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कैसे काम करता है 'कवच' जो रोक देगा टक्कर?

दो  ट्रेनों को आमने-सामने की टक्कर से बचाने वाले "कवच" का सफल परीक्षण किया गया।
Akhilesh Shrivastava
शुक्रवार (4 मार्च 2022) को Kavach का सफलता पूर्वक परीक्षण कर भारतीय रेलवे ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है।
Kavach एक ऐसा सिस्टम है जो दो ट्रेनों की आमने-सामने की टक्कर को रोक देता है
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वीके त्रिपाठी दो अलग अलग इंजनों में सवार हुए और इसके सफल परीक्षण का निरीक्षण किया
दोनों इंजन एक ही ट्रेक पर आमने-सामने आ रहे थे लेकिन कवच से ये एक दूसरे से 380 मीटर की दूरी पर अपने आप रुक गए।
कवच में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, जीपीएस, RFIDS टैग का इस्तेमाल होता है जो इंजन, सिग्नल सिस्टम और ट्रेक पर लगे होते हैं।
हाई रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिये ये डिवाइस एक दूसरे से कनेक्ट होते हैं और पहले से प्रोग्राम किया हुआ सिस्टम बिना किसी मैन्युअल हस्तक्षेप के एक्शन ले लेता है।
अगर लोको का पायलट कोई गलती करता है या किसी सिगनल को जंप करता है तो 'कवच' इंजन को अपने आप रोक देता है।आमने-सामने की टक्कर में यही दो मुख्य कारण होते हैं।
अगर सामने से कोई ट्रेन आती है तो कवच दोनों इंजन को निश्चित दूरी पर रोक देता है और एक्सीडेंट नहीं हो पाता है।
आमने सामने की टक्कर के अलावा यह रेड सिग्नल को जंप करने, क्रॉसिंग पार करते समय अपने आप व्हिसल भी देता है।
अगर हम बाहर से ये तकनीक खरीदते तो प्रति किमी डेढ़ से दो करोड़ की लागत आती।पूरी तरह भारतीय कवच की लागत 40-50 लाख रुपए प्रति किमी है और तकनीक एक कदम आगे भी है।
ये पूरी तरह भारत में स्वदेशी तकनीक पर विकसित किया गया सिस्टम है जो एक ऐतिहासिक सफलता है। ये परीक्षण सिकंदराबाद स्टेशन के नजदीकी ट्रेक पर किया गया।
इस सिस्टम के जरिये भारतीय रेलवे का लक्ष्य जीरो एक्सीडेंट को एचीव करना है।इसे जल्दी ही दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-कोलकाता रूट पर लागू किया जाएगा।
इन दोनों रूटों पर जल्द ही 160 किमी तक की रफ्तार से ट्रेनें चला करेंगीं।
अभी तक 1200 किमी लंबे ट्रेक पर इस सिस्टम को चालू कर दिया गया है। अगले दो महीने में इसे 264 किमी और बढ़ाया जाएगा।
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