IPCC के वर्किंग ग्रुप 2 की ताज़ा रिपोर्ट में तटीय शहरों जैसे मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, सूरत, आदि पर बढ़ते खतरों की बात की गई है...
पर्यावरण पर काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (IPCC) के वर्किंग ग्रुप 2 ने सोमवार को रिपोर्ट जारी की है।
IPCC की रिपोर्ट
रिपोर्ट में भारत के तटीय शहरों पर आने वाले खतरों के बारे में वैज्ञानिकों ने एक बार फिर आगाह किया है। आगे की स्लाइड में देखें क्या हैं खतरे...
वर्ष 2100 तक तटीय शहरों पर चक्रवात और भारी बारिश का खतरा 10 गुना बढ़ गया है। मतलब तटीय शहरों के डूबने की आशंका 10 गुना प्रबल हो गई है।
बढ़ा 10 गुना खतरा
भारत के प्रमुख शहर जो डूब सकते हैं- चेन्नई, मुंबई, तिरुवनंतपुरम, कोलकाता, विशाखापट्टनम, टृयूटीकोरिन, मैंगलोर, गोवा, सूरत, वडोडरा, कोच्चि, और बहुत सारे।
भारत की समुद्र तट रेखा 7616.6 किलोमीटर लंबी है, जिसके किनारे बसे सभी इलाके बदलते मौसम का शिकार हो सकते हैं।
अगर इसी प्रकार जलवायु परिवर्तन होता रहा तो 21वीं सदी के मध्य तक तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को मजबूरन अपने घर छोड़ने पड़ेंगे।
आर्थिक प्रभाव
तीव्र मौसम गतिविधियों के कारण तटीय शहरों की अर्थव्यवस्था पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब लोग होंगे।
तीव्र मौसम के कारण समुद्री जलस्तर बढ़ने के साथ-साथ तटीय क्षेत्रों पर बाढ़, हाईटाइड, पानी का खारा होना, कृषि भूमि के बंजर होने की आशंका बढ़ रही है।
कौन-कौन से खतरे
अगर समुद्र का जलस्तर 0.15 मीटर बढ़ गया, तो बाढ़ का खतरा 20% तक बढ़ जाएगा। मतलब तटीय शहरों में बाढ़। जिसकी वजह से बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होंगे।
आने वाले समय में भारत के बंदरगाह बाढ़ की भेंट चढ़ सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो भारत का आयात-निर्यात बुरी तरह प्रभावित होगा।
आयात-निर्यात की बात
डॉ. अंजल प्रकाश, IPCC वैज्ञानिक
केंद्र व राज्य सरकारों को आने वाले समय में इंफ्रास्ट्रक्चर इस प्रकार से करना होगा, जिससे भीषण चक्रवात और बाढ़ आने पर बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हो। क्योंकि देश की ब्लू इकोनॉमी तटीय शहरों पर टिकी है।
और भी हैं खबरें
भारत के परिप्रेक्ष्य में और क्या-क्या कहती है IPCC की रिपोर्ट, जानने के लिए नीचे क्लिक करें