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IPCC वैज्ञानिकों ने बताया 2020 में पैदा हुए बच्चों का भविष्‍य

आईपीसीसी के वैज्ञानिकों ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में उन बच्चों के भविष्‍य के बारे में बताया, जो आज 1 से 10 वर्ष तक की आयु के हैं...
Ajay Mohan
संयुक्त राष्‍ट्र के पैनल आईपीसीसी ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि जिन चीजों के लिए आज वैज्ञानिक आगाह कर रहे हैं, वो हम और आप देख पायें या नहीं, लेकिन हमारे बच्चे जरूर देखेंगे।
वैज्ञानिकों की चेतावनी
जो बच्चे 10 वर्ष के हैं
वैज्ञानिकों ने कहा जो बच्चे 2020 में या उसके बाद पैदा हुए हैं, वो ग्लोबल वॉर्मिंग के उन सभी दुष्‍प्रभावों के साक्षी बनेंगे, जिनकी भविष्‍यवाणी आज वैज्ञानिक कर रहे हैं। जो बच्चे आज 10 वर्ष के हैं वो मौसम की तीव्र घटनाएं तो जरूर देखेंगे।
वैज्ञानिकों ने वर्ष 2050 और 2100 में ग्लोबल वॉर्मिंग के घातक परिणामों की चेतावनी दी है। जो बच्चे 2020 में पैदा हुए हैं वो 2050 में पचास वर्ष के होंगे और 2100 में 80 वर्ष के।
तब क्या होगी उम्र
IPCC वर्किंग ग्रुप 2 की रिपोर्ट
पृथ्‍वी का तापमान 1.5°C तक बढ़ने की स्‍थ‍िति में आज के बच्चे बड़े होने पर भीषण गर्मी का शिकार होंगे। तब आज की तुलना में 3°C अधिक तापमान होगा।
जिनकी उम्र 2020 में 55 या उससे अधिक है, वो अपने बाकी के जीवन में ग्लोबल वॉर्मिंग के दुष्‍प्रभावों को शायद नहीं देखेंगे।
जो आज 55 के हैं
2050 तक विश्‍व की 70% जनसंख्‍या शहरी क्षेत्रों में रह रही होगी, जिसकी वजह से हीट स्ट्रेस बढ़ेगा, पानी की कमी होगी, बिजली की खपत बढ़ेगी, भोजन की भी कमी हो सकती है।
2050 तक
असामान्‍य बारिश के कारण शहरों में अचानक बाढ़ आने की घटनाएं, पहाड़ों पर बादल फटने की घटनाएं, कई इलाकों में सूखा पड़ने की घटनाएं बढ़ जाएंगी।
मौसम की मार
1.5°C Vs 2°C
हमारे बच्‍चों का ऐसा भविष्‍य तब होगा जब पृथ्‍वी के तापमान में वृद्ध‍ि 1.5°C तक सीमित रही, लेकिन अगर तापमान में 2°C की वृद्धि हो गई, तो स्थिति भयावह होगी।
अगर तापमान 2°C तक बढ़ा तो हमारे बच्चे अपनी आंखों के सामने मुंबई, चेन्नई, तिरुवनंतपुरम जैसे शहरों के तटीय क्षेत्रों को डूबता हुआ देखेंगे। तीव्र मौसम की वजह से भारी पलायन से वो खुद भी प्रभावित होंगे, क्योंकि तब शहरों और गांवों दोनों पर बोझ बढ़ेगा।
बच्चे बनेंगे साक्षी
अगर तापमान में 2°C की वृद्धि हुई, तो 800 मिलियन से लेकर 4 बिलियन लोग भीषण जलसंकट से जूझेंगे। तब आज की तुलना में 4°C अधिक तापमान होगा। यानि जून के महीनों में 50 डिग्री से अधिक तापमान में रहने को मजबूर होंगे।
अनियमित मौसम के कारण फसलों को नुकसान होगा, पैदावार कम होगी। अप्रैल-मई-जून में भीषण गर्मी की वजह से फल-सब्जियां रास्ते में ही खराब हो जाएंगे। इसलिए कोल्‍ड चेन पर अधिक खर्च होगा, जिसकी वजह से भोजन बहुत महंगा हो जाएगा।
इस तरह पड़ेगी गर्मी
"अभी भी देर नहीं हुई है। हम अपने बच्‍चों के भविष्‍य को रिस्‍क से बचा सकते हैं, उसके लिए सभी देशों की सरकारों के साथ-साथ आम लोगों को ग्रीनहाउस गैसों, कार्बन व वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना होगा। पृथ्‍वी को हर प्रकार के प्रदूषण से मुक्त बनाना होगा।"
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