हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल क्या है, इसके बारे में जानिए
नई दिल्ली- सोमवार को भारत ने स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बड़ी सफलता पाई है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानी डीआरडीओ ने ओडिशा के भद्रक से हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल का सफल परीक्षण किया है। इस टेस्टिंग में स्वदेश में विकसित स्क्रैमजेट इंजन का इस्तेमाल किया गया। इससे पहला परीक्षण पिछले साल जून में किया गया था। एचएसटीडीवी के सफल परीक्षणों से भारत ने बहुत ही अधिक जटिल टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है, जिससे भविष्य में घरेलू रक्षा उद्योगों की साझेदारी में अगली-पीढ़ी के हाइपरसोनिक व्हीकल्स को विकसित करने में मदद मिलेगी। आइए जानते हैं कि हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल क्या है?
हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल क्या है
हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल हाइपरसोनिक स्पीड वाली उड़ान के लिए एक मानवरहित स्क्रैमजेट डेमोन्स्ट्रेशन एयरक्राफ्ट होता है। इसे हाइपसोनिक और लंबी-रेंज वाली क्रूज मिसाइलों के वाहक वाहन के तौर पर विकसित कर रहा है। इसके अलावा भविष्य में इसका इस्तेमाल जन उपयोगी कार्यों जैसे कि कम लागत से सैटेलाइटों की लॉन्चिंग के लिए भी किया जाना है। यह कार्यक्रम रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की ओर से चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम के तहत हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल की महत्वाकांक्षी योजना के लिए भारत ऐसी उड़ानों के लिए ग्राउंड और फ्लाइट टेस्ट हार्डवेयर विकसित कर रहा है।
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इस कार्यक्रम का लक्ष्य
अपने इस कार्यक्रम के जरिए डीआरडीओ का लक्ष्य सॉलिड रॉकेट लॉन्च बूस्टर का इस्तेमाल कर 20 सेकंड के लिए स्वदेशी तकनीक के जरिए स्क्रैमजेट उड़ान के स्तर को प्राप्त करना है। इस रिसर्च से भारत को दोबारा इस्तेमाल के लायक लॉन्च व्हीकल पर भी काम करने में मदद मिलेगी। स्क्रैमजेट इंजनों के इन परीक्षणों का अंतिम लक्ष्य 32.5 किलोमीटर (20 मील) की ऊंचाई पर करीब मैक 6 (Mach 6) की स्पीड तक पहुंचना है, जो कि रैमजेट इंजनों की तुलना में काफी बेहतर माना जाता है। एचएसटीडीवी के सफल परीक्षणों से भारत ने बहुत ही अधिक जटिल टेक्नोलॉजी के क्षेत्र अपनी क्षमता का प्रदर्शन करके दिखाया है। इससे भविष्य में घरेलू रक्षा उद्योगों की साझेदारी में अगली-पीढ़ी के हाइपरसोनिक व्हीकल्स को विकसित करने में मदद मिलेगी।
कई चरणों में हुआ है विकसित
हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल का विकास कई चरणों में हुआ है। शुरू में फ्लाइट टेस्टिंग का लक्ष्य वायु यान के एयरडिनामिक्स पर मुहर लगाने के लिए तय किया गया था, साथ ही साथ इसकी थर्मल प्रॉपर्टीज और स्क्रैमजेट इंजन की परफॉर्मेंस पर भी केंद्रीत किया गया। जबकि, इंजन के साथ एयरफ्रेम अटैचमेंट की डिजाइन साल 2004 में ही पूरा कर लिया गया था। इस कार्यक्रम में इजरायल, यूके और रूस जैसे देशों से भी अलग-अलग स्तर पर सहायता मिली है। एयरफ्रेम का निचला सतह, विंग्स और टेल टाइटेनियम एलॉय के बनाए गए हैं, जबकि ऊपरी सतह में एल्युमीनियम एलॉय से बनाए गए हैं।
पिछले साल भी हुआ था परीक्षण
इससे पहले 12 जून, 2019 को हुए परीक्षण में क्रूज व्हीकल को अग्नि-1 के सॉलिड रॉकेट मोटर पर लगाया गया था, जो कि उसे उसकी तय ऊंचाई तक ले गया। तय ऊंचाई तक पहुंचकर और मैक हासिल कर लेने के बाद क्रूज व्हीकल लॉन्च व्हीकल से अलग हो गया। फिर हवा में ही स्क्रैमजेट इंजन खुद से चालू हो गया और क्रूज व्हीकल को मैक 6 तक लेकर गया। लेकिन, स्क्रैमजेट इंजन के लिए सामग्री से जुड़ी टेक्नोलॉजी मिलने में आई अड़चन के बाद एक नया कार्यक्रम शुरू करना पड़ा था, जिसमें इन-हाउस मैटेरियल विकसित की गई है। लेकिन, इसके चलते भारत को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिली। हालांकि, स्क्रैमजेट इंजन की सतह पर ही 3 की जगह 20 टेस्टिंग की गई है।