बिहार न्यूज़ के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
Oneindia App Download

बिहार चुनाव: बीजेपी ने कठिन चुनौतियों के बीच कैसे खिलाया कमल

बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जेडीयू से अधिक सीटें हासिल की हैं. हिंदी भाषी राज्यों में उत्तर प्रदेश के बाद बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती रहे बिहार में इस कामयाबी को कैसे देखा जाएगा.

By दिव्या आर्य
Google Oneindia News

बिहार चुनाव 2020
Sonu Mehta/Hindustan Times via Getty Images
बिहार चुनाव 2020

कोरोना महामारी की मार झेल रही जनता, आर्थिक तंगी, बेरोज़गारी, कामगारों की परेशानियां और गठबंधन के 15 साल की 'एंटी-इनकम्बेंसी' के बीच भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) बिहार में जीत दर्ज करने में कामयाब रही है.

हालांकि राज्य में अपने बल पर सरकार बनाने और सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आने का सपना फिर भी पूरा नहीं हो पाया.

बीस साल से सरकार बनाने की कोशिश और गठबंधन सरकार में जूनियर पार्टनर रहने के बाद, इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपना प्रभुत्व तो साबित किया है. अब बीजेपी वादे के मुताबिक भले ही नीतीश को मुख्यमंत्री बना दे लेकिन दबदबा उसी का होगा, सीनियर पार्टनर वही होगी.

हिंदी भाषी राज्यों में उत्तर प्रदेश के बाद राजनीतिक तौर पर दूसरा प्रमुख राज्य, बिहार, हमेशा ही बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती रहा है.

Reuters
Reuters
Reuters

साल 2014 की मोदी लहर के बाद 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी, राज्य में अपने दम पर सरकार बनाने लायक स्थिति में नहीं थी, 1990 के दशक में रामजन्मभूमि आंदोलन के बावजूद हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर वहां अपनी जगह नहीं बना पाई.

हालांकि 2019 विधानसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर रहा है.

बीजेपी के लिए इस जीत को अहम बताते हुए वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी इन नतीजों को चकित करने वाला भी मानती हैं. वो कहती हैं, "ऐसा कम ही होता है कि लोगों में बदहाली हो पर वो सत्तारूढ़ गठबंधन में एक पार्टी को उसके लिए ज़्यादा ज़िम्मेदार मानें. बिहार में जनता ने अपनी परेशानियों के लिए मुख्यमंत्री नीतीश से नाराज़गी दिखाई है और प्रधानमंत्री मोदी से उम्मीद."

बीजेपी के इस प्रदर्शन को समझने के लिए मौजूदा चुनाव के गणित के अलावा बीजेपी के बिहार में अब तक के सफ़र पर नज़र डालनी ज़रूरी है.

EPA
EPA
EPA

हिंदुत्व या जाति

बिहार में बीजेपी (तब जनसंघ) ने पहली बार 1962 के विधानसभा चुनाव में तीन सीटें जीतीं थीं. देश की राजनीति में ये कांग्रेस का दौर था.

1970-80 के दशक में बड़ा बदलाव आया. ग़ैर-कांग्रेसी दल साथ आए. जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से बिहार में तीन बड़े समाजवादी नेता उभरे-- लालू यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान.

1980 में जनसंघ से बनाई गई पार्टी, बीजेपी ने भी राज्य में अपनी पकड़ बेहतर की और 21 सीटें जीतीं. लेकिन बीजेपी के किसी नेता का बिहार में वैसा कद नहीं था. हिंदुत्व की राजनीति और सवर्ण वोटबैंक पर निर्भरता से बीजेपी का काम नहीं बन रहा था.

दशकों से बिहार की राजनीति पर रिपोर्टिंग करते रहे वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर के मुताबिक, राज्य की राजनीति हमेशा उत्तर प्रदेश से अलग रही है, "ये लोग लाख कोशिश कर लें, उत्तर प्रदेश में चाहे माहौल बन जाए, पर बिहार में धर्म मुखर होकर सामने नहीं आता. जातीय समीकरण ही काम करता है. इस बार भी प्रधानमंत्री मोदी और योगी आदित्यनाथ ने अपनी रैलियों में राम मंदिर का ज़िक्र किया, मुस्लिम बहुल इलाकों में लोगों को बांटने की कोशिश की गई, पर इसका असर सीमित ही था."

बिहार में लंबे समय से कांग्रेस के सत्ता में रहने के बाद 1990 में लालू यादव की अध्यक्षता में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) जीती और लगातार 15 साल तक सरकार बनाई.

उस दौर में राम मंदिर की मांग के ज़रिए देश में लोकप्रिय हुई बीजेपी इस मुद्दे पर बिहार में पैठ नहीं बना पाई बल्कि बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा बिहार में लालू प्रसाद यादव ने ही रोकी.

Twitter/BJP
Twitter/BJP
Twitter/BJP

गठबंधन की राजनीति

साल 2000 में आखिरकार बीजेपी को ये बात समझ में आ गई कि गठबंधन के बिना सत्ता पर काबिज़ होना मुमकिन नहीं और राज्य में अकेले चुनाव लड़ने की बजाय उसने समता पार्टी के साथ हाथ मिलाया.

बीजेपी ने 168 सीटों पर चुनाव लड़ा और 67 सीटें जीतीं.

इस नतीजे के कुछ ही महीने बाद बिहार का दो राज्यों में विभाजन हो गया. इससे बीजेपी के 32 विधायक झारखंड के हो गए और बिहार में 35 ही रह गए.

साल 2003 में जनता दल और समता पार्टी का विलय हुआ और जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) बनी.

आखिरकार साल 2005 में आरजेडी के 'जंगलराज' के सामने 'सुशासन' का वादा करने वाले जेडीयू-बीजेपी के एनडीए गठबंधन ने राज्य में सरकार बनाई.

बीजेपी ने 102 सीटों पर चुनाव लड़ा, 55 सीटें जीतीं और कुल वोट का क़रीब 16 फ़ीसद अपने नाम किया. 88 सीटों के साथ जेडीयू ही गठबंधन का बड़ा पार्टनर था और नीतीश कुमार बने मुख्यमंत्री.

साल 2010 में गठबंधन और मज़बूत हुआ, बीजेपी ने 91 और जेडीयू ने 115 सीटें जीतीं.

लेकिन जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तो नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया.

साल 2015 का विधानसभा चुनाव बीजेपी ने अकेले दम पर लड़ा. आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों ने बीजेपी को चुनौती देने के लिए 'धर्मनिरपेक्ष' मूल्यों के नाम पर महागठबंधन बनाया और सरकार बनाने में कामयाब रही.

नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव को उप-मुख्यमंत्री का पद मिला.

2014 के लोकसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत से उत्साहित बीजेपी ने बिहार की 157 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा था. तब पार्टी अध्यक्ष रहे अमित शाह ने कहा था कि अगर बीजेपी हारी तो पाकिस्तान में पटाखे फोड़े जाएंगे.

Twitter/BJP
Twitter/BJP
Twitter/BJP

प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के लिए एक बड़े आर्थिक पैकेज का एलान भी किया था लेकिन बीजेपी की सीटें 91 से गिरकर 53 पर आ गई.

चुनाव में बीजेपी चाहे हारी हो, लेकिन दो साल बाद उलटफेर में वो फिर से नीतीश कुमार के साथ गठबंधन बनाकर सत्ता में काबिज़ होने में कामयाब रही.

नीतीश कुमार ने उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार का हवाला देते हुए पद से इस्तीफ़ा दे दिया, इसके बाद वे बीजेपी के साथ गठजोड़ करके फिर मुख्यमंत्री बन गए.

एक बार फिर साफ़ हो गया था कि बीजेपी को बिहार में गठबंधन की ज़रूरत थी.

Twitter/BJP
Twitter/BJP
Twitter/BJP

2020 में क्या बदला?

2015 के चुनाव में नीतीश और लालू के गठबंधन को सभी पिछड़ी जातियों और मुस्लिम वोटबैंक को साथ लाने वाला माना गया था जिसने उनकी जीत सुनिश्चित की.

वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर के मुताबिक जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए अपनाई गई बीजेपी की रणनीति उनके लिए काम की है, "बीजेपी ने अति पिछड़े वर्ग में अपनी पैठ बनाई, यादवों की ज़मीन कमज़ोर करने के लिए लगातार पिछड़े वर्ग के लोगों को नेतृत्व में शामिल किया और महादलित समुदाय में ये भावना बढ़ाई कि मोदी ही सबको बचा सकते हैं."

प्रधानमंत्री मोदी कई चुनावी रैलियों में अपने पिछड़ी जाति से होने का ज़िक्र करते रहे हैं.

पिछले दशकों में बीजेपी ने अपना वोटबैंक भी धीरे-धीरे बढ़ाया है. साल 2015 में कम सीटें जीतने के बावजूद पार्टी को कुल 24 फ़ीसद वोट मिले, वह राज्य में मतों के प्रतिशत के मामले में नंबर वन पार्टी बन गई थी.

2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अभूतपूर्व कामयाबी हासिल की और राज्य के 40 में से 39 सीटें जीत लीं.

बीजेपी ने 2020 का विधानसभा चुनाव जेडीयू के साथ गठबंधन में लड़ा तो ज़रूर पर उस रिश्ते में दरार दिखने लगी थी.

मणिकांत ठाकुर के मुताबिक इसके बावजूद गठबंधन न तोड़ने के पीछे बीजेपी की रणनीति थी, "लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान को नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ मुहिम चलाने देना, भ्रष्टाचार के आरोप लगाने देना, ये सब बीजेपी ने जानबूझकर होने दिया. उन्हें अपने कार्यकर्ताओं से जो फीडबैक मिला, उसमें नीतीश से अलग होने की बात थी, पर पार्टी ने उन्हें बड़े भाई का दर्जा देते हुए गठबंधन बनाए रखा और उनकी छवि पर प्रहार होने दिया."

Twitter/BJP
Twitter/BJP
Twitter/BJP

'जंगलराज के युवराज'

इस चुनाव में बीजेपी के सामने गठबंधन को संभालने के अलावा दूसरी चुनौती विपक्ष था जिसमें नई जान फूंकी आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने. उन्होंने धर्म और जाति की जगह लोगों के मुद्दों को अपने प्रचार का आधार बनाया.

दस लाख नौकरियों का उनका वायदा इतना लोकप्रिय हुआ कि बीजेपी को भी उसे अपना एजेंडा बनाना पड़ा. पर साथ ही उसने लालू प्रसाद यादव के समय के 'जंगलराज' का ज़िक्र बनाए रखा.

'एंटी-इनकमबेंसी' से लोगों का ध्यान हटाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी रैली में 'जंगलराज के युवराज' का जुमला इस्तेमाल किया जिसे मीडिया ने भी बहुत जगह दी.

नीरजा चौधरी के मुताबिक इस चुनाव में कुछ हद तक मोदी को नीतीश के विकल्प के तौर पर देखा गया लेकिन तेजस्वी ने साफ़ कर दिया कि लोगों के गुस्से को कम आंकना ग़लत होगा, "लोगों के बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर होना, छह महीने का राशन मिलना, ऐसी योजनाओं का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को मिला लगता है और महज़ तीस साल के तेजस्वी ने लोगों की परेशानी को बेहतर समझा और साफ़ कर दिया कि केवल हिंदुत्व या जातीय समीकरण ही जीत नहीं दिला सकते."

Reuters
Reuters
Reuters

बीजेपी के लिए ये जीत बहुत अहम है क्योंकि इसमें तीन बार मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार की हार भी है. वो अब गठबंधन में छोटे नेता हो गए हैं.

चुनाव से पहले बीजेपी ने साफ़ किया था कि नतीजे चाहे जो भी हों, मुख्यमंत्री का पद नीतीश कुमार का ही होगा. पर बीजेपी की ऐसी जीत के बाद वो इरादा बदलकर बीजेपी का मुख्यमंत्री तो नहीं बनाया जाएगा?

मणिकांत ठाकुर के मुताबिक बीजेपी को अब भी अपना मुख्यमंत्री बनाने से पहले बहुत सोचना पड़ेगा, "अगर बीजेपी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं बनाया तो विश्वासघात कहा जाएगा. बाक़ी बाद में हो सकता है कि नीतीश को केंद्रीय मंत्री पद देकर कुछ कर दिया जाए, पर वो बाद वाली बात किसने देखी है."

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Bihar Election Result 2020: How BJP leads amidst tough challenges in bihar
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X