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जानिए कितने प्रकार की होती हैं कांवड़, क्या हैं इससे जुड़े नियम

सावन के महीने में कांवड़ यात्रा शुरू हो गई है। भगवान शिव को खुश करने के लिए कई प्रकार की कांवड़ यात्रा निकाली जाती हैं, तो आइए जानते हैं कितने प्रकार की होती हैं कांवड़ और क्या हैं इनसे जुड़े नियम..
Deepak Saxena
इस कांवड़ यात्रा में कांवड़िये जहां चाहे रुककर आराम कर सकते हैं। आराम करने के लिए कई जगह पंडाल लगे होते हैं।
सामान्य कांवड़
डाक कांवड़
इस कांवड़ यात्रा में बिना रुके लगातार चलते रहना होता है। भगवान शिव का जलाभिषेक करने के बाद ही कांवड़ यात्रा का समापन माना जाता है।
सावन में कुछ भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं। इस यात्रा के दौरान उनकी मदद के लिए एक सहयोगी भी साथ चलता है। जब यात्रा के दौरान एक आराम करता है। तो दूसरा सहयोगी कांवड़ को चलने के अंदाज में हिलाते रहता हैं।
खड़ी कांवड़
इस कांवड़ में भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड मुद्रा में पूरी करते हैं। कांवड़ पथ की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से लेटकर यात्रा पूरी करते हैं। ये कांवड़ यात्रा बहुत मुश्किल होती है।
दांडी कांवड़
शास्त्रों के अनुसार, सावन में कांधे पर कांवड़ रखकर पद यात्रा करने से एक अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल मिलता है। मृत्यु के बाद भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।
कांवड़ यात्रा से प्राप्त फल
  • यात्रा के दौरान किसी प्रकार का नशा, मदिरा, मांस या तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।
  • कांवड़ को बिना स्नान किए हाथ नहीं लगाना चाहिए।
  • चमड़े का स्पर्श वर्जित माना गया है।
  • वाहन का प्रयोग नहीं करना।
  • चारपाई का उपयोग नहीं करना।
  • वृक्ष के नीचे भी कांवड़ नहीं रखना चाहिए।
कांवड़ यात्रा के नियम