पुलिस व दबंगों की देन हैं बुन्देलखंड में डकैत!

By Staff
Google Oneindia News

बांदा, 20 जुलाई (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड अंचल में दस्यु आतंक के उत्कर्ष का इतिहास यद्यपि तीन दशक पुराना है, किन्तु बीते दो दशकों में घटित आपराधिक वारदातों ने इस अंचल को उत्पीड़न की पराकाष्ठा तक पहुंचा दिया है।

स्थिति यह है कि यहां शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता हो, जब पुलिस के रोजनामचे में हत्या, डकैती, अपहरण, बलात्कार और राहजनी के मामले न दर्ज किए जाते हों।

उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड में पहले उच्च वर्ग के कुछ लोग अपना दबंगपन कायम रखने के लिए शौकिया डकैत बना करते थे, लेकिन बाद में इनके शोषण से ऊब कर जहां दस्यु सरगना फौजी उर्फ सदाशिव और ददुआ उर्फ शिवकुमार पटेल व अम्बिका उर्फ ठोकिया जैसे सीधे-साधे दर्जनों लोग बीहड़ में कूदने को बाध्य हुए, वहीं महिलाओं के यौन शोषण के खिलाफ लूक धौरही गांव की कुम्हारिन, साया गांव की बच्ची कोलिन, रामपुर की खैरातिन और गोबरी गोडरामपुर की चुनकी गोड़िन ने भी बन्दूकें उठा लीं।

सच तो यह है कि विन्ध्य पर्वत-श्रंखलाओं से सटा बुन्देलखण्ड का प्राय: भू-भाग सफेदपोश नेताओं और सामंतशाहों की भीषण मोर्चाबन्दी के पीछे आज भी डकैतों और अन्य असामाजिक तत्वों के लिए अभयारण्य बना हुआ है।

सन 1981 से 1991 के दौरान इस क्षेत्र में सदाशिव उर्फ फौजी, खरदूषण, गया बाबा, जगतपाल पासी, राजा रगौली, सूरजभान, बुद्दा नाई, नथुवा, ददुआ, संतोषा यादव, धर्मा यादव, चुनुवा कहार, कलुवा दलित, हनुमान कुर्मी, राजेन्द्र गोसाई, मतोला, तिजोला, रजवा, रामकरण काछी, रामकरण आरख, कोदा काछी, दिनेश कोल, राजू कोल, छोटा पटेल, छोटा कोल, रामस्वरूप पटवा, कमलेश, अम्बिका पटेल उर्फ ठोकिया, दीपक पटेल, सुन्दर पटेल उर्फ रागिया आदि के अन्तर्राज्यीय तथा जिला स्तरीय गिरोहों के अलावा कल्लू यादव, मुन्ना यादव, मुन्ना कोरी, कमतू कोरी, किशोरी बेडिया, राजू डोम, भुण्डा गर्ग, शिवशंकर पंडित, गुलबदन पंडित, रघुनाथ मिश्रा, पप्पू यादव, संतू लोध, रंपा यादव, शंकर केवट, उमर केवट, नत्थू केवट, चेलवा, गोपलिया, सीताराम यादव और खडग सिंह जैसे सीधे-साधे लोगों को बीहड़ का रास्ता अपनाना पड़ा। इनमें से ज्यादातर अनुसूचित जाति और पिछड़ी जाति के लोगों ने दबंग और पुलिस की उत्पीड़क कार्रवाई से क्षुब्ध होकर बन्दूकें उठाईं।

सन् 1982 में वीपी सिंह के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते उनके अग्रज न्यायमूर्ति सीपीएन सिंह की दस्यु जगतपाल पासी द्वारा हत्या कर दी गई थी, जिससे उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। सन् 1984 में केन्द्र सरकार द्वारा बीहड़ सुधार योजना से सम्बद्घ मसौदे को अन्तिम रूप प्रदान किया गया।

डकैत घनश्याम केवट के साथ जमौली गांव मे हुई सीधी मुठभेड़ से उत्तर प्रदेश पुलिस की असली ताकत का अंदाजा चलता है। एक डकैत मामूली राइफल के बूते आधुनिक हथियारों से लैस 500 जवानों के हाथों तब मारा गया, जब वह आईजी-डीआईजी समेत आधा दर्जन को घायल और चार को मौत के घाट उतार चुका होता है।

बुन्देलखण्ड में हनक कायम करने की परम्परा आज भी जीवित है। बन्दूक उठा कानून के साथ आंख मिचौली खेलने वाले हर डकैत के पीछे की पृष्ठभूमि तो यही बयां करती है। ददुआ, ठोकिया और घनश्याम केवट के डकैत बनने के पीछे दबंग और पुलिस की संयुक्त कारस्तानी रही है।

शुरुआत में एक दबंग के इशारे पर रैपुरा पुलिस ने निर्दोष शिवकुमार को जेल भेज दिया, जो बाद में दस्यु ददुआ के रूप में उभरा। इसी प्रकार लोखरिहा गांव में अम्बिका पटेल की बहन के साथ हुए दुराचार पर जब पुलिस न्याय नहीं कर पाई तब वह ठोकिया बन बैठा।

साइकिल का पंचर बनाने वाले घनश्याम केवट की भतीजी के साथ छेड़छाड़ की घटना ने उसे डकैत 'नान केवट' बना दिया। दस्यु ददुआ, ठोकिया व नान केवट के बाद पाठा क्षेत्र में पुलिस के लिए अब सबसे चुनौती डकैत सुंदर पटेल उर्फ रागिया और राजू कोल हैं। जिनके पास दस्यु ददुआ और ठोकिया के आधुनिक हथियार मौजूद हैं।

पुलिस रिकार्ड खंगालने से पता चलता है कि पुलिस व इन दोनों डकैतों के मध्य हुईं अब तक की मुठभेडों में एके-56, एके-47 व एसएलआर जैसी आधुनिक राइफलों का इस्तेमाल होता रहा है। पुलिस ने इन दोनों खूंखार डकैतों को कथित मुठभेड में ढेर करने का दावा किया है, किन्तु अब तक यह नहीं बता पाई है कि उनके आधुनिक हथियार कहां हैं?

जंगल के सूत्रों का कहना है कि दस्यु ददुआ के हथियार उसका दाहिना हाथ राधे उर्फ सूबेदार ने आत्म समर्पण करने से पूर्व जेल से भागे ददुआ गैंग के हार्डकोर मेम्बर राजू कोल के पास भेज दिया है और दस्यु ठोकिया के हथियार उसका भाई दीपक पटेल दस्यु रागिया के हवाले कर दिया है।

घनश्याम केवट व पुलिस के मध्य 16 जून से 18 जून को 52 घंटे चली मुठभेड़ में सरकार के 52 लाख रुपये खर्च हुए।

बुन्देलखण्ड के पाठा क्षेत्र में डकैतों के संरक्षणदाताओं में राजनेताओं की एक लम्बी फेहरिस्त है। कई नेता तो डकैतों के बल पर सांसद और विधायक होते रहे हैं। पाठा क्षेत्र में आर्थिक लाचारी से जूझ रहे अनुसूचित और पिछड़े वर्ग के लोग बीहड़ में क्यों कूदने को बाध्य होते हैं आला अफसरानों ने कभी विचार करने की जरूरत नहीं समझी।

उत्तर प्रदेश पुलिस के पास अब तक कोई ऐसी कार्ययोजना नहीं है, जिससे बेगुनाह इंसाफ पसन्द लोग खूंखार 'डकैत' न बनें। जब तक बुन्देलखण्ड में पुलिस अपनी आदत में सुधार नहीं करती, तब तक पाठा क्षेत्र में डकैत पैदा होते रहेंगे।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

**

Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X