वयोवृद्ध कवि त्रिलोचन शास्त्री नहीं रहे
नई
दिल्ली,
10
दिसंबरः
हिन्दी
की
प्रगतिशील
कविता
की
अंतिम
कड़ी
त्रिलोचन
शास्त्री
का
कल
शाम
उनके
निवास
पर
निधन
हो
गया.
वह
91
वर्ष
के
थे.
उनके
परिवार
में
दो
बेटे
हैं
और
उनकी
पत्नी
का
स्वर्गवास
कई
वर्ष
पहले
हो
गया
था.
हिन्दू विश्वविद्यालय में एम ए अंग्रेजी के छात्र रहे श्री शास्त्री का मूल नाम वासुदेव सिंह था. उन्होंने लाहौर से शास्त्री की डिग्री प्राप्त की थी. वह "आज" " जनवार्ता" और "समाज" जैसे अखबारों में एक पत्रकार के रुप में जुड़े रहे. इसके अलावा वाराणसी के ज्ञानमंडल प्रकाशन संस्था में भी काम करते रहे और हिन्दी उर्दू के कई शब्दकोषों की योजना से भी जुड़े रहे. उनका पहला कविता संग्रह "धरती" 1945 में प्रकाशित हुआ था "गुलाब और बुलबुल" "उस जनपथ का कवि हूं" और "ताप के तापे हुए दिन" उनके चर्चित कविता संग्रह हैं.
श्री शास्त्री को 1982 में "ताप के तापे हुए दिन" पर साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था. इसके अलावा उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मान और पुरसकार भी मिले थे. वह जनसंस्कृति मंच के अध्यक्ष भी थे. जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ और जनसंस्कृति मंच ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है.
नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, अशोक वाजपेयी, विश्वनाथ त्रिपाठी कमला प्रसाद समेत कई लेखकों और कवियों ने श्री शास्त्री के निधन को हिन्दी की प्रगतिशील और जनपदीय चेतना की कविता के लिए बड़ी क्षति बताया है. उनके निधन से एक युग का अंत हो गया है श्री शास्त्री की कविता में परंपरा और आधुनिकता का गहरा मेल था तथा उनके व्यक्तित्व में फकिराना अंदाज था.