विकास दुबे: पुलिस एनकाउंटर पर क्या है SC और NHRC की गाइडलाइंस
नई दिल्ली- उत्तर प्रदेश के कुख्यात अपराधी विकास दुबे के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने को लेकर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। उसकी तलाश में यूपी का पूरा पुलिस महकमा और सरकार पिछले एक हफ्ते से बेचैन थी। एक दिन पहले उसकी मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर से नाटकीय अंदाज में गिरफ्तारी हुई और 24 घंटे से पहले ही कानपुर ले जाते वक्त उसकी पुलिस मुठभेड़ में मौत हो गई। जिंदा कब्जे में आ जाने के बाद पुलिस को उसपर किन परिस्थितियों में गोली चलानी पड़ी यह तो जांच का विषय हो सकता है। लेकिन, हम यहां उन पहलुओं को लेकर आए हैं कि क्या पुलिस ऐसे ही एनकाउंटर कर सकती है या उसके भी कोई कायदे-कानून हैं। पुलिस एनकाउंटर पर बार-बार सवाल उठाए जाने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक गाइडलाइंस जारी की थी, जिसपर बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी थी। आइए जानते हैं वह गाइडलाइंस है क्या; और दोषी पाए जाने पर पुलिस वालों के खिलाफ कैसी कार्रवाई हो सकती है?
विकास के एनकाउंटर पर सवाल
विकास दुबे की तलाश एक हफ्ते पहले हुई 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के सिलसिले में हो रही थी। विकास पुलिस को एक हफ्ते तक चकमा देता रहा और पुलिस एक-एक करके उसके गुर्गों को एनकाउंटर में ढेर करती रही। पुलिस की गोली का निशाना बनने वाला विकास अपने गैंग का छठा सदस्य था। बीते सात दिनों में पुलिस उसके 5 साथियों को पहले ही ढेर कर चुकी थी। इसलिए लोगों को लग रहा है कि पुलिस एनकाउंटर का सिर्फ दिखावा कर रही है, असल में उसे जानबूझकर मारा गया है। इस तरह की सोच के पीछे एक वजह भी है। एक तो 8-8 पुलिस वालों की उसके घर के पास उसके गैंग ने निर्मम हत्या कर दी थी, जिसको लेकर पुलिस महकमे में स्वाभाविक सा गुस्सा भी था।
एनकाउंटर पर विवाद की वजह
विकास दुबे के एनकाउंटर पर संदेह उठाने के पीछे एक बड़ी बात उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एक टीवी चैनल को दिया गया वह बयान है, जिसमें उन्होंने कहा था- 'अपराध करेंगे तो ठोक दिए जाएंगे।' जाहिर है कि आदित्यनाथ के कहने का भाव ये भी निकलता है कि अपराध करने वालों की ठुकाई होगी या उनके साथ पुलिस सख्ती से पेश आएगी। अपराध नियंत्रण करने के लिए यह स्वाभाविक भी है। लेकिन, लोग सीएम की बातों को दूसरी तरह से ज्यादा ले रहे हैं कि मतलब अपराधी का सर्वनाश कर दिया जाएगा। हो सकता है कि उत्तर प्रदेश की पुलिस मुख्यमंत्री की बातों को उसी भावना से ले रही हो। तथ्य ये भी है कि पिछले साल एक बयान में सीएम ने खुद ही कहा था कि स्वतंत्रता दिवस तक पुलिस ने 3,000 से भी ज्यादा एनकाउंटर किए हैं, जिसमें 60 हिस्ट्रीशीटर मारे जा चुके हैं। लेकिन, सवाल है कि क्या पुलिस एनकाउंटर को अपराध खत्म करने के एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है या वह भी सिस्टम के प्रति जवाबदेह है?
एनएचआरसी की गाइडलाइंस
पुलिस एनकाउंटर और हिरासत में मौत भारत में पिछले दिशकों से एक बड़े विवाद की वजह रहा है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2010 में इसको लेकर एक गाइडलाइंस तैयार किया था। 2014 में एनएचआरसी की उस गाइडलाइंस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी थी, जिससे उस गाइडलाइंस को कानूनी वैद्यता मिल गई। एनएचआरसी ने वो दो ही परिस्थितियां बताई हैं, जिसमें पुलिस किसी की जान ले सकती है।
पहली, कोई संदिग्ध पुलिस वाले या पुलिस टीम पर हमला करता है और पुलिस वालों की ओर से आत्मरक्षा में की गई कार्रवाई में उस अपराधी की मौत हो जाती है। आईपीसी की धाराओं में भी यह प्रावधान मौजूद है।
दूसरी, अगर किसी अपराधी के दोष साबित होने पर उसे फांसी या उम्रकैद की सजा हो सकती है और उसकी गिरफ्तारी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली सख्ती की वजह उसकी मौत हो जाती है। आईपीसी की धाराओं में भी इन हालातों पुलिस वालों की हिफाजत की गई है।
गाइडलाइंस के अलावा बाकी मामलों में सामान्य प्रक्रिया
एनएचआरसी की गाइडलाइंस में ऊपर दिए दो अपवादों को छोड़कर पुलिस एनकाउंटर को संरक्षण नहीं दिया गया है; और वैसी स्थिति में हत्या की सामान्य न्यायिक प्रक्रिया लागू होती है। मतलब सामान्य परिस्थितियों में पुलिस किसी व्यक्ति की जान नहीं ले सकती। क्योंकि, जीने का अधिकार और निजी स्वतंत्रता (मौलिक अधिकार) संविधान के आर्टिकल-21 से संरक्षित है और इससे कोई किसी कोई भी वंचित नहीं कर सकता। 2014 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एनकाउंटर में शामिल लोगों के खिलाफ एफआईआर तत्काल दर्ज होनी चाहिए और किसी दूसरी एजेंसी से अपराध की जांच करवाई जानी चाहिए। एक मैजिस्ट्रेट से भी जांच होनी चाहिए।
जांच होने तक प्रमोशन और पुरस्कार नहीं- सुप्रीम कोर्ट
एनकाउंटर में शामिल पुलिस वालों के खिलाफ जांच सिर्फ दिखावा न रह जाए, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि घटना में शामिल पुलिस अधिकारियों को तत्काल प्रमोशन या वीरता पुरस्कार भी नहीं दिया जाना चाहिए। ये पुरस्कार तभी दिए जाने चाहिए जब उनका शौर्य जांच में पूरी तरह से सही साबित हो जाए। एक एनकाउंटर में शामिल पुलिस अधिकारी जांच में दोषी पाए जाते हैं तो उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 299 के तहत मुकदमा चलेगा। मुकदमे में अपराध साबित होने पर उन्हें 10 साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक मिल सकती है।
विकास दुबे के एनकाउंटर में क्या हुआ ?
पुलिस का कहना है कि वह पुलिस वालों से हथियार छीनकर फरार होने की कोशिश कर रहा था और जवाबी कार्रवाई में मारा गया। पहली नजर में यह पुलिस की ओर से आत्मरक्षा में कार्रवाई का मामला लग रहा है। अब सवाल है कि कोर्ट में यह दलील कैसे साबित होती है? क्योंकि, 2012 में झारखंड से जुड़े एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी, 'क्योंकि वह एक कुख्यात अपराधी है, सिर्फ इस वजह से आरोपी की हत्या कर देना पुलिस ऑफिसर की ड्यूटी नहीं है।' 'ऐसी हत्याओं को टाला जाना चाहिए। हमारी क्रिमिनल जस्टिस एडमिनिस्ट्रेशन सिस्टम में कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है। ये राज्य-प्रायोजित आतंकवाद की श्रेणी में आते हैं।'