राजनीतिक कव्वाली गा रहे बिहार एनडीए के नेता, नीतीश सरकार सौ टका पांच साल चलेगी
पटना, 05 जून। बिहार में एनडीए के नेता राजनीतिक कव्वाली गा रहे हैं। जनता के सामने मंच पर तरह-तरह से पैंतरे लेकर जुबानी जंग लड़ते हैं। अल्फाजों की लड़ाई से समां बांधते हैं। फिर बाद में सब खैरियत है कह कर रुखसत हो लेते हैं। एमएलसी टुन्ना जी पांडेय ने नीतीश कुमार पर हमला बोला। जदयू के उपेन्द्र कुशवाहा ने भी इसका करारा जवाब दिया। टुन्ना जी पांडेय पर भाजपा ने एक्शन भी लिया। लेकिन जब राजनीति में सेवा और मेवा का सवाल आया तो दोनों को इसका लाभ मिला। काहे की लड़ाई। 'ऊपरवाले' की कृपा दोनों पर बनी रही। जीतन राम मांझी ने भी कुछ सुर-ताल जमाये। फिर एनडीए का तराना गाने लगे।
ये यूं ही भरमाते रहेंगे
चार विधायकों वाले जीतन राम मांझी ने एनडीए में रह कर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ खुला पंगा लिया। फिर लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की शादी की वर्षगांठ पर बधाई दे कर सबको चौंका दिया। खूब भौकाल बनाया। यहां जा रहे हैं, वहां जा रहे हैं तक की चर्चा हुई। तब जीतन राम मांझी खुद प्रगट हुए और पुरानी स्पीच दोहरा दी। एनडीए में थे, एनडीए में रहेंगे। पता नहीं मांझी जी को बार-बार ये कहने की नौबत क्यों आती है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और जदयू के नये योद्धा उपेन्द्र कुशवाहा में 'वर्ड वार' तो ऐसा हुआ कि न जाने क्या हो जाएगा। कुछ दिन माहौल बनाया। फिर ठंडा पड़ गये।
एमएलसी टुन्ना जी पांडेय ने जब बेसुरी तान छेड़ी तो उपेन्द्र कुशवहा ने संजय जायसवाल से पुराना हिसाब चुकता करने में कोई देर न की। एक राजनीतिक शायर का कहना है, "पांडेय जी तो कटी हुई पतंग थे। उनके लिए भी भाजपा-जदयू में भिड़ंत हो गयी। जुलाई 2021 में पांडेय जी का टर्म पूरा हो रहा है। एनडीए की हवा मुफीद न लगी तो राजद के खिड़की पर नजर जमा दी। कहीं जाने के लिए कोई तो बहाना चाहिए था। सो जा भिड़े सीधे नीतीश कुमार से। पांडेय जी भाजपा के समर्पित नेता भी न थे। ओसामा शहाब से मुलाकात ने आग में घी डाल दिया। तब पांडेयजी को संस्पेंड करना भाजपा के लिए लाजिमी हो गया। भाजपा, जदयू और हम की लड़ाई केवल दिलों की भड़ास है। नीतीश सरकार सौ टका पांच साल चलेगी। लालू प्रसाद के आने से भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।"
सौ टका पांच साल चलेगी सरकार
नीतीश कुमार सरकार पांच साल तक चले, इसी में जदयू, भाजपा हम और वीआइपी की भलाई है। सरकार का गिरना किसी के सेहत के लिए ठीक नहीं। हम के अध्यक्ष जीतन राम मांझी नीतीश सरकार गिरा तो सकते हैं लेकिन तेजस्वी यादव की सरकार बना नहीं सकते। चार विधायकों से तेजस्वी की साध नहीं पूरी होने वाली। इसके लिए चौदह विधायकों का समर्थन चाहिए। ऐसे में जीतन राम मांझी अपने बूते गरज तो सकते लेकिन बरस नहीं सकते। मुकेश सहनी की हम पार्टी के भी चार ही विधायक हैं। इनमें तीन विधायक स्वर्णा सिंह, मिश्री लाल यादव और राजू कुमार सिंह की पृष्ठभूमि भाजपा की है। वे भाजपा के नेता रहे हैं और चुनावी तालमेल की वजह से इन्हें वीआइपी के सिम्बल पर चुनाव लड़ना पड़ा था।
मुकेश सहनी अगर महागठबंधन में जाना भी चाहें तो उनके तीन विधायक इसका विरोध कर सकते हैं। यानी मुकेश सहनी के लिए भी पाला बदलना कठिन है। अधिक से अधिक वे दबाव बनाने की राजनीति ही कर सकते हैं। इस बीच एनडीए को बसपा के जमा खां और निर्दलीय सुमित सिंह का समर्थन मिल चुका है। ये दोनों नीतीश सरकार में मंत्री भी बन चुके हैं। लोजपा के एक मात्र विधायक रहे राजकुमार सिंह भी एनडीए के साथ हो चले हैं। कोई राजनीतिक भूचाल आ जाए तो अलग बात है, वर्ना नीतीश सरकार तो संख्याबल में मजबूत दिख रही है। एनडीए के चार पांच विक्षुब्ध नेताओं के लड़ने-भिड़ने से यह सरकार गिरने वाली नहीं। लालू प्रसाद भी अगर चाह लें तो कैसे गिराएंगे नीतीश सरकार ? बहुत बड़े विखंडन की कोई सूरत तो नहीं दिखती।
दिखावे की लड़ाई, सुविधा के उपभोग में सब साथ
गठबंधन की सरकार में 'ये दिल मांगे मोर' की कोई गुजाइश नहीं होती। लेकिन दिल है कि मानता नहीं। सहयोगी दलों में महत्वाकांक्षाओं की पतंग ऐसी उड़ती है कि पेंच लड़ ही जाता है। नीतीश सरकार में मुख्य घटक भाजपा और जदयू वर्चस्व की होड़ में टकराते रहते हैं। यह सब दिखावा है। अपने समर्थकों में जोश फूकने के लिए दोनों दलों के नेता कड़वे बोल बोलते हैं। अंदरखाने में मिलजुल कर सुविधा का उपभोग करते हैं। जिस टुन्ना जी पांडेय ने पांच दिन पहले नीतीश कुमार को परिस्तितियों का सीएम कहा था उन्हें बिहार विधान परिषद की दो समितियों में जगह मिल गयी। इन्हें विधान परिषद की सामान्य प्रयोजन समिति तथा गैरसरकार विधेयक एवं संकल्प संबंधी समिति का सदस्य बनाय गया है।
जिस उपेन्द्र कुशवाहा ने टुन्ना जी पांडेय पर कार्रवाई के लिए भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल पर निशाना साधा था उन्हें भी दो समितियों में शामिल किया है। उपेन्द्र कुशवाहा को पर्यटन विकास समिति का अध्यक्ष और आचार समिति का सदस्य बनाया गया है। विधान परिषद की समितियों में जगह मिलने से एमएलसी के प्रभाव और आमदनी में इजाफा होता है। हर समिति की महीने में तीन बैठक होती है। अगर कोई एमएलसी दो समितियों में है तो उसे छह बैठकों में शिरकत करनी होगी। एक बैठक में शामिल होने के लिए दो हजार रुपये का दैनिक भत्ता मिलता है। आर्थिक फायदा के साथ साथ हैसियत भी बढ़ जाती है। समिति के सदस्य अपने वाहन पर पद का बोर्ड भी लगा सकते हैं। जहां तक एनडीए में खटपट की बात है तो यह घटक दलों की मजबूरी है। उन्हें हैसियत दिखाने के लिए तेवर दिखाना पड़ता है।