ब्लॉग पर 'कोसी के कहर' से मातम
नई दिल्ली, 1 सितंबर (आईएएनएस)। हिंदी ब्लॉग जगत में इन दिनों बिहार के उत्तर-पूर्व इलाकों में कोसी नदी के कहर को लेकर सबसे अधिक पोस्ट लिखे जा रहे हैं। कोसी नदी के तांडव से प्रभावित इलाकों की परेशानियों को ब्लॉगर जगह दे रहे हैं। जहां किसी ब्लॉग पर बाढ़ पर विस्तृत रिपोर्ट पढ़ने को मिल रही है तो कहीं भयावह परिस्थतियों को चित्रों द्वारा प्रस्तुत भी किया जा रहा है।
नई दिल्ली, 1 सितंबर (आईएएनएस)। हिंदी ब्लॉग जगत में इन दिनों बिहार के उत्तर-पूर्व इलाकों में कोसी नदी के कहर को लेकर सबसे अधिक पोस्ट लिखे जा रहे हैं। कोसी नदी के तांडव से प्रभावित इलाकों की परेशानियों को ब्लॉगर जगह दे रहे हैं। जहां किसी ब्लॉग पर बाढ़ पर विस्तृत रिपोर्ट पढ़ने को मिल रही है तो कहीं भयावह परिस्थतियों को चित्रों द्वारा प्रस्तुत भी किया जा रहा है।
'संवेदना' नामक एक ब्लॉग में 'कोसी की विनाशलीला' शीर्षक में बिहार के 15 जिलों में कोसी नदी के कहर का विवरण दिया गया है। ब्लॉग में लिखा है- "25 लाख से अधिक की आबादी के सामने जिंदगी बचाने, रहने और खाने-पीने का संकट मुंह बाए खड़ा है। खेत, गांव, घर सब कुछ बह गया है और साथ ही बह गए हैं बाढ़ के कहर से जूझती इस आबादी के सारे सपने।"
एनडीटीवी के पत्रकार उमाशंकर सिंह ने ब्लॉग 'वैली ऑफ ट्रथ' में कहा है, 'अब तो खैर हो मौला !' उन्होंने लिखा है, "बिहार में बाढ़ से तबाही पर जितना लिखा-दिखाया जाए कम है। लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। सैंकड़ों बह गए हैं। लाखों फंसे हैं। दाने-दाने को मोहताज हैं। सही में राहत पहुंचाने की बजाए राज्य और केंद्र की राजनीति जारी है।"
'ये है इंडिया मेरी जान' नामक ब्लॉग पर एक कविता के जरिए ब्लॉगर ने अपनी बात कही है, जिसमें कहा गया है- "पहले कोसी ने ढाया कहर, अब महामारी फैलने का डर, जिंदगी और मौत के बीच छिड़ी है जंग।" एक अन्य ब्लॉग 'ई हिंदी साहित्य सभा' में कहा गया है, "कोसी ने पूरी आवारा नदी की छवि बना ली है।" इसी ब्लॉग में 'जीने का अधिकार छीन रही है कोसी' में मधेपुरा जिले के मुरलीगंज में कोसी के कहर पर एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की गई है।
कई ब्लागों में कोसी की तबाही का मार्मिक दृश्य पेश किया गया है। बाढ़ प्रभावित विभिन्न जिलों की तस्वीरों को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन इलाकों में कितनी तबाही मची हुई है। शायद इसी वजह से उमाशंकर सिह ने अपने ब्लॉग पर लिखा है- "कई दिन से हैं भूखे लोग, अब तो खैर हो मौला। ये जीवन बन गया है रोग, अब तो खैर हो मौला।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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