..तो कुंआरी रह जाएंगी बेटियां!
बांदा, 15 मार्च (आईएएनएस)। सपेरा बिरादरी में आज भी दहेज में सांप देने की पुरानी परंपरा है। सांप पालने के सरकारी प्रतिबंध से जहां सपेरों को रोजी-रोटी का संकट है, वहीं बेटियों के कुंआरी रह जाने का डर भी सता रहा है। सपेरे हालांकि चोरी-छिपे अब भी कुछ सांप पाल कर दो जून की रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जनपद के शंकरगढ़ इलाके के कई गांवों में बसे सपेरा समाज के लोग सांप पालने के सरकारी प्रतिबंध से हलकान हैं। तकरीबन सभी सरकारी सुविधाओं से वंचित अनुसूचित जाति की सपेरा कौम का आर्थिक ढांचा बेहद कमजोर है। सांप पकड़ कर पालना और बीन (महुअर) बजा कर उन्हें नचाना इनका पुश्तैनी पेशा है, लेकिन सरकारी प्रतिबंध से अब रोजी-रोटी पर भी संकट मंडराने लगा है।
मेहनत-मजदूरी कर रोटी का इंतजाम तो हो सकता है, पर सबसे बड़ा डर बेटियों के कुंआरी रह जाने का है। बेटियों की शादी में कम से कम दो सांप बतौर दहेज देने की पीढ़ियों पुरानी परंपरा है।
बिमरा गांव के सपेरे श्यामनाथ ने आईएएनएस को बताया, "उसने अपनी बड़ी बेटी जदपति की शादी में दो सांप, बीन, झोला व एक गुदरी दहेज में दिया था। दो बेटियां और हैं, किन्तु अब सांपों की दरकार है। सरकारी रोक न हटी तो इनकी शादी कैसे होगी?"
श्यामनाथ बताता है कि उसकी बिरादरी में अधिकतम 10 वर्ष की उम्र में बेटियों की शादी का रिवाज है। इस समय वह प्रशासन की गैर जानकारी में एक काला नाग, एक तक्षक नाग व एक कौड़हाला गड़ैता नामक जहरीला सांप पाले हुए है। इस इलाके के कपारी, लोहगरा, भैरवघाट, कंचन पुरवा, तालापार व तपारी गांव में सपेरा जाति के करीब पांच सौ परिवार हैं, जो सांप पालने के पेशे से जुड़े हैं।
लोहगरा गांव के 60 वर्षीय सिलनाथ व 62 वर्षीय अक्कलनाथ का कहना है, "सांप पकड़ना जोखिम भरा काम है। दूसरा कोई रोजगार है नहीं, इसके बाद भी सांप पालने पर रोक लगा दी गई है। अब तो भूखों मरेंगे। सबसे बड़ी चिन्ता बेटियों की शादी की है। दहेज के लिए सांप कहां से लाएंगे?"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।