ट्राई वैली के विद्यार्थियों ने खतरों को नजरअंदाज किया था
अरूण कुमार
वाशिंगटन, 2 फरवरी (आईएएनएस)। अमेरिका स्थित भारतीय दूतावास जहां एक ओर आव्रजन घोटाले में फंसे सैकड़ों भारतीय विद्यार्थियों की मदद के लिए हरसम्भव कोशिश कर रहा है, वहीं राजनयिकों ने स्वीकार किया है कि अधिकांश विद्यार्थियों ने कई खतरों को नजरअंदाज करते हुए इस युनिवर्सिटी में दाखिला लिया था।
आधिकारिक रूप से तो भारतीय रुख यह है कि ट्राई वैली युनिवर्सिटी के भारतीय विद्यार्थी, वैध यात्रा दस्तावेजों के साथ अमेरिका पहुंचे थे और उन्होंने युनिवर्सिटी में दाखिला लेने के लिए अपने वीजा स्टेटस के परिवर्तन में उचित प्रक्रिया का पालन किया था।
यह विश्वविद्यालय मई 2010 में उस समय प्रशासन की नजरों में आया था, जब उसने एक वर्ष पहले सम्पत्ति मामलों की जांच करने सम्बंधी एक पाठ्यक्रम शुरू किया था। सितम्बर 2010 में भारत स्थित अमेरिकी वाणिज्य दूतावासों ने ट्राई वैली में दाखिले के आधार पर छात्र वीजा जारी किए थे।
इस तरह भारत का आधिकारिक रुख यह रहा है कि विद्यार्थी वैध प्रक्रिया के जरिए अमेरिका गए थे और युनिवर्सिटी व अमेरिका प्रशासन के बीच किसी भी समस्या को जल्द से जल्द सुलझा लिया जाना चाहिए और भारतीय विद्यार्थियों को शिकार नहीं बनाया जाना चाहिए।
जानकार सूत्रों ने हालांकि स्वीकार किया है कि किसी भी विद्यार्थी ने इस बारे में कभी शिकायत नहीं की कि युनिवर्सिटी मात्र एक कमरे में 13 लैपटॉप्स और पांच डेस्कटॉप्स के जरिए चलती थी, जहां इंजीनियरिंग के 1500 से अधिक विद्यार्थी नामांकित थे। इस युनिवर्सिटी की वेबसाइट का कोई भी पन्ना ऐसा नहीं है, जिस पर स्पेलिंग और ग्रामर की गलती न हो। लेकिन ऐसा नहीं है कि विद्यार्थियों ने ही यहां दाखिले की गलती की, बल्कि अन्य युनिवर्सिटियों ने इस युनिवर्सिटी में उनका स्थानांतरण भी दे दिया। इस युनिवर्सिटी के 90 प्रतिशत विद्यार्थी भारत से हैं और उनमें से अधिकांश आंध्र प्रदेश से हैं।
चूंकि युनिवर्सिटी ने विद्यार्थियों को उपस्थिति के मामले में छूट और अध्ययन वीजा के नाम पर कार्य परमिट प्रदान किया, लिहाजा विद्यार्थियों ने इन सभी खतरों को नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने इस सच्चाई को नजरअंदाज कर दिया कि किसी विद्यार्थी को हर हाल में संस्थान में होना चाहिए और वह केवल परिसर में सप्ताह में 20 घंटे काम कर सकता है। एक भारतीय अधिकारी ने कहा, "किसी ने भी शिकायत नहीं की क्योंकि वे सोचते थे कि यह उनके हित में है।"
अमेरिकी आव्रजन एवं सीमा शुल्क प्रवर्तन एजेंसी (आईसीई) के निदेशक ने अमेरिका में भारतीय राजदूत मीरा शंकर से बात की है और दूतावास ने भी विद्यार्थियों के पैर में रेडियो कॉलर पहनाए जाने के मामले पर अमेरिकी विदेश विभाग और घरेलू सुरक्षा विभाग से बात की है।
उधर वाशिंगटन ने नई दिल्ली की उस मांग को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने विद्यार्थियों के पैरों से रेडियो कॉलर हटाने के लिए कहा था।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।