क्या है Central Vista project,जिस पर मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने दिया है झटका ?
नई दिल्ली- सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट लुटियंस दिल्ली का सबसे बड़ा और महत्वाकांक्षी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट है। इसके तहत भविष्य की जरूरतों के मद्देनजर एक नया और विशाल संसद भवन, एक केंद्रीय सचिवालय के अलावा कई इमारतें बनाई जानी हैं। इसके साथ ही राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक की तीन किलोमीटर के इलाके का नए सिरे से विकास होना है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल मोदी सरकार के इस अहम प्रोजेक्ट में किसी तरह के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट को रद्द करने की याचिकाओं पर फैसले से पहले केंद्र सरकार की ओर से इस दिशा में काम जारी रखने पर नाखुशी भी जाहिर की है।
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सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई रोक?
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से दो टूक कह दिया है कि जब तक वह सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को चुनौती देने वाली 10 याचिकाओं पर कोई फैसला नहीं सुना देता, सरकार इस प्रोजेक्ट पर कोई काम नहीं करेगी। हालांकि, अदालत ने 10 दिसंबर को इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए जाने वाले 'भूमि पूजन' कार्यक्रम पर कोई रोक नहीं लगाई है। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा है, 'अगर कोई पेपरवर्क होता है या फिर आधारशिला रखी जाती है तो हमें आपत्ति नहीं है, लेकिन कोई कंस्ट्रक्शन नहीं होना चाहिए।' इसपर केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को भरोसा दिया है कि 10 तारीख को सिर्फ आधारशिला रखी जाएगी और किसी भी तरह का निर्माण, विध्वंस या किसी भी पेड़ को हटाने का काम अभी नहीं होगा।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट क्या है ?
मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट तैयार होने के बाद देश के पावर सेंटर का रंग-रूप पूरी तरह से बदल जाएगी। इसके तहत राष्ट्रपति भवन और इंडिया गेट के बीच में राजपथ पर नई इमारतें बनाई जानी हैं। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि संसद की मौजूदा इमारत, भारत सरकार के कई दफ्तर, प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रति का आवास आज की आवश्यकताओं के मुताबिक अपर्याप्त माना जा रही है। इस प्रोजेक्ट के तहत प्रधानमंत्री का नया आवास साउथ ब्लॉक के पास तैयार होना है, जहां पर प्रधानमंत्री कार्यालय है। उपराष्ट्रपति का नया आवास भी नॉर्थ ब्लॉक के नजदीक तैयार होना है। बता दें कि राजपथ पर मौजूद राष्ट्रपति भवन की दोनों ओर की इमारतों को नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक के नाम से जानते हैं, जिनमें सारे महत्वपूर्ण मंत्रालय हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत इन दोनों इमारतों को म्यूजियम में तब्लीद करने की योजना है। जबकि, उपराष्ट्रपति के मौजूदा निवास को हटाया जाना है।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की महत्वपूर्ण विशेषताएं
- सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का मुख्य आकर्षण तिकोने आकार का नया संसद भवन होगा, जो 64,500 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला होगा। संसद की नई इमारत मौजूदा संसद भवन से काफी बड़ी होगी, जहां एक साथ 1,224 सांसदों के बैठने की व्यवस्था होगी।
- लोकसभा सदन में 888 सांसदों की क्षमता होगी, जबकि राज्यसभा सदन में 384 सांसदों की जगह होगी। यह व्यवस्था भविष्य में सांसदों की संभावित संख्या के मद्देनजर की जा रही है। अभी लोकसभा की क्षमता 545 और राज्यसभा की क्षमता 245 सांसदों की है। संसद की नई इमारत में सभी सांसदों को अलग से अपना दफ्तर भी मिलेगा।
- संसद की नई इमारत में एक भव्य कॉन्स्टिट्यूशन हॉल भी होगा, जिसमें संविधान की मूल कॉपी रखी जाएगी। यहां विजटर गैलरी भी होगी जिसमें भारत के लोकतंत्र की विरासत को डिजिटली डिसप्ले करने इंतजाम रहेागा।
- संसद की मौजूदा इमारत भी कायम रहेगी, जिसे संसद से जुड़ी बाकि तमाम गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा।
- संसद की नई इमारत में अत्याधुनिक डिजिटल इंटरफेस की व्यवस्था होगी, ताकि यह 'पेपरलेस दफ्तर' की तरह काम कर सके।
- निर्माण कार्य की निगरानी लोकसभा सचिवालय, आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के सदस्यों और सीपीडब्ल्यूडी,एनडीएमसी और आर्किटेक्ट और डिजाइनरों के हाथों में होगी।
- संसद की नई इमारत का निर्माण 2022 तक पूरा हो जाने की संभावना है।
- जबकि, पूरा सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के पूर्ण होने की समय-सीमा 2024 रखी गई है।
- सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर कुल 971 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है।
क्या है मौजूदा संसद भवन के निर्माण का इतिहास ?
मौजूदा संसद भवन का निर्माण ब्रिटिश हुक्कमरानों के कार्यकाल में हुआ था। इसकी डिजाइन एडमिन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने तैयार की थी। दरअसल, उन्होंने पूरे नई दिल्ली की डिजाइन तैयार की थी, इसलिए इसे लुटियंस जोन भी कहते हैं। संसद भवन के निर्माण में तब कुल 6 साल लगे थे। इसकी आधारशिला 12 फरवरी, 1921 को रखी गई थी और वायसराय लॉर्ड इरविन ने 18 जनवरी, 1927 को इसका उद्घाटन किया था। तब इसके निर्माण पर 83 लाख रुपये की लागत आई थी।
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