वैश्वीकरण से स्थानीय भाषाओं को खतरा : मैनेजर पांडेय
मैनेजर पांडेय का कहना था कि साहित्य का अस्तित्व भाषाओं के बिना नहीं हो सकता और अंग्रेजी के बढ़ते वर्चस्व से स्थानीय भाषाओं के लिए खतरा बढ़ रहा है।
पांडेय का कहना था कि किसी भी आंदोलन को विरोधियों से अधिक अपने अनुयायियों से खतरा होता है। इतिहास में बौद्ध धर्म और कबीरपंथ का उदाहरण सबके सामने है। धार्मिक कट्टरता के खिलाफ इन महान आंदोलनों का पतन इनके अनुयायियों के आचरण के कारण ही हुआ। प्रगतिवाद की भी यही स्थिति है।
परिसंवाद की अध्यक्षता करते हुए साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष प्रोफेसर एस.एस.नूर ने कहा कि अकादमी ने हर महीने किसी महत्वपूर्ण विषय पर एक परिसंवाद आयोजित करने का फैसला किया है। बुधवार को आयोजित परिसंवाद इसी श्रृंखला की दूसरी कड़ी थी।
परिसंवाद के प्रमुख वक्ता प्रोफेसर कमला प्रसाद और मैनेजर पांडेय थे। विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्यकार विश्वनाथ प्रसाद तिवारी उपस्थित थे।
कमला प्रसाद ने कहा कि वैश्वीकरण के दौर में केवल आर्थिक उदारीकरण की प्रवृत्ति ही काम नहीं कर रही है, वरन इसके साथ ही कई अन्य प्रवृत्तियां भी अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं। वैश्वीकरण के खिलाफ स्थानीय प्रतिरोध हर जगह बढ़ रहा है।
उनका कहना था कि आजादी के बाद का लेखन मुख्यत: मध्य वर्ग पर आधारित हो गया। अधिकांश लेखक भी इसी वर्ग से आए। इस पृष्ठभूमि के लेखकों का अनुभव संसार काफी सीमित होने के कारण उनकी रचनाओं में आम जीवन की पीड़ा उभर कर सामने नहीं आ पाई।
कमला प्रसाद का कहना था कि खुद भोगे यर्थाथ की अभिव्यक्ति अधिक प्रभावी होती है, इसलिए दलित और स्त्री विमर्श के रूप में प्रगतिवाद का नया रूप सामने आ रहा है। परंतु इसमें एक समग्र सामाजिक चेतना का अभाव है।
परिसंवाद के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि आर्थिक वैश्वीकरण के साथ ही वैचारिक वैश्वीकरण से भी मुक्त होने की आवश्यकता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।