चीन के ‘जीन’ में है विस्तारवाद , उसकी जमीन हड़पो नीति से भारत समेत दुनिया के 23 देश परेशान
चीन के ‘जीन’ में है विस्तारवाद, जमीन हड़पो नीति से भारत समेत दुनिया के 23 देश परेशान
नई दिल्ली। चीन के बारे में नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था, वहां एक दैत्य पड़ा सो रहा है, उसे सोने दो, क्योंकि जब वह उठेगा तो आतंक पैदा कर देगा। नेपोलियन की यह भविष्यवाणी दो सौ साल बाद सच साबित हो रही है। दरअसर चीन में राजशाही हो, गणतंत्र हो या साम्यावदी शासन, हर काल में उसने ताकत और हथियार के बल पर अपने साम्राज्य का विस्तार किया है। चीन के कई प्राचीन राजवंशों ने देश की सीमा को कोरिया, वियतनाम, मंगोलिया और मध्य एशिया तक बढ़ाया। 1949 में जब चीन में माओ त्से तुंग के नेतृत्व में साम्यवादी शासन की स्थापना हुई तो यह विस्तारवादी नीति और उग्र हो गयी। माओ का कथन था - सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। माओ ने अपने देशवासियों को भरोसा दिलाया था कि प्राचीन काल में चीन की सीमाएं जहां तक थीं, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी उसे जरूर हासिल करेगी। इसके बाद चीन आतंक, कपट, हिंसा और आक्रमण से अपनी सीमा का विस्तार करने लगा। चीन अपने 14 पड़ोसियों की जमीन पर तो दावा करता ही है वह 8 हजार किलोमीटर दूर अमेरिका के हवाई द्वीप को भी अपना मानता है। चीनियों के मुताबिक चीनी नाविकों ने कोलबंस से बहुत पहले ही अमेरिका की खोज कर ली थी। अमेरिका के न्यू मैक्सिको राज्य के चट्टानों पर बने चित्र इसके प्रमाण हैं। इतना ही नहीं चीन यह भी कहता है कि यूरोप की खोज से शताब्दियों पहले उसके नाविक आस्ट्रेलिया में बस गये थे। चीन अपनी विस्तारवादी नीति के लिए युद्ध अनिवार्य मानता है इसलिए भारत समेत दुनिया के 23 देश उसकी कुटिल चाल से परेशान हैं।
प्राचीन चीन की विस्तारवादी नीति
ईसा पूर्व 220 में किन वंश ने संगठित चीन की स्थापना की थी। इसी वंश के शासन काल में चीन की विशाल दीवार का निर्माण हुआ था। इसके बाद हान वंश के शासन में चीन की सीमा कोरिया, वियतनाम, मंगोलिया, इंडोनेशिया और मध्य एशिया तक फैल गयी। 1368 में मिंग राजवंश ने चीन की सीमा बढ़ाने के लिए समुद्री युद्ध लड़े। 1405 में मिंग शासन काल में चीनी कमांडर चांगहो 62 युद्धपोतों के साथ फिलीपींस, कंबोडिया, ब्रुनेई, बर्मा, मलाया, जावा, सुमात्रा पहुंचा। उसने प्रलोभन और भय के जरिये इन देशों को चीन की अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। मध्य एशिया में चीन का प्रभाव बढ़ते जा रहा था। इससे रूस की चिंता बढ़ गयी थी। मध्य एशिया में वर्चस्व को लेकर रूस और चीन के बीच 1652 में युद्ध हुआ। दोनों देशों के बीच करीब चालीस साल तक तनाव रहा। फिर 1689 में दोनों के बीच समझौता हो गया। 18वीं शताब्दी के दूसरे दशक में चीनी ने पूर्वी तुर्कीस्तान को अपने अधीन कर लिया था। 1765 से 1769 के बीच उसने बर्मा पर चार बार आक्रमण किया। बर्मा को चीन की अधीनता माननी पड़ी। इस समय चीनी राजा अपनी शक्ति के मद में चूर थे। चीन उस समय विदेशियों को तुच्छ और खुद को सबसे श्रेष्ठ मानता था। बाद में जब ब्रिटेन समेत अन्य यूरोपीय शक्तियों का उदय हुआ तो चीन कमजोर होने लगा। 19वीं शताब्दी में चीन एक दुर्बल राष्ट्र बन गया।
चीन के कब्जे से गहराया तिब्बत संकट
तिब्बत पहले एक स्वतंत्र और मजबूत देश था। 1893 में ब्रिटिश भारत की सरकार ने चीन से एक समझौता किया था जिसके तहत तिब्बत में कुछ व्यापारिक सुविधाएं मिलनी थीं। लेकिन तिब्बत ने चीन से हुई इंस संधि को मान्यता नहीं दी। तिब्बत खुद को आजाद समझता था। 1899 में लार्ड कर्जन भारत के वायरसाय बन कर आये। उन्होंने तिब्बत में ब्रिटिश राज का प्रभाव कायम करने का फैसला किया। कर्जन ने तिब्बत में एक ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल भेजने के लिए इंग्लैंड की सरकार को राजी कर लिया। कर्जन ने 1903 में कर्नल यंगहस्बैंड के नेतृत्व में एक दल तिब्बत भेजा। यंगहस्बैंड और उनका दल खम्बाजोंग पहुंचा। लेकिन तिब्बती वार्ता के लिए नहीं आये। तिब्बत इस ब्रिटिश दल को वहां से खदेड़ना चाहता था। उसने खम्बाजोंग में सैनिक जुटाने शुरू कर दिये। यह देख कर कर्जन ने इंग्लैंड की सरकार की अनुमति से सेना भेजने का फैसला किया। ब्रिटिश भारत की फौज खम्बाजोंग पहुंची वहां से वह ग्यान्त्से की ओर बढ़ने लगी। तिब्बती सेनाओं के पास लड़ने लायक हथिय़ार नहीं थे। तिब्बत की हार हुई और उसके सात सौ सैनिक मारे गये। ग्यान्त्से पर अधिकार के बाद ब्रिटिश भारत की फौज राजधानी ल्हासा तक पहुंच गयी। तत्कालीन दलाई लामा वहां से भाग गये। इसके बाद ब्रिटिश भारत और तिब्बत में एक संधि हुई। 1904 में हुई इस संधि के मुताबिक ल्हासा में ब्रिटिश प्रतिनिधि नियुक्त करने,तिब्बत में व्यापार करने और व्यापार मार्ग की सुरक्षा के लिए सैनिक रखने का अधिकार मिल गया। 1906 में चीन ने भी इस संधि की मान्यता दे दी। 1911 में मांचू शासन के अंत होने के साथ ही तिब्बत ने खुद को आजाद घोषित कर लिया । चीनी सेना तिब्बत से बाहर कर दी गयी। लेकिन 1950 में चीन ने फिर तिब्बत पर कब्जा कर लिया।
साम्यवादी चीन का विस्तारवाद
1949 में चीन में एक नये शासन का उदय हुआ जो बेहद आक्रामक और विस्तारवादी साबित हुआ। माओ त्से तुगं के नेतृत्व में चीन की साम्यवादी सरकार ने सत्ता में आते ही पड़ोसी देशों की जमीन पर कब्जा जमाना शुरू किया। सबसे पहले उसने 1949 में पूर्वी तुर्किस्तान पर कब्जा जमाया। चीन इसे शिनजियांग प्रांत बताता है। फिर एक साल बाद ही चीन ने मई 1950 में तिब्बत पर आक्रमण कर इसे अपने अधीन कर लिया। कहने के लिए चीन शिनजियांग और तिब्बत को स्वायत्त क्षेत्र बताता है लेकिन चीन इन दोनों क्षेत्रों में दमनचक्र चलाने से बाज नहीं आता। चीन ने मंगोलिया पर भी कब्जा जमाया। विस्तारवादी नीति के कारण ही चीन अपने परम मित्र देश सोवियत संघ से उलझ गया। दोनों साम्यवादी देश थे लेकिन 1969 में दोनों की भिड़ंत हो गयी। पूर्वी एशिया में उसूरी नदी के एक टापू को लेकर चीन ने रुस से सैनिक झड़प कर दी। उस समय सोवियत संघ दुनिया की महाशक्ति था। इस सैनिक भिड़ंत में चीन के तीन सौ सैनिक मारे गये थे जबकि सोवियत संघ के केवल एकतीस सैनिकों की मौत हुई थी।
दुनिया के 23 देश चीन से परेशान
दुनिया में सबसे अधिक पड़ोसी चीन को मिले हैं। चीन की सीमा 14 देशों से मिलती है। भूगोल ने उसको एक बड़ी नेमत दी है लेकिन जमीन का भूखा चीन अपने हर पडोसी से झगड़ा करता रहा है। उससे केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के 22 और देश परेशान हैं।
- अफगानिस्तान- अफगानिस्तान के बदख्शां प्रांत पर चीन अपना दावा करता है। 1963 की संधि के बावजूद उसने इस प्रांत में अतिक्रमण कर रखा है।
- भूटान - भूटान के चेरपिक गोम्पा, धो, डंगमार, गेसूर डोकलाम, सिचुलंग, द्रामना और हा जिले के भूभाग को चीन अपना मानता है। चीन ने भूटान में भी घुसपैठ कर रखी है।
- ब्रुनेई - दक्षिण चीन सागर स्थित ब्रुनेई के स्प्रैटली द्वीप पर चीन अपना दावा करता है। म्यांमार - चीन का कहना है कि युआन राजवंश (1271- 1368) के शासन में बर्मा चीन के अधीन था। म्यांमार से भी चीन का सीमा विवाद है।
- कम्बोडिया - चीन के मुताबिक कम्बोडिया मिंग राजवंश (1368-1644) के समय चीन का हिस्सा था। इसलिए उसका बड़े भूभाग चीन दावा करता रहा है।
- भारत - सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में चीन ने घुसपैठ करता रहा है। 1962 की लड़ाई के बाद चीन ने भारत की 38 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है।
- इंडोनेशिया - दक्षिणी चीन सागर में इंडोनेशिया के नातुना द्वीप समूह पर चीन अपना दावा करता रहा है।
- जापान- पूर्वी चीन सागर में जापान के सेनकाकू द्वीप पर को भी चीन अपना कहता है।
- कजाकिस्तान - चीन का दावा है कि कजाकिस्तान चीनी सम्राट कुबलई खान (1260-1294) के समय उसका हिस्सा था। चीन कजाकिस्तान के बड़े भूभाग पर अपना दावा करता रहा है।
ये देश भी हैं परेशान
किर्गिस्तान
-
चीन
किर्गिस्तान
को
भी
प्राचीन
चीन
का
हिस्सा
मानता
है।
उसका
आरोप
है
कि
19वीं
शताब्दी
में
रूस
ने
इस
पर
अपना
अधिपत्य
जमा
लिया।
लाओस
-
चीन
के
मुताबिक
लाओस
भी
चूंकि
युआन
राजवंश
(1271-
1368)
के
समय
उसका
हिस्सा
था,
इसलिए
इस
देश
की
जमीन
पर
भी
उसका
दावा
है।
मलेशिया
-
दक्षिणी
चीन
सागर
में
स्प्रैटली
द्वीप
समूह
में
कई
द्वीप
हैं।
यहां
के
अलग-अलग
द्वीपों
पर
मलेशिया,
वियतनाम,
चीन,
ताइवान
और
फिलीपींस
का
कब्जा
है।
मलेशिया
के
कब्जे
वाले
द्वीप
को
चीन
अपना
मानता
है।
मंगोलिया
-
युआन
राजवंश
(1271-
1368)
साम्राज्य
के
आधार
पर
मंगोलिया
की
जमीन
पर
भी
चीन
दावा
ठोकता
रहा
है।
नेपाल-
1788-1792
के
बीच
चीन
और
नेपाल
में
युद्ध
हुआ
था।
इस
युद्ध
में
चीन
ने
नेपाल
के
कई
इलाकों
पर
कब्जा
जमाया
था।
हाल
में
यह
बात
सामने
आयी
है
कि
चीन
ने
नेपाल
के
11
इलाकों
पर
कब्जा
जमा
रखा
है।
उत्तर
कोरिया-चीन
युआन
राजवंश
(1271-
1368)
साम्राज्य
के
आधार
पर
उत्तर
कोरिया
के
बेकडू
पर्वत
और
जियानदाओ
पर
दावा
करता
रहा
है।
पाकिस्तान-पाकिस्तान
अधिकृत
कश्मीर
के
गिलगित-बाल्टिस्तान
और
चीन
के
शिजियांग
प्रांत
की
सीमा
आपस
में
मिलती
है।
इस
इलाके
में
चीन
ने
अपना
दावा
ठोका।
भारत
की
सुरक्षा
खतर
में
डालने
के
लिए
पाकिस्तान
ने
चीन
को
शक्सगाम
घाटी
में
काराकोरम
सड़क
बनाने
के
लिए
जमीन
दे
दी।
फिलीपींस-
दक्षिणी
चीन
सागर
में
फिलीपींस
के
स्कारबरो
शोल
और
स्प्रैटली
द्पीप
को
चीन
अपना
मानता
है।
रूस-
चीन
ने
हाल
ही
मे
दावा
किया
है
कि
रूस
का
व्लादिवोस्टक
शहर
1820
में
चीन
का
हिस्सा
था।
वह
पहले
रूस
की
हजारों
वर्ग
किलोमीटर
जमीन
अपना
दावा
ठोकता
रहा
है।
सिंगापुर-दक्षिणी
चीन
सागर
के
कुछ
हिस्से
को
लेकर
चीन
का
सिंगापुर
से
भी
विवाद
है।
ताइवान
-वन
चाइना
थ्येरी
के
मुताबिक
चीन,
ताइवान
को
अपना
हिस्सा
मानता
है।
1949
में
जब
चीन
में
साम्यवादी
शासन
की
स्थापना
हुई
थी
तब
चीन
के
तत्कालीन
शासक
चांग
काई
शेक
ने
ताइवान
में
अपनी
निर्वासित
सरकार
बना
ली
थी।
ताइवान
खुद
को
आजाद
देश
मानता
है
और
चीन
दावे
को
खारिज
करता
रहा
है।
तजाकिस्तान-
चिंग
राजवंश
(1644
से
1912)
के
शासन
के
आधार
पर
चीन
तजाकिस्तान
पर
भी
अपना
दावा
करता
रहा
है।
वियतनाम
-चीन
के
मुताबिक
मिंग
राजवंश
(1368
से
1644)
के
समय
वियतनाम
चीन
के
अधीन
था।
इसके
अलावा
चीन
वियतनाम
के
पारासेल
द्वीप
पर
भी
अपना
अधिकार
मानता
है।
दक्षिण
कोरिया
-
पूर्वी
चीन
सागर
के
कई
द्वीपों
पर
दक्षिण
कोरिया
का
अधिकार
है।
लेकिन
चीन
इसे
अपना
मानता
है।
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