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प्रदूषित पेयजल के सहारे गुजर रही है जिंदगी

By Staff
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छतरपुर, 22 अप्रैल (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर बक्सवाहा ब्लाक में एक गांव है मझोरा। इस गांव के लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। यहां सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत एक कुंआ तो बनवा दिया है लेकिन उसका पूरा निर्माण कार्य नहीं करवाया। नतीजतन कुंए का पानी जिस हद तक उपयोग में आना चाहिए था उतना नहीं आ रहा है।

छतरपुर, 22 अप्रैल (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर बक्सवाहा ब्लाक में एक गांव है मझोरा। इस गांव के लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। यहां सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत एक कुंआ तो बनवा दिया है लेकिन उसका पूरा निर्माण कार्य नहीं करवाया। नतीजतन कुंए का पानी जिस हद तक उपयोग में आना चाहिए था उतना नहीं आ रहा है।

यह कुआं मच्छरों, मक्खियों और दूसरे कीटाणुओं से भरा है। पानी का रंग एकदम मटमैला हो चुका है। ग्रामीणों द्वारा इस पानी का उपयोग केवल नहाने के लिए किया जाता था लेकिन अब इससे भी उन्हें खुजली और दूसरे चर्म रोगों की शिकायत होने लगी है।

गांव के लोग अपने पीने के लिए पानी पास स्थित एक प्राकृतिक कुंड से लाते हैं जिसका निर्माण लगभग 200 साल पहले राजा सावन सिंह द्वारा करवाया गया था। यह स्त्रोत भी धीरे-धीरे सूख रहा है। गांव का एक निवासी मुन्ना यादव कहता है, "अगर पानी इसी तरह कम होता रहा तो एक दिन कटोरे से पानी निकालना पड़ेगा।"

गर्मियों में जब इस कुंड का पानी भी सूख जाता है तब गांव के लोग पास-पड़ोस के गांवों से पानी लाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। गौरतलब है कि सरकारी कुंए और इस कुंड के पानी में कोई अंतर नहीं है अंतर केवल उपयोग का है। इस खुले कुंड में भी वही सारे प्रदूषक तत्व हैं लेकिन इसका उपयोग गांववालों द्वारा पेयजल के रूप में किया जाता है।

आश्चर्य नहीं कि गांव की 50 फीसदी आबादी इन दिनों बुखार और बीमारियों से पीड़ित है। गांव में किसी नर्स अथवा डाक्टर के न होने के कारण वे यह भी नहीं जान सकते कि उनकी बीमारी का पानी की खराबी से कोई संबंध है अथवा नहीं।

गांव का सबसे नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र बक्सवाहा में है जो यहां से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मझोरा से बक्सवाहा जाने के लिए कोई भी वाहन कम से कम चार किलोमीटर दूर जाने पर ही उपलब्ध हो पाता है।

गांव वालों ने पानी के प्राकृतिक स्त्रोत के पुनर्निमाण के लिए कई आवेदन दिये हैं लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस क्षेत्र में सूखा राहत के रूप में सात करोड़ 44 लाख 76 हजार रुपये आवंटित किए गए हैं जिसमें पुराने कुंडों का पुनर्निमाण और नए कुंडों की खुदाई जैसे काम भी शामिल हैं।

इस राशि में से 42.28 लाख की राशि अकेले बक्सवाहा ब्लाक के लिए है लेकिन क्षेत्र के कुछ ही गांवों को इसका लाभ मिल पाया है। छह गांवों वाली मझोरा पंचायत फिर भी इससे अछूती ही रह गई।

(सुमिका राजपूत सिंबायोसिस संचार संस्थान, पुणे की छात्रा हैं और विकास संवाद भोपाल के साथ मिलकर मध्यप्रदेश में सूखे पर प्रशिक्षु के रूप में काम कर रही हैं।)

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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