैदर कहते हैं, "इन लोगों ने पाकिस्तान मुर्दाबाद का नारा लगाया. पर हमलोग को इस नारे से कोई एतराज़ नहीं है. ये पाकिस्तान तक ही नहीं रुके."
"इसके बाद बोला कि 'टोपी वाले जय श्रीराम बोलेंगे.' तीसरा नारा था, 'अल्ला अल्ला क्या करते हो अल्ला को क्या देखे हो'."
"उसके बाद नारा लगाया, 'हिंदुस्तान में अगर रहना है तो मंदिर बनाने में साथ देना है.' ये नारा लगाते हुए सब क़ब्रिस्तान पहुंच गए और वहां भगवा झंडा लगा दिया."
भगवा झंडा लगाने की बात पर ज़िला प्रशासन का कहना है कि ये सब वीडियो उनके पास है और इस आधार पर गिरफ़्तारी भी की जा रही है.
रामनवमी का जुलूस
ज़िला प्रशासन पर कई तरह के गंभीर सवाल उठ रहे हैं.
सबकी ज़ुबान पर एक ही सवाल है कि जब 25 मार्च को सांप्रदायिक हिंसा हो गई थी और पूरे माहौल का अंदाज़ा मिल गया था तो फिर 26 मार्च को रामनवमी के जुलूस को मुस्लिम इलाक़ो से ले जाने की अनुमति क्यों दी गई?
डीएम राहुल रंजन का कहना है कि दोनों पक्षों के बीच लिखित समझौता हो गया था इसलिए अनुमति दी गई थी.
26 मार्च के जुलूस में औरंगाबाद से बीजेपी सांसद सुशील सिंह, बीजेपी के पूर्व विधायाक और राज्य के पूर्व मंत्री रामाधार सिंह और हिंदू युवा वाहिनी के नेता अनिल सिंह मौजूद थे.
नवाडीह के मुन्ना ख़ान कहते हैं, "अनिल सिंह और सुनील सिंह ने दंगा करवाया है. दंगे में औरंगाबाद के लोग नहीं थे. इन लोगों ने बाहर से लोगों को बुलाया था. इसमें सुशील सिंह की भूमिका रही है."
दंगाई औरंगाबाद के नहीं
अनिल सिंह के सुशील सिंह रिश्तेदार हैं. सुनील सिंह भी सुशील सिंह के बड़े भाई हैं. रामाधार सिंह का कहना है कि सुशील सिंह को भाषण नहीं देना चाहिए था.
अनिल सिंह के ख़िलाफ़ पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज की और उन्हें गिरफ़्तार भी किया, लेकिन 30 मार्च को वो पुलिस के क़ब्ज़े से फ़रार हो गए.
इस मामले में भी पुलिस पर लापरवाही के आरोप लग रहे हैं. पुलिस का कहना है कि वो जल्द ही उनके घर पर कुर्की करने का आदेश देगी.
औरंगाबाद बीजेपी के ज़िला प्रवक्ता उज्ज्वल सिंह के ख़िलाफ़ भी एफ़आईआर दर्ज़ की गई है. उज्ज्वल ने बीबीसी से कहा कि उन्हें फंसाया जा रहा है.
उन्होंने कहा, "मेरे ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ की गई तो सुशील सिंह और रामाधार सिंह के ख़िलाफ़ क्यों नहीं की गई?"
"पत्थर नहीं चलाना चाहिए था"
ज़िला बीजेपी अध्यक्ष दशरथ मेहता ने पूरे मामले से पल्ला झाड़ते हुए कहा, "मैं संगठन में नया हूं. मुझे इन चीज़ों से कोई मतलब नहीं है. हमारे लोग जुलूस में थे ये सच है, पर उन्होंने कोई ग़लत काम नहीं किया है."
शहर की बड़ी मस्जिद के पास काफ़ी सघन बाज़ार है. यहां के लोगों का आरोप है कि सुशील सिंह ने हथियार और पेट्रोल बांटा है. फ़िलहाल सुशील सिंह शहर में नहीं हैं.
पार्टी का कहना है कि वो दिल्ली में हैं. रामाधार सिंह भी शहर में नहीं हैं. उनसे बात हुई तो कहा कि वो गुवाहाटी पूजा करने गए हैं.
अनिल सिंह भी फ़रार हैं और उज्ज्वल भी एफ़आईआर दर्ज होने के बाद से शहर में नहीं हैं.
हालांकि इसी इलाक़े के तस्लीमुद्दीन कहते हैं कि उनके मोहल्ले से भी ग़लती हुई है. उन्होंने कहा कि पत्थर नहीं चलाना चाहिए था.
"पत्थर हिंदू नहीं फेंकता है"
तस्लीमुद्दीन की बात सुन वहां मौजूद लोग एक साथ बोल उठे कि पत्थर भड़काऊ नारे के बाद लोगों ने फेंका.
इस पर तस्लीमुद्दीन कहते हैं कि उनका मक़सद भड़काना ही तो था और हम उनके जाल में फंस गए.
औरंगाबाद में मौजूद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के दक्षिण बिहार प्रांत मुख्य मार्गकार्य प्रमुख देवेंद्र कुमार सिंह को लगता है कि यह क्रिया की प्रतिक्रिया है.
उनका कहना है कि अगर यह सुनियोजित होता तो मुस्लिम साईं मंदिर तक नहीं पहुंच सकते थे.
देवेंद्र कुमार सिंह ने कहा, "पत्थर हिंदू नहीं फेंकता है. हिंदुओं की कोई तैयारी नहीं थी." पर लोग पूछ रहे हैं, बिना तैयारी के मुसलमानों की दर्जनों दुकानें कैसे जला दी गईं?
क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया
इस पर देवेंद्र कुमार सिंह कहते हैं, "जलाने का क्या है. आप क्रिया करिएगा तो यह बहुसंख्यक तत्व है और ये जला सकता है. 200 हिंदुओं पर एफ़आईआर हुई है."
"इतने मुसलमानों पर तो नहीं हुई है. डेढ़ महीने पहले ही आईबी की रिपोर्ट हमलोग के पास थी कि रामनवमी के मौक़े पर दंगा होगा. हमें प्रशासन ने आश्वस्त किया था."
"निश्चित रूप से जो दुकानें जलाई गई हैं वो प्रतिक्रियास्वरूप हुई हैं. मुझे लगता है कि अगर प्रशासन ठीक से काम करेगा तो मुसलमानों में भी ऐसा नहीं है कि कोई देशद्रोही होगा."
देवेंद्र सिंह धर्म और राष्ट्रभक्ति के सवाल पर कहते हैं, "आज कोई हिंदू मुसलमान हो जाता है तो धर्मांतरण सिर्फ़ एक हिंदू का नहीं होता है बल्कि उनकी आस्था भारतवर्ष से कट जाती है. वो भारत माता की जय नहीं करते हैं और उनकी निष्ठा मक्का मदीना से हो जाती है."
देवेंद्र कुमार सिंह के मुताबिक़, "हिंदू ही हिंदुस्तान को अपनी मातृभूमि, पुण्यभूमि, कर्मभूमि और मोक्षभूमि मानता है, लेकिन बाक़ी धर्म वाले इसे भोगभूमि मानते हैं. जो इस देश के पूर्वजों को अपना पूर्वज मानता है, भारत माता और गौ माता के प्रति श्रद्धा रखता है वो राष्ट्रीय तत्व हैं बाक़ी राष्ट्रीय नहीं रहते."
औरंगाबाद शहर
बिहार में औरंगाबाद का शुमार उन शहरों में से था जहां कभी दंगे नहीं हुए. औरंगाबाद की ख़ासियत है कि यहां मुस्लिम और हिंदू आबादी एक साथ बसी है.
कई लोगों का कहना है कि अगर हिंदू-मुस्लिम अलग-अलग बसे होते तो दंगे का रूप और व्यापक हो सकता था.
हालांकि इसके बावजूद शहर के हिंदू और मुसलमानों में कोई कड़वाहट नहीं है. इस दंगे में नईम नाम के एक व्यक्ति की हालत गंभीर बनी हुई है.
नईम की पड़ोसी देवंती देवी कहती हैं कोई दंगा उन्हें अलग नहीं कर सकता.
देवंती की इस बात से वहां खड़े मुसलमानों के चेहरे पर भरोसा और आश्वासन की लकीरें साफ़ दिखती हैं.
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