उत्तराखंड: टायर पंचर न होता तो चली जाती 42 जानें
लखनऊ। उत्तराखंड से सकुशल उत्तर प्रदेश लौटे एक श्रद्धालु शिवनारायण ने बताया कि वह जिस बस में केदारनाथ धाम के लिए जा रहे थे, वह उत्तरकाशी से लगभग सात किलो मीटर पहले आईटीबीपी कैम्प में रुकी और जब वहां से रवाना हुई तो पंचर हो गई। बस के सभी यात्रियों को फिर कैम्प में ही रुकना पड़ा, इस कारण बादल फटने के दिन 42 यात्रियों की जान बच गई।
उत्तराखंड
त्रासदी
से
बचे
शिवनारायण
की
आंखों
में
अभी
भी
वह
भयावह
मंजर
नाच
रहा
है।
लगभग
दो
सप्ताह
बाद
सकुशल
लौटे
शिवनारायण
ने
उत्तराखंड
के
हालात
एवं
वहां
की
विषम
परिस्थितियों
के
बारे
में
बताया।
उत्तर
प्रदेश
के
फतेहपुर
जनपद
के
ब्लॉक
खजुहा
अंतर्गत
ग्रामसभा
छीछा
के
निवासी
57
वर्षीय
शिवनारायण
उर्फ
पुत्तन
सिंह
10
जून
को
बांदा
जनपद
मुख्यालय
से
42
यात्रियों
के
साथ
पर्यटक
बस
से
केदारनाथ
धाम
के
लिए
रवाना
हुए।
हरिद्वार-ऋषिकेश होते हुए उत्तरकाशी से लगभग सात किलोमीटर पहले आईटीबीपी के कैम्प के पास बस रुकी। आगे की यात्रा के लिए बस रवाना होने ही वाली थी, तभी चालक ने टायर पंचर होने की सूचना दी। सभी यात्रियों ने रात उसी कैम्प में गुजारना मुनासिब समझा।
शिवनारायण ने बताया कि तीन-तीन मंजिली इमारतें ऐसी टूटीं कि दिल दहल उठा। ऐसी तबाही का मंजर न कभी देखा गया और शायद आगे भी उनके जीवन में नहीं दिखेगा। वह लगभग दो सप्ताह तक फंसे रहे। उनके बारे में जानकारी के लिए परिजन तड़पते रहे, लेकिन कहीं से कोई खबर नहीं मिली। सोमवार सुबह चार बजे वह जब सकुशल घर लौटे तो परिजनों की आंखें छलक पड़ीं। शिवनारायण की वृद्धा मां मोतिन, पत्नी कुसमा, बहन विमला, भांजा सुमित सिंह, पुत्र शिरोमन व सौरभ सिंह और नातिन अनुष्का ने उन्हें अपने बीच पाकर राहत की सांस ली। शिवनारायन बताते हैं कि चारों तरफ इमारतों का मलबा, शवों के ढेर और चीख-पुकार का मंजर वास्तव में मौजूदा समय में उत्तराखंड की तस्वीर बन गई है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।