बांदा की अनोखी बारात : बैलगाड़ी पर बैठकर दुल्हन लेने पहुंचा दूल्हा, प्रधान चाची ने समाज को दिया संदेश
बांदा, 12 मई: शादी का दिन किसी के जीवन का भी एक खूबसूरत लम्हा होता है। इस लम्हे को यादगार बनाने के लिए लोग करोड़ों रुपए खर्च कर तमाम इंतजाम करते हैं। महंगी गाड़ियों में बारात निकालते हैं, लाखों रुपए की आतिशबाजी और दिखावे में फिजूल खर्च करते हैं। इससे इतर, उत्तर प्रदेश के बांदा में हुई एक शादी ने लोगों के लिए मिसाल कायम की है। साथ ही, गुजरे जमाने की याद ताजा कर दी, जब लोग बैलगाड़ी से चलते थे।

ग्राम प्रधान के भतीजे की थी शादी
बांदा जिले के महोटा गांव की प्रधान संध्या मिश्रा ने शादियों के दौरान फिजूलखर्ची पर रोक लगाने का संदेश देते हुए एक उदाहरण स्थापित किया है। उन्होंने अपने भतीजे अंकित मिश्रा की 'बारात' को ले जाने के लिए लग्जरी गाड़ियों के बजाए बैलगाड़ियों का विकल्प चुना। इतना ही नहीं, उन्होंने दुल्हन के परिवार को भी फिजूलखर्ची में कटौती करने और 'पत्तल', 'डोना' और 'कुल्हड़ों' में खाना परोसने के लिए कहा।

एक दर्जन बैलगाड़ियों में निकली बारात
प्रधान संध्या मिश्रा के भतीजे अंकित मिश्रा की बारात 9 मई को थी। बारात 4 किलोमीटर दूर गांव शिवपुरी जानी थी। इस पर महिला प्रधान ने भतीजे अंकित के साथ करीब 1 दर्जन बैलगाड़ियों से बारात निकाली। सभी बाराती बैलगाड़ी से सवार होकर दुल्हन के घर पहुंचे। बारात में कोई गाड़ी नहीं थी। शादी में प्लास्टिक का उपयोग भी नहीं किया गया। प्लेट, गिलास की जगह कुल्हड़ और देशी पत्तल का उपयोग किया गया। शादियों में बफर सिस्टम के नियम को दरकिनार कर जमीन में खाना-पीना कराया गया।

बैलगाड़ी में ही बैठकर अपनी दुल्हनिया लेने पहुंचा दूल्हा
दूल्हे ने खजूर से बना एक 'सेहरा' पहना था, जो बुंदेलखंडी परंपरा का हिस्सा रहा है। शेरवानी और सेहरा पहने दूल्हा बने अंकित भी बैलगाड़ी पर बैठकर अपनी दुल्हन लेने पहुंचे। दुल्हन पक्ष ने सभी का स्वागत सत्कार किया। ग्राम प्रधान संध्या मिश्रा ने कहा, "ऐसा करके मैंने न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान से बचाया, बल्कि फिजूलखर्ची को भी रोका।" बारात में 12 बैलगाड़ियों का एक कारवां शामिल था। दूल्हा अपनी चाची के साथ बैलगाड़ी में बैठा था। बारात जब मुख्य मार्ग से गुजरी तो लोग भी इस नजारे को देखकर काफी खुश हुए।

वाहनों पर नहीं खर्च किया एक भी रुपया, पैसों से दूल्हा-दुल्हन के आभूषण बने
संध्या मिश्रा ने आगे कहा, ''डीजल और पेट्रोल बहुत महंगे हैं। साथ ही वाहनों से होने वाला प्रदूषण भी फैलता है। इसलिए बारात 12 बैलगाड़ियों में लाई गईं। इसके साथ ही पुराने जमाने की परंपराओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया है, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी को हमारे रीति-रिवाजों के बारे में पता चल सके। बारात के आगमन के साथ, दुल्हन भी अगले दिन मंगलवार को 'बिदाई' के बाद एक बैलगाड़ी से वापस चली गई।'' ग्राम प्रधान ने कहा कि वाहनों पर एक भी रुपया खर्च नहीं किया गया। उस पैसे से भतीजे और दुल्हन के लिए कपड़े और आभूषण बनाए गए थे।
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