'चालू खाते का घाटा जीडीपी का 2.7 प्रतिशत रहने के आसार'
उन्होंने कहा, "पूंजी प्रवाह बढ़ने से चालू खाते का घाटा कम होगा और पूंजी भंडार में 31 अरब डॉलर की वृद्धि होगी। वहीं पूंजी खाते का घाटा खत्म हो जाएगा और आधिक्य की स्थिति रहेगी। इससे विनिमय दरें समान्य स्तर पर बनी रहेंगी। "
वैश्वीकरण और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संकट विषय पर उन्होंने कहा कि चालू खाते का घाटा कम करना जरूरी है।
यह घाटा हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कोई संकट नहीं है क्योंकि देश में पूंजी प्रभाव पर्याप्त है।
हैदराबाद विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज में एक व्याख्यान के दौरान उन्होंने कहा, "वैश्वीकरण के दौर में बाजार के दबाव और नियमन के बीच बेहतर संतुलन के जरिए पूंजी प्रवाह का प्रबंधन होना चाहिए।"
उन्होंने सुझाव दिया कि बड़ी मात्रा में पूंजी प्रवाह को संभालने का सही तरीका आर्थिक विकास में तीव्र वृद्धि करना है इससे अर्थव्यवस्था में पूंजी को अवशोषित करने की क्षमता बढ़ जाती है।
उन्होंने कहा कि मौजूदा आर्थिक संकट ने विकसित देशों में वित्तीय नियमन की कमजोरी को प्रदर्शित किया है। रंगराजन ने कहा कि वित्तीय बाजार के हर क्षेत्र में नियमन होना जरूरी है खासकर वित्तीय संस्थाओं के नियमन पर खास ध्यान दिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संकट वैश्वीकरण के प्रभावों में से एक है। वैश्वीकरण समृद्धि और विपत्ति दोनों का प्रसार करता है।
उन्होंने कहा, "आने वाले वर्षो में हम वित्तीय सेवाओं पर प्रतिबंधों को बढ़ते हुए देख सकते हैं। विकासशील देश कोषों का अनियमित प्रवाह नहीं देखना चाहते। प्रत्येक वस्तु के विषय में विचार का संतुलन होना जरूरी है।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।