कांवड़ियों के आगमन और 'हर-हर महादेव' से गूंजी दिल्ली
आकर्षक ढंग से सजे कांवड़ को अपने कंधों पर उठाए कांवड़िए हरिद्वार से गंगाजल लाते हैं और नंगे पांव सैकड़ों किलोमीटर की पदयात्रा कर अपने घर लौटते हैं तथा भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। उत्तर भारत के विभिन्न गांवों एवं शहरों से कांवड़िए हर वर्ष सावन महीने में कांवड़ लेकर हरिद्वार की ओर निकल पड़ते हैं।
सैकड़ों से हजारों तक की संख्या में ये कांवड़िए मुख्यत: दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से आते हैं। वे दिल्ली से राजमार्ग एवं अन्य मुख्य सड़कों से होते हुए अपने गंतव्य की ओर बढ़ते हैं, जिस कारण यातायात जाम की समस्या उत्पन्न होती है।
कांवड़ियों की अधिक संख्या के कारण दिल्ली आने वाले मुख्य मार्गो को आम यातायात के लिए बंद कर दिया जाता है।
कांवड़िए उत्तराखण्ड में हरिद्वार, गंगोत्री या गोमुख में गंगाजल भरते हैं और अपने घर लौटकर स्थानीय मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।
यह आयोजन प्रत्येक वर्ष जुलाई-अगस्त यानी हिंदू पंचांग के अनुसार सावन महीने में होता है।
इस वर्ष यह त्योहार 25 जुलाई से शुरू हुआ जो आठ अगस्त को समाप्त होने जा रहा है।
इस वर्ष चौथी बार कांवड़ यात्रा कर रहे 23 वर्षीय संजय कुमार ने बताया, "मेरे परिवार का भगवान शिव में गहरी आस्था है। मैं भी प्रतिवर्ष कांवड़ यात्रा करता हूं और भगवान शिव को गंगाजल चढ़ाता हूं।"
उल्लेखनीय है कि दिल्ली एवं आसपास के इलाकों में कांवड़ियों के विश्राम के लिए 500 से अधिक शिविर लगाए गए हैं, जिनमें स्थानीय लोगों ने उनके लिए भोजन एवं पानी का प्रबंध किया है। हजारों कांवड़िए इन शिविरों में विश्राम करते हैं, फिर अपनी यात्रा शुरू करते हैं।
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा, "यात्रा को सफल बनाने के लिए सभी प्रबंध कर लिए गए हैं।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।