Must Read: जानिए मंत्रों को शुद्ध करने के 10 संस्कार, बिना संस्कार फल नहीं देते मंत्र
नई दिल्ली, 16 जून। भगवान शिव के डमरू से सात करोड़ से अधिक मंत्रों की उत्पत्ति हुई है। कालांतर में उन मंत्रों में अनेक प्रकार के दोष आते गए और वे सभी मंत्र दूषित हो गए। तंत्र शास्त्रों में ऐसे 50 तरह के दोष बताए गए हैं जो मंत्रों में आ गए। आज कोई भी मंत्र पूर्ण शुद्ध नहीं है, उनमें किसी न किसी प्रकार का दोष है। कहा जाता है कलयुग में मंत्रों का गलत प्रयोग कोई न कर पाए इसलिए भगवान शिव ने ही समस्त मंत्रों को बांध दिया है। इसलिए किसी भी मंत्र का जाप करने या उसे सिद्ध करने से पहले उसका संस्कार करना आवश्यक है, तभी वह मंत्र अपना पूर्ण प्रभाव दिखा पाता है। शास्त्रों में ऐसे 10 प्रकार के संस्कार बताए गए हैं जिनसे मंत्रों के दोषों की निवृत्ति होती है। ख्यात विद्वान डॉ. नारायणदत्त श्रीमाली ने अपनी पुस्तक मंत्र रहस्य में इन 10 संस्कारों का विस्तार से वर्णन किया है।
मंत्रों के संस्कार
- जननं दीपनं पश्चाद् बोधनं ताडनस्तथा ।
- अथाभिषेको विमलीकरणाप्यायने पुन: ।।
जनन : मंत्र के 10 संस्कारों में जनन संस्कार सबसे पहला और प्रमुख है। भोजपत्र पर गोरोचन, कुमकुम, चंदन से पूर्व की ओर मुंह कर आसन पर बैठकर त्रिकोण बनाएं तथा उन तीनों कोणों में छह छह रेखाएं खींचें। अस प्रकार 49 त्रिकोण कोष्ठ बन जाएंगे। उनमें ईशान कोण से मातृका वर्ण लिखें, उनका पूजन करें, फिर प्रत्येक वर्ण का उद्धार करते हुए उसे अलग भोजपत्र पर लिखे तथा मंत्र से संयुक्त करें। ऐसा करने से मंत्र का जनन संस्कार होगा। संस्कार करने के बाद मंत्र को जल में विसर्जित कर दें।
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दीपन
:
दीपन
के
लिए
हंस
मंत्र
का
संपुट
देना
होता
है।
हंस
मंत्र
का
संपुट
देकर
एक
हजार
जप
करने
से
मंत्र
का
दीपन
होता
है।
उदाहरण-
शिवाय
नम:
मंत्र
का
दीपन
करना
है
तो
हंस:
शिवाय
नम:
सोहम्
मंत्र
का
एक
हजार
जप
करना
होगा।
बोधन
:
मंत्र
का
बोधन
संस्कार
करने
के
लिए
हू्रं
बीज
का
संपुट
देकर
पांच
हजार
मंत्र
जप
करना
पड़ता
है।
उदाहरण-
ह्रूं
शिवाय
नम:
ह्रूं।
ताडन
:
ताडन
संस्कार
के
लिए
फट्
संपुट
देकर
मंत्र
का
एक
हजार
जप
करना
होता
है।
अभिषेक
:
मंत्र
का
अभिषेक
संस्कार
करने
के
लिए
भोजपत्र
पर
मंत्र
लिखकर
रों
हंस:
ओं
मंत्र
से
जल
को
अभिमंत्रित
कर
इस
जल
से
पीपल
के
पत्ते
से
मंत्र
का
अभिषेक
करें।
विमलीकरण
:
ऊं
त्रों
वषट्
मंत्र
को
संपुटित
कर
एक
हजार
बार
मंत्र
का
जाप
किया
जाता
है।
जीवन
:
स्वधा
वषट्
मंत्र
के
संपुट
से
मूल
मंत्र
का
एक
हजार
जप
करने
से
मंत्र
का
जीवन
संस्कार
होता
है।
तर्पण
:
दूध,
जल
तथा
घी
को
मिलाकर
मूल
मंत्र
से
सौ
बार
तर्पण
करने
से
मंत्र
का
तर्पण
संस्कार
होता
है।
गोपन
:
ह्रीं
बीज
संपुट
कर
मूल
मंत्र
का
एक
हजार
जप
करने
से
गोपन
संस्कार
होता
है।
आप्यायन
:
ह्रौं
बीज
संपुटित
कर
मूल
मंत्र
का
एक
हजार
जप
करने
से
आप्यायन
संस्कार
होता
है।
इन दस संस्कारों को करने के बाद ही किसी मंत्र का जाप करेंगे तो वह पूर्ण सफल और सिद्धिदायक होगा।