महाशिवरात्रि: हिमाचल का फेमस शिव मंदिर जिसे पांडवों ने बनवाया
शिवरात्रि में यहां का नजारा देखते ही बनता है। शिवरात्रि के दिन सुबह से ही मंदिर के बाहर भोलेनाथ के दर्शन के लिए हजारों लोगों की भीड़ लगी रहती है।
शिमला।हिमाचल प्रदेश हरी भरी वादियों झरनों बर्फ से ढके पहाड़ों और खूबसूरत पर्यटक स्थलों के लिये पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।हिमाचल प्रदेश अपने धार्मिक स्थलों के लिए भी विश्वविख्यात है। यहां पर लगने वाले पारम्परिक मेले अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है। इन देवस्थलों पर लगने वाले मेले प्राचीन परम्पराओं को आज भी जीवंत करते हैं।
Read more:महाशिव रात्रि स्पेशल शिव भक्त है तो जरुर जाएँ अमरनाथ गुफा
देश के लोगों के लिये आस्था का केन्द्र
बैजनाथ शिव मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में पालमपुर के पास स्थित है।जो कि पूरे देश के लोगों के लिये आस्था का केन्द्र है।यह मंदिर वर्षभर पूरे भारत से आने वाले भक्तों, विदेशी पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। लेकिन शिवरात्रि में यहां का नजारा देखते ही बनता है। शिवरात्रि के दिन सुबह से ही मंदिर के बाहर भोलेनाथ के दर्शन के लिए हजारों लोगों की भीड़ लगी रहती है। इस दिन मंदिर के पास ही बहने वाली नदी खीर गंगा में स्नान का विशेष महत्व है। श्रद्धालु स्नान करने के बाद शिवलिंग को पंचामृत से स्नान करवा कर उस पर बेल पत्र, फूल, भांग, धतूरा इत्यादि अर्पित कर भोले बाबा को प्रसन्न करते हैं और अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुण्य कमाते हैं। महाशिवरात्रि पर हर वर्ष यहां राज्य स्तरीय समारोह का आयोजन किया जाता है जो पांच दान तक चलता है। इसमें रात को रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों को देखने के लिए हजारों की संख्या लोगों की भीड़ उमड़ती है। देश के कोने-कोने से शिव भक्तों के साथ-साथ विदेशी पर्यटक भी यहां आते हैं और मंदिर की सुन्दरता को देखकर भाव-विभोर हो जाते हैं।
मंदिर की स्थापना की कहानी रावण से जुड़ी है
पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या की। कोई फल न मिलने पर दशानन ने घोर तपस्या शुरु की तथा अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न हुये और स्वयं प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। उसके सभी सिरों को पुनर्स्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिव ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिन्ह रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना। रावण दोनों शिवलिंग लेकर लंका को चला। रास्ते में 'गौकर्ण'क्षेत्र बैजनाथ में पहुंचने पर रावण को लघुशंका का आभास हुआ। उसने ‘बैजु' नाम के एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिवलिंगों के भार को अधिक देर तक न सह सका और उन्हें धरती पर रखकर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए।
मंदिर की स्थापत्य कला बेजोड़ है
एक
मान्यता
यह
भी
है
कि
द्वापर
युग
में
पांडवों
ने
अज्ञातवास
के
दौरान
इस
मंदिर
का
निर्माण
करवाया
गया
था।
स्थानीय
लोगों
के
अनुसार
इस
मंदिर
के
बाकी
के
हिस्से
का
निर्माण
'आहुक'एवं
'मनुक'
नाम
के
दो
व्यापारियों
ने
1204
ई.
में
पूरा
कराया
था
और
तब
से
लेकर
अब
तक
यह
स्थान
'शिवधाम'
के
रूप
में
उत्तरी
भारत
में
प्रसिद्ध
है।
यह
मंदिर
बहुत
बहुत
आकर्षक
है।इस
मंदिर
के
गर्भ-गृह
में
प्रवेश
एक
डयोढ़ी
से
होता
है,
जिसके
सामने
एक
बड़ा
वर्गाकार
मंडप
बना
है,
और
उत्तर
और
दक्षिण
दोनों
तरफ
बड़े
छज्जे
बने
हैं।
मंडप
के
अग्र
भाग
में
चार
स्तंभों
पर
टिका
एक
छोटा
बरामदा
है,
जिसके
सामने
ही
पत्थर
के
छोटे
मंदिर
के
नीचे
खड़े
हुए
विशाल
नंदी
की
मूर्ति
है।
पूरा
मंदिर
एक
ऊंची
दीवार
से
घिरा
है
और
दक्षिण
और
उत्तर
में
प्रवेश
द्वार
हैं।
मंदिर
की
बाहरी
दीवारों
में
मूर्तियों,
झरोखों
में
कई
देवी-देवताओं
की
मूर्तियां
हैं।
बहुत
सारे
चित्र
दीवारों
में
नक्काशी
करके
बनाए
गए
हैं।
बरामदे
का
बाहरी
द्वार
गर्भ-गृह
को
जाता
है।जबकि
अंदरूनी
द्वार
सुंदरता
और
महत्व
को
दर्शाते
अनगिनत
चित्रों
से
भरा
पड़ा
है।
यह
मंदिर
साल
भर
पूरे
देश
से
आने
वाले
भक्तों,
विदेशी
पर्यटकों
और
तीर्थ
यात्रियों
की
एक
बड़ी
संख्या
को
आकर्षित
करता
है।रोज
पूजा
सुबह
और
शाम
में
की
जाती
है।
विशेष अवसरों पर यहां की रौनक देखते ही बनती है।
इसके
अलावा
विशेष
अवसरों
और
उत्सवों
में
विशेष
पूजा-अर्चना
होती
है।
मकर
संक्रांति,
महाशिवरात्रि,
वैशाख
संक्रांति,
श्रावण
सोमवार
आदि
पर्व
भारी
उत्साह
और
भव्यता
के
साथ
मनाए
जाते
हैं।
श्रावण
मास
में
पड़ने
वाले
हर
सोमवार
को
मंदिर
में
पूजा
अर्चना
का
विशेष
महत्व
है।
श्रावण
माह
के
सभी
सोमवार
को
यहां
मेला
लगता
है।
बैजनाथ
मंदिर
परिसर
में
प्रमुख
मंदिर
के
अलावा
कई
और
भी
छोटे-छोटे
मंदिर
है,
जिनमें
भगवान
गणेश,
मां
दुर्गा,
राधा-कृष्ण
व
भैरव
बाबा
की
प्रतिमाएं
विराजमान
हैं।
राधा
कृष्ण
चतुर्दशी
को
यहां
विशाल
मेला
लगता
है
जिसे
तारा
रात्रि
के
नाम
से
जाना
जाता
है।
बैजनाथ
मंदिर
तक
पहुंचने
के
लिए
दिल्ली
से
पठानकोट
या
चण्डीगढ़-ऊना
होते
हुए
रेलमार्ग,
बस
या
निजी
वाहन
व
टैक्सी
से
पंहुचा
जा
सकता
है।
दिल्ली
से
पठानकोट
और
कांगड़ा
जिले
में
गग्गल
तक
हवाई
सेवा
भी
उपलब्ध
है।
Read more:शिवरात्रि स्पेशल 2017 भारत के प्रसिद्ध शिवालय