गांधी के मूल्यों और विचारों का कोई भी लक्षण आज की कांग्रेस में नहीं : भाजपा
पार्टी की राष्ट्रीय कार्यपरिषद की बैठक को संबोधित करते हुए पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा, "गांधी के उन मूल्यों और विचारों का कोई भी लक्षण आज की कांग्रेस में नजर नहीं आता है। मैं कांग्रेस के मित्रों से पूछना चाहता हूं कि उन्होंने 50 वर्षो तक देश को जिन नीतियों पर चलाया उसमें गांधीवाद कितना था। कांग्रेस की नीतियों में ब्रिटिश राज का तत्व अधिक था गांधी के हिन्द स्वराज्य का तत्व गायब था।"
उन्होंने कहा, "आज कांग्रेस के आचरण में गांधी के चिंतन का क्या है? आज की कांग्रेस के चिन्तन में न हिन्द स्वराज्य है, न ग्राम स्वराज्य है, न गांव का स्थान है, न किसान का सम्मान है, न स्वदेशी कुटीर उद्योग है, न त्याग और वैराग्य का जीवन जीने वाला उनसे जुड़ा कोई वर्ग है। न स्वदेशी शैली है, न स्वदेशी भाषा है। और इतना ही नहीं गांधी के कर्मवाद की प्रतीक गीता साम्प्रदायिक है, गांधी के राम राज्य में राम भी साम्प्रदायिक हैं।"
उन्होंने कहा, "गांधी का भजन चाहे 'रघुपति राघव राजा राम' हो अथवा 'वैष्णव जन ते तेने कहिए' हो यह सब तो घोर साम्प्रदायिक है। गांधी के विचारों पर आधारित यह सब यदि आपको आज भी कहीं देखने को मिलेगा तो भाजपा की सोच और हमारे परिवार के कई संगठनों की सादगीपूर्ण जीवनशैली में।"
राजनाथ ने कहा, "मैं पूछना चाहता हूं कि कांग्रेस के पास गांधी का क्या है। आज तो गांधी की खादी भी शायद ही कोई बड़ा नेता पहनता हो। आज कांग्रेस में सिर्फ एक परिवार से जुड़ा गांधी का नाम है। गांधी से जुड़े सारे काम आज भी यदि कहीं दिखेंगे तो कांग्रेस के उस परिवार में नहीं बल्कि हमारे परिवार में। वहां सिर्फ नाम है यहां वास्तविक काम है।"
उन्होंने कहा, "गांधी ने अपने दर्शन में यह स्पष्ट कहा है कि भारत के भविष्य के लिए कर्मवाद का सिद्धांत परम आवश्यक है। यही भारत के युवाओं को सही दिशा में ले जा सकता है। गांधी का कर्मवाद पूर्णरूप से गीता के निष्काम कर्म के सिद्घांत पर आधारित है।
राजनाथ सिंह ने कहा, "पूर्ण स्वराज्य के उद्घोषक और वास्तविक अथरें में भारत के स्वतंत्रता संग्राम की राजनैतिक यात्रा के जनक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने भी अपनी पुस्तक 'गीता रहस्य' ने गीता के सिद्धांतों को 'कर्मयोग शास्त्र' की संज्ञा दी है। महात्मा गांधी राजनीति में भी तिलक की विरासत को लेकर आगे बढ़े थे। कांग्रेस अपने आचरण में गीता पर आधारित तिलक के कर्मयोग शास्त्र और गांधी के कर्मवाद को लागू करना तो दूर शायद आज गीता का नाम लेने में भी घबरा जाये कि कहीं कोई उन्हें साम्प्रदायिक न कह दे।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।